भारत पर लगाए गए 50% टैरिफ खत्म करेगा अमेरिका, उठ रहे विरोध के सुर

सांसदों का तर्क है कि इस तरह के टैरिफ न केवल भारत-अमेरिका संबंधों को नुकसान पहुँचा रहे हैं, बल्कि इसका सीधा असर अमेरिकी उपभोक्ताओं, श्रमिकों और घरेलू उद्योगों पर भी पड़ रहा है। उनका कहना है कि आयात शुल्क बढ़ने से महंगाई बढ़ी है और अमेरिकी कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता कमजोर हुई है।

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डोनाल्ड ट्रंप
locationभारत
userयोगेन्द्र नाथ झा
calendar13 Dec 2025 01:36 PM
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Tariff Dispute : भारत से आयात होने वाले उत्पादों पर लगाए गए 50 प्रतिशत तक के भारी टैरिफ को लेकर अब अमेरिका के भीतर ही विरोध तेज होता दिख रहा है। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के तीन सांसदों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित राष्ट्रीय आपातकाल को समाप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पेश किया है, जिसके आधार पर ये टैरिफ लगाए गए थे। सांसदों का तर्क है कि इस तरह के टैरिफ न केवल भारत-अमेरिका संबंधों को नुकसान पहुँचा रहे हैं, बल्कि इसका सीधा असर अमेरिकी उपभोक्ताओं, श्रमिकों और घरेलू उद्योगों पर भी पड़ रहा है। उनका कहना है कि आयात शुल्क बढ़ने से महंगाई बढ़ी है और अमेरिकी कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता कमजोर हुई है।

अमेरिकी संसद में ट्रंप की टैरिफ रणनीति को लेकर असहमति बढ़ती जा रही

यह प्रस्ताव कांग्रेस सदस्य डेबोरा रॉस, मार्क वीजी और भारतीय मूल के सांसद राजा कृष्णमूर्ति के नेतृत्व में लाया गया है। इन सांसदों ने राष्ट्रपति द्वारा आपातकालीन अधिकारों के इस्तेमाल को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि व्यापार नीति तय करने का अधिकार कांग्रेस के पास होना चाहिए, न कि कार्यपालिका के एकतरफा निर्णय से। यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब अमेरिकी संसद में ट्रंप प्रशासन की टैरिफ रणनीति को लेकर असहमति बढ़ती जा रही है। इससे पहले सीनेट में भी एक द्विदलीय प्रस्ताव पेश किया जा चुका है, जिसका उद्देश्य ब्राजील पर लगाए गए समान टैरिफ को खत्म करना और भविष्य में राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल का हवाला देकर टैरिफ बढ़ाने की शक्ति को सीमित करना है।

टैरिफ नीति में जल्द पता चलगा अमेरिकी रुख

प्रतिनिधि सभा के सांसदों का मानना है कि यदि राष्ट्रपति को इस तरह से व्यापारिक फैसले लेने की खुली छूट दी जाती रही, तो अमेरिका की व्यापार नीति में अस्थिरता बनी रहेगी और वैश्विक साझेदार देशों के साथ संबंध और अधिक कमजोर हो सकते हैं। हालांकि, यह प्रस्ताव टैरिफ को तुरंत समाप्त नहीं करता, लेकिन इससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि अमेरिका के भीतर ही अब इस आक्रामक व्यापार नीति को लेकर असंतोष गहराता जा रहा है। आने वाले समय में यह बहस यह तय करेगी कि क्या अमेरिका अपने रुख में नरमी लाएगा या टैरिफ नीति को जारी रखेगा।

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2034 वर्ल्ड कप: सऊदी बनेगा ग्लोबल स्पोर्ट्स हब, ‘विजन 2030’ को मिलेगा बल

रियाद, जेद्दा, दम्माम और नियोम इस बदलाव के ‘पावर सेंटर’ बन रहे हैं, जहां नए स्टेडियमों से लेकर होटल, ट्रांजिट सिस्टम और शहरी सुविधाओं तक एक पूरा इकोसिस्टम खड़ा करने की योजना है।

2034 के लिए सऊदी के ‘पावर सेंटर’ तैयार
2034 के लिए सऊदी के ‘पावर सेंटर’ तैयार
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar12 Dec 2025 11:18 AM
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Saudi Arab : सऊदी अरब ने 2034 फीफा विश्व कप की मेजबानी की सफल बोली के साथ खुद को वैश्विक खेल मानचित्र पर एक नए केंद्र के तौर पर स्थापित कर दिया है। अब दुनिया की निगाहें सऊदी अरब पर हैं और यही वजह है कि आने वाले दशक में यहां स्टेडियमों से लेकर एयरपोर्ट, हाई-स्पीड रेल, होटल, स्मार्ट सिटी और टूरिज्म इकोसिस्टम तक बड़े पैमाने पर बदलाव देखने को मिलेगा। यह आयोजन सिर्फ फुटबॉल का टूर्नामेंट नहीं, बल्कि सऊदी अरब के Vision 2030 के उस रोडमैप का बड़ा पड़ाव है, जिसका लक्ष्य अर्थव्यवस्था में विविधता, रोजगार सृजन, निवेश आकर्षित करना और वैश्विक मेजबानी क्षमता को नई ऊंचाई देना है। सऊदी अरब के खेल मंत्री प्रिंस अब्दुलअज़ीज बिन तुर्की अल-फैसल के मुताबिक, 2034 वर्ल्ड कप “सऊदी अरब के फुटबॉल प्रेम के साथ-साथ नवाचार, स्थिरता और उत्कृष्टता के प्रति प्रतिबद्धता” को भी दुनिया के सामने रखेगा। वहीं निवेश मंत्री डॉ. खालिद अल-फालिह ने संकेत दिए हैं कि वर्ल्ड कप को सऊदी अरब आर्थिक विकास और नई इंडस्ट्री के विस्तार के उत्प्रेरक की तरह देख रहा है।

सऊदी अरब में ‘मेगा-ट्रांसफॉर्मेशन’ का नया दौर

2034 वर्ल्ड कप को लेकर सऊदी अरब की तैयारी तीन साफ मोर्चों पर तेज़ी से आगे बढ़ रही है विश्वस्तरीय स्टेडियम और स्पोर्ट्स फैसिलिटीज, ट्रांसपोर्ट कनेक्टिविटी का हाई-स्पीड नेटवर्क, और टूरिज्म-हॉस्पिटैलिटी के साथ स्मार्ट सिटी मॉडल। रियाद, जेद्दा, दम्माम और नियोम इस बदलाव के ‘पावर सेंटर’ बन रहे हैं, जहां नए स्टेडियमों से लेकर होटल, ट्रांजिट सिस्टम और शहरी सुविधाओं तक एक पूरा इकोसिस्टम खड़ा करने की योजना है। लक्ष्य बिल्कुल स्पष्ट है सऊदी अरब सिर्फ मेजबानी नहीं करेगा, बल्कि दुनिया के सामने खुद को एक प्रीमियम “एक्सपीरियंस डेस्टिनेशन” के रूप में पेश करेगा।

स्टेडियमों की नई पहचान

सऊदी अरब की 2034 वर्ल्ड कप तैयारियों में अगर कोई चीज़ सबसे तेज़ी से “गेम-चेंजर” बनकर उभर रही है, तो वो है स्टेडियमों का महाप्रोजेक्ट। सरकार का प्लान साफ है कुछ बिल्कुल नए, कुछ पहले से निर्माणाधीन और कई मौजूदा मैदानों का ऐसा मेगा-रिनोवेशन कि वे फीफा की हर तकनीकी कसौटी पर खरे उतरें, और साथ ही हर स्टैंड, हर कॉन्कोर्स, हर डिजाइन-लाइन में “सऊदी पहचान” और स्थानीय संस्कृति की झलक भी दिखे।

प्रस्तावित बड़े वेन्यूज की तस्वीर कुछ यूं बन रही है

  1. रियाद एरिना (60,000 सीटें): राजधानी का यह स्टेडियम उद्घाटन और फाइनल जैसे हाई-वोल्टेज मुकाबलों का सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है। यहां फोकस सिर्फ सीटों की संख्या नहीं, बल्कि स्मार्ट-कंट्रोल सिस्टम, ऊर्जा दक्षता और भीड़ प्रबंधन की “प्रिसिजन प्लानिंग” पर रहेगा।
  2. जेद्दा स्पोर्ट्स सिटी (45,000 सीटें): लाल सागर के किनारे खेल ढांचे का विस्तार सऊदी के बड़े टूरिज्म विजन से सीधे जुड़ता दिख रहा है मैच का रोमांच और शहर का अनुभव, दोनों एक साथ।
  3. दम्माम डोम (50,000 क्षमता): पूर्वी प्रांत के लिए यह स्टेडियम मौसम के उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखकर डिजाइन किया जाएगा ताकि दर्शकों का कंफर्ट और खेल की क्वालिटी, दोनों “ऑल-सीजन” बनी रहे।
  4. नियोम स्टेडियम: भविष्यवादी नियोम प्रोजेक्ट के भीतर बनने वाला यह वेन्यू टेक्नोलॉजी और एंटरटेनमेंट का नया चेहरा बन सकता है जहां फैन एक्सपीरियंस “फिजिकल + वर्चुअल” दोनों स्तर पर एकदम नई परिभाषा लेगा।

सबसे दिलचस्प बात यह पूरा निर्माण सिर्फ “बड़ा” नहीं, “हरित” भी बनाने की कोशिश है। सौर ऊर्जा, जल संरक्षण, कचरा प्रबंधन और टिकाऊ निर्माण प्रणालियों को हर बड़े प्रोजेक्ट की रीढ़ बताया जा रहा है यानी 2034 के लिए सऊदी का लक्ष्य सिर्फ स्टेडियम खड़े करना नहीं, बल्कि एक नया ग्लोबल स्पोर्ट्स इकोसिस्टम खड़ा करना है।

सऊदी अरब को ‘एक देश-एक नेटवर्क’ में जोड़ने की तैयारी

वर्ल्ड कप सिर्फ 90 मिनट का खेल नहीं—यह लाखों लोगों की आवाजाही, शहरों की धड़कन और व्यवस्थाओं की असली परीक्षा होता है। इसी “मूवमेंट की सुनामी” को संभालने के लिए सऊदी अरब मैदान के बाहर सबसे बड़ा दांव कनेक्टिविटी पर लगा रहा है जहां आसमान, पटरियां और सड़कें तीनों एक साथ अपग्रेड होंगी।

1 - एयरपोर्ट विस्तार: रियाद के किंग खालिद इंटरनेशनल और जेद्दा के किंग अब्दुलअज़ीज इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर नए टर्मिनल, तेज ट्रांजिट सिस्टम और अतिरिक्त यात्री सुविधाओं की योजना है ताकि इंटरनेशनल फ्लो बिना अड़चन के चलता रहे।

2 - हाई-स्पीड रेल नेटवर्क: लक्ष्य है रियाद–जेद्दा–दम्माम–नियोम जैसे प्रमुख शहरों को तेज रफ्तार रेल से जोड़ना ताकि शहरों के बीच सफर “घंटों में” सिमट जाए और फैंस के लिए ट्रैवल उतना ही आसान हो जितना टिकट स्कैन करना।

3 - सड़क व पब्लिक ट्रांसपोर्ट: मेजबान शहरों में रोड नेटवर्क अपग्रेड, बेहतर बस सेवाएं और स्मार्ट मोबिलिटी मॉडल पर जोर रहेगा जिससे भीड़ का दबाव बंटे, ट्रैफिक कम हो और यात्रा ज्यादा व्यवस्थित व टिकाऊ बन सके।

कौन बना रहा है सऊदी अरब का वर्ल्ड कप इकोसिस्टम?

इस मेगा-ट्रांसफॉर्मेशन की असली “इंजीनियरिंग” सिर्फ कंक्रीट और स्टील से नहीं होगी इसके पीछे लोकल दिग्गजों और ग्लोबल प्लेयर्स का बड़ा नेटवर्क काम करेगा। Saudi Aramco ऊर्जा-कुशल सिस्टम और स्मार्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर सॉल्यूशंस के जरिए प्रोजेक्ट्स को नई तकनीकी धार देने की तैयारी में दिख रही है। वहीं Saudi Binladin Group के पास रियाद-जेद्दा जैसे शहरों में बड़े निर्माण कार्यों की अहम जिम्मेदारी (योजनाओं के मुताबिक) आने की बात कही जा रही है। ACWA Power का फोकस सोलर और विंड जैसी रिन्यूएबल एनर्जी के जरिए स्टेडियमों और आसपास के इकोसिस्टम को स्थायी ऊर्जा सपोर्ट देने के रोडमैप पर है। और नियोम जैसे भविष्यवादी मेगा-प्रोजेक्ट्स में Bechtel की स्मार्ट ट्रांसपोर्ट व एडवांस इन्फ्रास्ट्रक्चर निगरानी/भागीदारी को लेकर चर्चाएं तेज हैं यानी वर्ल्ड कप 2034 का ब्लूप्रिंट अब कंपनियों की साझेदारी से “ग्राउंड पर” उतरने की दिशा में बढ़ रहा है। Saudi Arab

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ऐसा देश जहां किराये पर मिलता है पति, एक घंटे के लिए बुक कर करवाती हैं ये काम

स्थिति यहाँ तक पहुँच चुकी है कि बहुत-सी महिलाएँ रोजमर्रा के घरेलू कामों के लिए ऐसे प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रही हैं, जहाँ से वे एक घंटे के लिए हैंडीमैन या किराए के पति जैसी सेवाएँ बुक कर सकती हैं।

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लातविया के महिला पुरुष
locationभारत
userयोगेन्द्र नाथ झा
calendar07 Dec 2025 02:53 PM
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A Husband For Rent : यूरोप के छोटे देश लातविया में पिछले कुछ वर्षों से महिलाओं और पुरुषों की संख्या के बीच बड़ा अंतर देखने को मिल रहा है। महिलाओं की आबादी पुरुषों की तुलना में काफी अधिक है, और यह अंतर समय के साथ और बढ़ता जा रहा है। स्थिति यहाँ तक पहुँच चुकी है कि बहुत-सी महिलाएँ रोजमर्रा के घरेलू कामों के लिए ऐसे प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रही हैं, जहाँ से वे एक घंटे के लिए हैंडीमैन या किराए के पति जैसी सेवाएँ बुक कर सकती हैं।

पुरुषों की आबादी में तेज गिरावट क्यों?

लातविया के आधिकारिक डेटा के अनुसार देश में महिलाओं की संख्या पुरुषों से लगभग 15% से भी अधिक है। यूरोपीय देशों में यह सबसे बड़ा अंतर माना जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि लातविया के पुरुष औसतन महिलाओं से काफी पहले मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। इसके कई कारण बताए जाते हैं। पुरुष धूम्रपान की अधिक आदत वाले होते हैं। अस्वास्थ्यकर जीवनशैली होती है तथा वहां मोटापे की समस्या है साथ ही मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियां भी होती हैं। इन कारणों के चलते पुरुष अपेक्षाकृत कम उम्र में ही बीमारियों का शिकार हो जाते हैं, जिससे उनकी औसत आयु महिलाओं की तुलना में लगभग एक दशक कम रह जाती है।

40 वर्ष की उम्र में सबसे ज्यादा फर्क

समाजशास्त्रीय रिपोर्टों से पता चलता है कि 30 से 40 वर्ष की उम्र के बीच पुरुषों की मृत्यु दर महिलाओं से कई गुना अधिक दर्ज की जाती है। इसी वजह से इसी उम्र के बाद आबादी में लिंग असंतुलन बहुत स्पष्ट दिखने लगता है। पुरुषों की कमी से यह स्थिति बनती जा रही है कि कार्यस्थलों पर अधिकतर महिलाएँ काम करती दिखती हैं। सामाजिक जीवन में भी पुरुषों की उपस्थिति कम हो रही है जिसके कारण कई महिलाएँ देश में साथी न मिलने पर विदेशों में जीवनसाथी खोजने लगी हैं। महिलाओं का कहना है कि विकल्प कम होने की वजह से रिश्ते बनाना या शादी करना पहले की तुलना में कहीं ज्यादा कठिन हो गया है।

क्यों बढ़ा किराए के पति का ट्रेंड?

जब घर में पुरुष साथी न हो, तो बहुत-सी महिलाएँ उन प्लेटफॉर्मों को इस्तेमाल करती हैं जिनमें पाइपलाइन ठीक करना, घर की मरम्मत व फर्नीचर सेटअप, पेंटिंग करना व इलेक्ट्रिक उपकरणों की इंस्टॉलेशन करना जैसे कामों के लिए प्रशिक्षित पुरुष कर्मचारियों को घंटे के हिसाब से बुक करने की सुविधा देते हैं। इन सेवाओं को मीडिया अक्सर मजाक में या आकर्षक हेडलाइन बनाकर किराए का पति कह देता है, जबकि हकीकत में ये प्रोफेशनल घरेलू-सेवा प्लेटफॉर्म होते हैं।

यह चलन सिर्फ लातविया तक नहीं

ब्रिटेन सहित कई देशों में ऐसे लोग या एजेंसियाँ मिलती हैं जो कुशल कर्मचारियों को घरेलू कामों के लिए किराये पर उपलब्ध कराती हैं। कुछ मामले सोशल मीडिया पर वायरल भी हुए, जहाँ महिलाओं ने अपने पतियों को ही इस तरह के कामों के लिए किराये पर भेजना शुरू कर दिया। लातविया में पुरुषों की कम आबादी, स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ और बढ़ता लिंग असंतुलन, इन सबके कारण कई महिलाएँ अब अपने दैनिक काम निपटाने के लिए आधुनिक घरेलू-सेवा एप्स पर निर्भर हो गई हैं। यही वजह है कि किराए पर पति जैसी अवधारणाएँ चर्चा में आती हैं।

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