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बड़ी खबर : तो बिना मौत के ही हो जाती शेख हसीना की हत्या

Sheikh Hasina

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Sheikh Hasina : बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के जीवन में सोमवार के 45 मिनट बेहद महत्वपूर्ण थे। बांग्लादेश की आर्मी के अंतरंग सूत्रों का दावा है कि उन 45 मिनटों का सदउपयोग नहीं हुआ होता तो बहुत बुरा हो सकता था। सूत्रों का यहां तक कहना है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की बिना मौत की घड़ी आए ही हत्या हो जाती।

भारत में ही हैं शेख हसीना

भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में हिंसा की आग धधक रही है और इस आग में वहां के लोग सुलग रहे हैं। छात्रों का प्रद्रशन उस मोड़ पर आ गया जहां बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देकर देश छोडक़र ही चले जाना पड़ा। शेख हसीना की जिंदगी में आए भूचाल ने हर किसी को हैरानगी में डाल दिया है। लेकिन ये पहली बार नहीं है जब उनकी जिंदगी में कोई भूचाल आया हो। शेख हसीना ने जीवन में कई उतार-चढ़ाव का सामना किया है। उनकी जिंदगी पर फिल्में तक बन चुकी हैं। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना इस समय भारत में हैं। उन्होंने लंदन में शरण मांगी है। अभी तक लंदन ने शेख हसीना की मांग पर कोई फैसला नहीं किया है। मंगलवार को भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर भारत की संसद में बांग्लादेश के मुददे पर बयान दे रहे हैं।

शेख हसीना का जीवन परिचय Sheikh Hasina

आपको बता दें कि शेख हसीना ने 2009 से बांग्लादेश के प्रधानमंत्री की कुर्सी को संभाला हुआ था। इससे पहले वो 1996 से 2001 तक बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रही थीं। वो अब तक चार बार प्रधानमंत्री की शपथ ले चुकी हैं। वो आजाद बांग्लादेश की पहली प्रधानमंत्री थीं, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था। शेख हसीना का जन्म 28 सितंबर 1947 को हुआ था। वो अपने घर की सबसे बड़ी बेटी हैं। शुरुआती जीवन उन्होंने ढाका में गुजाारा है। हसीना ने कॉलेज में छात्र नेता के तौर पर शुरुआत की थी। वो राजनीति का उभरता सितारा मानी जाती थीं, लेकिन उन्हें बुरे दौर का सामना करना पड़ा जब साल 1975 में उनके माता-पिता और 3 भाईयों की हत्या कर दी गई। तब सेना ने बगावत कर हसीना के परिवार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। हालांकि परिवार के ज्यादातर लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था लेकिन उनके पति वाजिद मियां और छोटी बहन शेख रेहाना की जान बच गई थी।

इसके बाद वो आगे की पढ़ाई करने जर्मनी चली गई थीं। फिर दिल्ली आईं और इसके बाद वापस बांग्लादेश जाकर अपनी पार्टी जॉइन की थी। शेख हसीना सरकार ने 1971 में बांग्लादेश की आजादी के लिए लडऩे वाले स्वतंत्रता सेनानियों के रिश्तेदारों के लिए कई सिविल सेवा सर्विसेज में आरक्षण का ऐलान किया था। इसका विरोध करते हुए भारी तादाद में छात्र सडक़ों पर उतर आए थे। बारी विरोध झेलने के बाद सरकार ने कोटा कुछ हद तक वापस ले लिया। बावजूद इसके छात्रों का प्रदर्शन जारी रहा। क्योंकि शेख हसीना ने विरोध प्रदर्शन के बाद व्यवस्था बहाल करने के लिए सेना को बुलाया था। इस दौरान हुई हिंसा में सैंकड़ों छात्र की मौत हुई थी। जिसके बात मामला और उग्र हो गया. इस वजह से शेख हसीना के इस्तीफे की मांग की जा रही थी। Sheikh Hasina

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