USA News : अमेरिका (USA) से लेकर दुनिया के ज्यादातर देशों में एक नई समस्या खड़ी हो गई है। अमेरिका (USA) के सबसे बड़े अखबार the new york times के अनुसार अमेरिका ( USA) समेत दुनिया भर में बूढ़ों (बुजुर्गों) की बजाय युवा वर्ग के लोग अकेलेपन का अधिक शिकार हो रहे हैं। अमेरिका में तो यह स्थिति चिंताजनक हालात तक पहुंच गयी है। हम यहां अमेरिका (USA) में प्रकाशित एक ताजा रिपोर्ट आपके साथ साझा कर रहे हैं।
अकेलेपन से जूझते युवा अमेरिका में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका के प्रसिद्ध सर्जन जनरल विवेक मूर्ति पिछले साल जब कॉलेजों के राष्ट्रव्यापी दौरे पर गए थे, तब हर जगह उन्हें युवाओं के एक ही सवाल का सामना करना पड़ा कि जब कोई हमसे बात करना ही न चाहता हो, हम सामने वाले से संवाद कैसे बनाएं? जिस दौर में सामुदायिक आयोजनों, क्लबों तथा धार्मिक समूहों के बीच भागीदारी घटती जा रही हो, और सिर्फ ऑनलाइन संवाद बढ़ रहा हो, तब अनेक युवा उसी अकेलेपन का एहसास कर रहे हैं, जिसका एहसास दशक भर पहले तक सिर्फ वृद्ध लोग करते थे।
बुजुर्ग अब भी अकेलेपन का सामना कर रहे हैं, लेकिन युवाओं में बढ़ता अकेलापन एक नया सामाजिक खतरा है। पिछले दिनों साइकोलॉजिकल सर्वे में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, अकेलेपन की समस्या अब यूं आकार ले चुकी है। ऑनलाइन संवाद के दौर में युवाओं को भीषण अकेलेपन का सामना करना पड़ता है। प्रौढ़ावस्था में स्थिति बदल जाती है, क्योंकि नौकरी और शादी के कारण लोगों से संवाद और मेलजोल बढ़ता है। लेकिन साठ की उम्र तक आते-आते व्यक्ति को फिर अकेलापन घेर लेता है।
अध्ययन बताता है कि मध्य उम्र का व्यक्ति सामाजिक रूप से सबसे अधिक सक्रिय होता है, क्योंकि तब विभिन्न आयु वर्ग के लोगों से उसका निरंतर संवाद होता रहता है। वह दफ्तर में अपने सहयोगियों के साथ बात करता है, घर में पत्नी और बच्चों से उसका निरंतर संवाद होता है, तो रिश्तेदारों और समाज के लोगों से भी उसका संवाद बना रहता है। मध्य उम्र के लोग सामाजिक रूप से सर्वाधिक सक्रिय होते हैं, और शायद कभी अकेलेपन का अनुभव करते हैं।
बुढ़ापा आने पर यह सामाजिक सक्रियता घट जाती है, क्योंकि नौकरी से रिटायर होने के बाद सहकर्मियों से संवाद नहीं हो पाता। युवा बच्चों से संवाद भी कम रह जाता है, क्योंकि वे या तो नौकरी के लिए बाहर चले गए होते हैं, या फिर घर में ज्यादा नहीं टिकते। शारीरिक मजबूरी के कारण बुजुर्ग लोग मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने के लिए भी कम ही जा पाते हैं। चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक, अकेलेपन को दूर नहीं किया गया, तो लोगों में डिमेंशिया, दिल की बीमारी और आत्महत्या करने की प्रवृत्ति बढ़ती है। बड़ी संख्या में किशोरों और युवाओं का अकेला होना इसीलिए खतरे की घंटी है। समाज विज्ञानियों का कहना है कि जीवन में दो बार अकेलेपन का सामना करने से लोगों में सामाजिक भावना और सकारात्मक सोच कम हो रही है, जो चिंता की बात है।
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