Chandra Grahan 2023: 5 मई 2023 को आने वाली वैशाख पूर्णिमा जहां कई दुर्लभ योगों का समय होगी, वहीं इस दिन लगने वाले चंद्र ग्रहण का असर सीधे तौर पर कई राशियों के लिए परेशानी का सबब बन सकता है तो कुछ के जीवन में हो सकता है अचानक से बदलाव. हिन्दू धर्म में पूर्णिमा तिथि का महत्व बहुत अधिक रहा है ओर जब बात आती है वैशाख पूर्णिमा की तो ये दिन कई मायनों में विशेष बन जाता है जिसमें एक है इसी दिन भगवान बुध का अवतरण भी हुआ था.
Chandra Grahan 2023:
वैशाख माह की पूर्णिमा पर इस साल कई विशेष योग तो बनेंगे ही जिसके द्वारा स्नान दान और धार्मिक कार्यों को करने का महत्व कई गुना बढ़ जाएगा लेकिन इसी के साथ पड़ने वाला चंद्र ग्रहण भी काफी महत्वपूर्ण होगा. ऎसे में ग्रहण के समय के दौरान किया जाने वाला दान और जप महत्वपूर्ण माना जाता है. इसी के साथ ज्योतिष शास्त्र में ये समय राशियों के लिए भी खास हो जाता है.
ग्रहण का इन राशियों पर होगा सबसे ज्यादा प्रभाव
वैशाख पूर्णिमा पर लगने वाले इस चंद्र ग्रहण के समय यह दो राशियों पर सबसे अधिक प्रभावी रहेगा पहला मेष राशि और दूसरा तुला राशि पर. इस समय चंद्रमा का गोचर तुला राशि पर होगा जहां पहले से मौजूद केतु के साथ चंद्र की युति ग्रहण योग का निर्माण करने वाली होगी. इसी के साथ मेष राशि में स्थिति राहु का प्रभाव इन राशियों के जातकों के जीवन में के बार फिर से कुछ बदलाव ला सकता है. इसलिए जरुरी है की इन राशियों को अभी कुछ समय संभल कर काम करना चाहिए. जितना संभव हो किसी भी नए फैसले को लेने से पहले अच्छे से सोच विचार करके ही आगे बढ़ा जाए. इसे अलावा प्रेम संबंधों में एवं पारिवारिक जीवन में ये समय असंतोष की स्थिति को अधिक दिखाने वाला होगा. इस समय के दौरान इन राशियों को विशेष जप एवं दान कार्य करना चाहिए जिससे ग्रहण के खराब फलों से मुक्ति प्राप्त हो सके.
चंद्र ग्रहण का समय
5 ओर 6 मई के मध्य इसे देखा जा सकता है और भारत में यह दृष्य होगा. इस ग्रहण के स्पर्श का समय 20:44 का होगा इसके पश्चात ग्रहण मध्य का समय 22:53 का होगा. ग्रहण के मोक्ष का समय 25:02 का होगा.
क्या होता है उपच्छाया ग्रहण
वैशाख पूर्णिमा के दिन लगने वाला ग्रहण एक प्रकार से उपच्छाया चंद्र ग्रहण होगा जिसे वास्तव में ग्रहण की छाया के रुप में जाना जाता है. हर ग्रहण के घटित होने से पूर्व चंद्रमा पृथ्वी की उपछाया में प्रवेश करता है जिसे चंद्र मालिन्य के नाम से भी जाना जाता है. उसके पश्चात ही वह पृथ्वी की वास्तविक छाया में प्रवेश करता है जिसके चलते वास्तविक रुप से ग्रहण का निर्माण होता है. ज्योतिष शास्त्र में उपच्छाया के द्वारा लगने वाले ग्रहण को ग्रहण की कोटि से कुछ अलग का स्थान प्रदान किया है. इस दिन पूजा पाठ करना एवं स्नान दान की विशेषता महत्वपूर्ण मानी गई है.