राज रानी
Devi Maa chinnamasta : इस वर्ष 4 मई 2023 को छिन्नमस्तिका जयंती का पूजन किया जाएगा. शक्ति कि दस महाविद्याओं में छिन्नमस्तिका माता भी एक प्रमुख विद्या है. देवी छिन्नमस्तिका माता का पूजन तंत्र शास्त्र में काफी विशेष रहा है. तांत्रिक पद्धति में देवी का पूजन समस्त प्रकार की क्षुद्धा की शांति हेतु होता है. यह जीवन में सफलता प्रदान करने एवं शत्रुओं को नष्ट कर देने वाली शक्ति के रुप में पूजनीय हैं. छिन्नमस्ता देवी महाविद्या के द्वारा भक्त की सभी प्रकार की चिंताओं का शमन होता है. पंचांग के अनुसार वैशाख माह की चतुर्दशी तिथि के दिन छिन्नमस्ता जयंती का पर्व भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है.
Devi Maa chinnamasta :
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट् स्वाहा॥
देवी छिन्नमस्ता का संबंध बौद्ध धर्म के तंत्र शास्त्रों में भी प्राप्त होता है. वहां देवी का स्वरुप चिन्नामुंडा या वज्रयोगिनी के रुप में जाना जाता है. देवी पूजन का संबंध तिब्बत में मौजूद ग्रंथों से भी प्राप्त होता है. अत: देवी का संबंध तंत्र शास्त्र से गहरा संबंध रहा है.
देवी का एक अन्य नाम चिंतपूर्णा भी है
छिन्नमस्ता जयंती पूजा विधि
छिन्नमस्ता जयंती का पूजन विशेष अनुष्ठा होता है जिसमें शुद्धि चित्त की पवित्रता का ध्यान रखना महत्व रखता है. इस दिन प्रात:काल से ही पूजा का आरंभ होता है. सुबह के समय सूर्योदय से पूर्व उठ कर स्नान कार्य से निवृत्त होकर लाल एवं केसरिया वस्त्र धारण करने चाहिए. इस दिन उपवास का नियम भी शामिल होता है. देवी छिन्नमस्ता की पूजा करने के लिए, भक्त वेदी पर देवी की प्रतिमा अथवा चित्र स्थापित करता है. इसके पश्चात देवी के समक्ष फल फूल एवं धूप दीप अर्पित किया जाता है देवी के साथ भगवान शिव को भी स्थापित किया जाता है. माता के पूजन के साथ भगवान का अभिषेक करते हैं. छिन्नमस्ता जयंती के शुभ दिन पर कन्याओं का पूजन भी होता है और देवी का कीर्तन और जागरण किया जाता है.
मां छिन्नमस्ता की उत्पत्ति की पौराणिक कथा
शक्ति उत्पत्ति की अनेक कथाएं हमारे सामने मौजूद हैं इनमें से प्रत्येक देवी का स्वरुप अपने आप में बेहद अलौकिक एवं अदभुत रहा है. देवी की दस महाविद्या में छिन्नमस्तिका की उत्पत्ति की कथा उनके नाम का अर्थ संबोधित करती है. कथाओं के अनुसार देवी भगवती जब एक बार मंदाकनी नदी में अपनी सहचरियों के साथ जल क्रिडा कर रही होती हैं तो उस समय उन्हें समय का जरा भी बोध नहीं होता है ओर ऎसे में स्नान-ध्यान क्रिया में अत्यधिक समय व्यतीत होने लगता है. तब मां की सहचरियों को उस समय बहुत तीव्र क्षुद्धा का अनुभव होता है. वह देवी के समक्ष अपनी बात रख नहीं पाती हैं किंतु तीव्र भूख लगने के कारण उनकी शक्ति में मध्यम होने लगती है तथा चेहरा मलीन पड़ने लगता है.
भूख की पीड़ा के चलते दोनों सहचरियों देवी से कुछ समय की मांग करती हैं तथा भोजन को खोजने लगती है. जब उन दोनों को कुछ नहीं मिलता है तब देवी अपनी सखियों की व्यथा को देख उनकी क्षुद्धा शांति हेतु उन्हें कुछ ओर समय के लिए धैर्य रखने के लिए कहती हैं. किंतु सखियों की बेचैनी और व्याकुलता समय के साथ बढ़ने लगती है वह दोनों देवि भगवती के समक्ष अपनी बेचैनी प्रकट करती हैं तब बार-बार उनकी याचना द्वारा माता तुरंत अपना खड़ग निकाल कर स्वयं का मस्त काट डालती हैं देवी के कटे हुए मस्त से रक्त की धाराएं प्रवाहित होने लगती हैं तब उन धारा के रक्त पान द्वारा सहचरियों की क्षुद्धा शांत होती है. इस क्षण से ही देवी के छिन्नमस्तिका स्वरुप का प्रादुर्भाव होता है ओर माता छिन्नमस्तिका के रुप मे स्थापित होती हैं.