Friday, 19 April 2024

Dharma & Spiritual : प्रभु को विशेष प्रिय होते हैं, निर्बल की सहायता करने वाले

 विनय संकोची परमात्मा की कृपा पाने का सबसे सरल मार्ग है दूसरों को सुख पहुंचाना और उनका हित करना। जिनके…

Dharma & Spiritual : प्रभु को विशेष प्रिय होते हैं, निर्बल की सहायता करने वाले

 विनय संकोची

परमात्मा की कृपा पाने का सबसे सरल मार्ग है दूसरों को सुख पहुंचाना और उनका हित करना। जिनके मन में दया होती है, जिनके मन में करुणा होती है, वास्तव में वे लोग ही सच्चिदानंद की दया के पात्र बनकर प्रत्येक परिस्थिति में आनंद का अनुभव करते हैं। भगवान ने स्वयं कहा है – ‘जो नीच से नीच व्यक्ति की सेवा करते हैं, वे वास्तव में मेरी सेवा करते हैं।’ इसका अर्थ यह हुआ कि सेवा परमात्मा को पाने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। लेकिन दुर्भाग्य से लोग आजकल सेवा करने में नहीं सेवा कराने में विश्वास रखते हैं और परमात्मा की कृपा से दूर होते चले जाते हैं।

लोग इस बात को समझना ही नहीं चाहते कि परमात्मा ने दूसरों को सुख पहुंचाने और उनके हित साधन का जिम्मा उन्हें सौंपा है। लेकिन किसी को भी दंडित करने का अधिकार अपने पास सुरक्षित रखा है। दंड देना भगवान का काम है। यदि कोई मनुष्य किसी को दंड देने की इच्छा रखता है, तो वह भगवान का अधिकार, उनका आसन छीनने की अनाधिकार चेष्टा करता है। ऐसा व्यक्ति अनायास ही भगवान का अपराधी हो जाता है।

आपने जिस व्यक्ति की भलाई की हो, उसे खुश देखना, उसे सुखी देखना और उसे प्रसन्न देखकर स्वयं प्रसन्न होना ही, आपके लिए पुरस्कार है। इसके विपरीत जो अपने अच्छे कर्मों के बदले में वाहवाही चाहता है, किसी फल की इच्छा रखता है, वह अभागा अपने अनमोल सत्कर्मों को मामूली दामों में बेच डालता है। लोगों को यह बात समझ लेनी चाहिए कि परमात्मा को नि:स्वार्थ सेवा ही प्रिय है, बिना किसी लोभ-लालच के सेवा करने वाले की प्रिय हैं।

अच्छे काम करने का, शुभ कर्म करने का स्वभाव तो ऐसा धन है, जिसे न कोई चोर चुरा सकता है, न कोई लुटेरा लूट सकता है और न कोई दुश्मन ही छीन सकता है। इस अनमोल धन को अपने अंतर्मन में रखने वाला परमात्मा को बहुत प्रिय होता है। ऐसे धनी को भगवान हर प्रकार से सुखी और समृद्ध बना देते हैं। आज सब लोग अधिक से अधिक धन कमाने की दौड़ और होड़ में लगे हुए हैं। सब-के-सब धन अर्जित करना चाहते हैं, सब-के-सब संपत्ति एकत्रित करना चाहते हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि धन संग्रह के लिए किसी को भी गिराने-मारने कष्ट पहुंचाने में भी हिचक नहीं रहे हैं लोग। किसी को रुलाने में भी लोगों को कोई बुराई नजर नहीं आ रही है। लोगों का सोच है कि बस धन आना चाहिए, संपत्ति बढ़नी चाहिए। कोई मरता है तो मारे, लेकिन इन अभागों को यह पता नहीं है कि जो संपत्ति लोगों को सता कर, उन्हें रुला कर अर्जित की जाती है, वह कमाने वाले को रुला कर ही विदा होती है। गलत तरीके से कमाया हुआ धन पीढ़ियों को तबाह कर देता है। इसमें किसी को किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं होना चाहिए।

आज लोग धन की प्यास के मारे तड़प रहे हैं। तड़प-तड़प कर प्राण दे रहे हैं, मरे जा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कि धन की प्यास, धन मिलने पर और अधिक बढ़ जाती है। जितना धन मिलता है, प्यास उतनी ही बढ़ती चली जाती है। जल की प्यास तो जल मिलने पर शांत हो जाती है, लेकिन धन की प्यास धन मिलने पर और ज्यादा बढ़ जाती है, और ज्यादा तीव्र हो जाती है। धन की प्यास अधिकांश व्यक्तियों को गलत रास्ते पर ले जाती है और इतना तो समझा ही जा सकता है कि गलत रास्ते पर चलने वाला व्यक्ति परमात्मा को प्रिय नहीं होता है और जो परमात्मा को प्रिय नहीं होता है, उसका कल्याण हो ही नहीं सकता है। प्यास बढ़नी चाहिए, प्यास जरूर बढ़ानी चाहिए लेकिन यह प्यास परमात्मा को पाने की होनी चाहिए, परमात्मा के निकट जाने की होनी चाहिए। सच्चिदानंद की कृपा पाने की होनी चाहिए यह प्यास। जो इस प्यास को बढ़ाने के रास्ते पर चल निकलता है, वह परमात्मा की कृपा पाता है और संतोष धन से मालामाल हो जाता है। जब संतोष धन आता है, तो संसार का तमाम धन धूल के समान प्रतीत होने लगता हैं।

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