कांवड़ यात्रा 2023 : हिन्दू धर्म में सावन सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इस महीने में देवों के देव महादेव भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। इस महीने के पहले 15 दिनों में कांवड़ यात्रा आयोजित होती है। कांवड़ यात्रा के दौरान शिवभक्त मां गंगा का पवित्र जल अपने कंधों पर लेकर आते हैं और उस जेल से अपने आराध्य भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। इस महीने में गंगा जल से भगवान शिव का अभिषेक करने का विशेष महत्व माना जाता है।
कांवड़ यात्रा 2023
हिन्दू धर्म में साफ मान्यता है कि कांवड़ से जल लेकर भगवान शिव का जलाभिषेक करने से अनेक जन्मों के पाप कट जाते हैं। भगवान श्यिाव को औधडदानी भी कहा जाता है। भगवान शिव भक्त की मामूली भक्ति से भी प्रसन्न हो जाते हैं।
कांवड़ यात्रा 2023 : जानिए सबसे पहला कांवड़ियां
पूरे संसाद में सबसे पहले कांवड लेकर कौन चला था और किसने भगवान शंकर का अभिषेक किया था, इस प्रश्न को लेकर कई कथाएं और मान्यताएं प्रचलित है। एक धार्मिक मान्यता के अनुसार परशुराम जी को सबसे पहला कांवड़िया माना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार चक्रवती राजा सहस्त्रबाहु परशुराम जी के पिता ऋषि जमदग्नि के आश्रम पहुंचे। ऋषि जमदग्नि ने राजा और उसकी सेना का आदर सत्कार किया। राजा ये जानने के लिए उत्सुक था कि एक निर्धन ब्राह्मण कैसे उसकी पूजा सेना को भोजन कराने में कामयाब हुआ।
जब राजा को पता चला कि ऋषि जमदग्नि के पास कामधेनु गाय है, जो हर मनोकामना पूरी करती है। कामधेनु को पाने के लालच में राजा ने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी। अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए भगवान परशुराम ने सहस्त्रबाहु की सभी भुजाओं को काट दिया, जिससे उसकी भी मृत्यु हो गई। परशुराम जी कि कठोर तपस्या के बाद पिता जमदग्नि को जीवनदान मिल गया।
ऋषि ने परशुराम जी को सहस्त्रबाहु की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गंगाजल से शिव का अभिषेक करने को कहा। परशुराम जी ने मीलों पैदल यात्रा की और कांवड़ में गंगाजल भरकर लाए। आश्रम के पास ही उन्होंने शिवलिंग की स्थापना कर महादेव का जलाभिषेक किया।
कांवड़ यात्रा 2023 : रावण और शिव की कथा
एक और मान्यता व कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान शिव ने हलाहल विष का सेवन कर लिया था। विष के गंभीर नकारात्मक प्रभावों ने शिवजी को असहज कर दिया. महादेव को इस पीड़ा से मुक्त कराने के लिए उनके परमभक्त रावण ने कावड़ में जल भरकर कई बरसों तक महादेव का जलाभिषेक किया, इसके चलते शिवजी जहर के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए और उनके गले में हो रही जलन खत्म हो गई। यहीं से कांवड़ यात्रा का आरंभ माना गया।
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