Vat Savitri Vrat : सनातन धर्म में वट सावित्री व्रत को बहुत फलदायी माना जाता है। वट सावित्री व्रत सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे मुख्य रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य ,पारिवारिक सुख-शांति के लिए करती हैं। यह व्रत वट (बरगद) वृक्ष के नीचे बैठकर सावित्री-सत्यवान की कथा सुनते हुए किया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से उत्तर भारत, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है।
वट सावित्री व्रत का महत्व
इस व्रत का नाम “वट” का मतलब = बरगद का पेड़ और सावित्री =(एक पवित्र स्त्री जिन्होंने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लिए थे) के नाम पर रखा गया है। सावित्री की दृढ़ भक्ति, तपस्या और बुद्धिमानी से प्रभावित होकर यमराज ने उनके पति को जीवनदान दिया था। वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखती हैं और वट (बरगद) के पेड़ की पूजा करती हैं। इस साल यह व्रत 26 मई 2025 को यानी आज के दिन रखा जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सच्चे मन से पूजा करने और व्रत रखने से पति की उम्र लंबी होती है और शादीशुदा जिंदगी में सुख-शांति बनी रहती है।
व्रत कब किया जाता है?
यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाता है। कुछ क्षेत्रों में इसे पूर्णिमा को भी मनाया जाता है, लेकिन अधिकतर जगहों पर अमावस्या को ही इसका आयोजन होता है।
वट सावित्री व्रत की कथा
बहुत समय पहले की बात है। भद्रदेश नामक राज्य में अश्वपत नाम के राजा और उनकी रानी मालवती रहते थे। उनके घर एक सुंदर और तेजस्वी कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम उन्होंने सावित्री रखा। वह बहुत बुद्धिमान, धर्मपरायण और सुंदर थी। जब सावित्री विवाह योग्य हुई, तो उसके पिता ने उसे स्वयं वर चुनने की अनुमति दी।
सावित्री ने सत्यवान नामक एक राजकुमार को अपना वर चुना। सत्यवान एक वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे, जो किसी कारणवश अपना राज्य खो चुके थे और वन में रहते थे। लेकिन एक बात जिसने सबको चिंतित कर दिया वह यह थी कि एक भविष्यवाणी के अनुसार सत्यवान की मृत्यु एक साल के भीतर हो जाएगी। लेकिन सावित्री अपने निर्णय पर अडिग रही और सत्यवान से विवाह कर लिया।
विवाह के बाद सावित्री अपने पति और सास-ससुर के साथ वन में रहने लगी। वह बहुत सेवा भाव से सबका ध्यान रखती थी। जिस दिन सत्यवान की मृत्यु होनी थी, उस दिन सावित्री ने व्रत रखा और वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा की। जब सत्यवान लकड़ियां काटने जंगल गया, तो सावित्री भी उसके साथ गई। थोड़ी देर बाद सत्यवान के सिर में दर्द हुआ और वह सावित्री की गोद में लेट गया। तभी यमराज, मृत्यु के देवता, उसकी आत्मा लेने आए।
सावित्री ने यमराज का पीछा किया और उनसे सत्यवान की आत्मा वापस देने की प्रार्थना की। यमराज ने कहा कि यह नियम के विरुद्ध है, लेकिन सावित्री की बुद्धिमानी, प्रेम और दृढ़ संकल्प देखकर वे प्रसन्न हो गए। उन्होंने सावित्री को तीन वरदान मांगने का अवसर दिया। सावित्री ने पहले अपने ससुर का राज्य वापस मांगा, फिर अपने सास-ससुर की आंखों की रोशनी, और अंत में अपने लिए सौ पुत्र मांगे।
यमराज ने बिना सोचे समझे वरदान दे दिए, लेकिन जब सावित्री ने सौ पुत्रों की बात कही तो यमराज को समझ आया कि बिना सत्यवान के यह संभव नहीं है। उन्होंने सावित्री की दृढ़ता को सराहा और सत्यवान को जीवनदान दे दिया। इस तरह सावित्री के प्रेम और तप से सत्यवान की मृत्यु टल गई। तभी से महिलाएं सावित्री की तरह अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री व्रत करती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं, जो दीर्घायु और अटल प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
वट सावित्री व्रत की पूजा विधि
1. इस दिन महिलाएं उपवास करती हैं।
2. इस दिन महिलाओं को सोलह शृंगार करना चाहिए ।
3. सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लेती है।
4. पेड़ की जड़ मे जल चढाती है।
5. बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है – उसे जल, फल, फूल, रोली, मौली ,अक्षत,धूप, दीप आदि अर्पित किए जाते हैं।
6. वट वृक्ष की परिक्रमा की जाती है और मौली (धागा) लपेटा जाता है।
7. हर परिक्रमा के साथ अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करती हैं ।
8. सावित्री-सत्यवान की कथा सुनी और सुनाई जाती है।
9. आखिरी में आरती करती हैं और पूजा में हुई गलतियों के लिए माफी मांगती है।
10. यह व्रत शाम को खोला जाता है। Vat Savitri Vrat :
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