Naga Sadhu: सनातन धर्म में संतों को ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है, नागा साधुओं के रहस्यमयी जीवन के बारे में आपको बताते हैं…
सन्यासी जीवन सादगी और संयम की मिसाल माना जाता है…लेकिन नागा साधुओं (Naga Sadhu) के जीवन शैली लोगों को हैरान कर देते हैं…सिर पर जटा और बदन पर भभूत …हर नागा साधुत्व का पहली पहचान है…..खुद को शिव का दुत और ईश्वर का सच्चा उपासक बताने वाले इन नागा साधुओं का अद्भुत रहस्य है… जिससे शायद आप भी अंजान हैं..इनके अध्याय की शुरुआत ही इनके अंत से होती है…चाहे कपकपाती ठंड हो या गर्मी या फिर बरसात….शरीर पर धुनी या भस्म लपेटकर आजीवन नग्न अवस्था में ही घूमते हैं ये साधु .
Naga Sadhu
शायद कम ही लोग जानते हैं की खुद को भगवान का दूत मानने वाले नागा साधुओं के नग्न रहने के पीछे क्या रहस्य है ? दरअसल नागा साधु प्रकृति और प्राकृतिक अवस्था को विशेष महत्व देते हैं…इसलिए हमेशा वे वस्त्रहीन ही रहते हैं। इनका मानना है कि इंसान निर्वस्त्र जन्म लेता है क्योंकि ये अवस्था प्राकृतिक है…इसी भावना का आत्मसात कर नागा साधु हमेशा निर्वस्त्र रहते हैं।
आप सोच रहे होंगे बारहों महीने बिना कपड़ों में रहने वाले नागा साधुओं को क्या ठंड नहीं लगती? इसके पीछे का रहस्य वे योग साधना बताते हैं….
नागा साधु बनने की प्रक्रिया में 12 साल लग जाते हैं, जिसमें शुरू के 6 साल काफी महत्वपूर्ण माना गया है… इस अवधि में वे नागा पंथ में शामिल होने के लिए जरूरी जानकारियों को हासिल करते हैं और इस दौरान लंगोट के अलावा कुछ भी नहीं पहनते…कुंभ मेले में प्रण लेने के बाद इस लंगोट का भी त्याग कर देते हैं …इसके बाद जीवनभर नग्न अवस्था में रहते हैं। नागा साधु बनने की प्रक्रिया में सबसे पहले इन्हें ब्रह्मचार्य की शिक्षा प्राप्त करनी होती है…इसमें सफल होने के बाद महापुरुष की दीक्षा दी जाती है और फिर यज्ञोपवीत होता है…जिसके बाद वे अपने परिवार और स्वंय अपना पिंडदान करते हैं. इस प्रकिया को ‘बिजवान’ कहा जाता है. यही कारण है कि नागा साधुओं के लिए सांसारिक परिवार का महत्व नहीं होता, ये समुदाय को ही अपना परिवार मानते हैं।