Friday, 21 March 2025

त्रिपुर सुंदरी : 15 किलो सोने और 180 किलो चांदी से होगा देवी का श्रृंगार

Navratri special त्रिपुर सुंदरी। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला के गोमती जिले के उदयपुर की पहाड़ियों पर मौजूद त्रिपुर सुंदरी मंदिर…

त्रिपुर सुंदरी : 15 किलो सोने और 180 किलो चांदी से होगा देवी का श्रृंगार

Navratri special त्रिपुर सुंदरी। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला के गोमती जिले के उदयपुर की पहाड़ियों पर मौजूद त्रिपुर सुंदरी मंदिर स्थित है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। त्रिपुर यानी तीनों लोकों (आकाश, धरती और पाताल) की श्रेष्ठ सुंदरी। जनश्रुति और मान्यता है कि यहां देवी सती का सीधा पैर गिरा था। इन्हीं के नाम पर त्रिपुरा स्टेट का नाम भी रखा गया है। त्रिपुर सुंदरी दुर्गा का काली अवतार हैं। यहां त्रिपुर सुंदरी की पूजा सुबह चार बजे से शुरू हो जाती है, पूरी नवरात्रि देवी का विशेष पूजन यहां चलेगा। त्रिपुरेश्वरी और त्रिपुर सुंदरी के नाम से प्रसिद्ध माता त्रिपुरा सुंदरी के प्रातःकाल के दर्शन के साथ सैकड़ों साल पुरानी मान्यता जुड़ी हुई है। यहां सुबह के दर्शन को सबसे अहम माना जाता है।

तंत्र साधना के लिए यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध है

माना जाता है कि त्रिपुर सुंदरी दस महाविद्याओं में से एक सौम्य कोटी की माता हैं। यहां उनके साथ विराजमान भैरव को त्रिपुरेश के नाम से जाना जाता है। माता की इस पीठ को कूर्मपीठ भी कहा जाता है। तंत्र साधना के लिए यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध है और मंदिर में तांत्रिकों का मेला लगा रहता है। यहां तंत्र-मंत्र करने वाले साधक आते हैं और अपनी साधना को पूर्ण करने के लिए देवी की पूजा करते हैं। बलि भी चढ़ाते हैं।

15 किलो सोना और 180 किलो चांदी से होगा देवी का श्रृंगार

पिछले 40 साल से नवरात्रि में चंडी पूजा करते आ रहे पुरोहित बताते हैं कि 523 साल पहले नवरात्रि के समय जिस विधि से इस मंदिर में चंडी पूजा और पाठ होते थे, आज भी सब कुछ वैसा ही चल रहा है। त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के प्रबंधक मानिक दत्ता कहते हैं, ”महाराजा के समय से लेकर अब तक सरकारी खजाने में मंदिर का करीब 15 किलो सोने और 180 किलो चांदी के गहने जमा हैं। साल में केवल दो बार इन आभूषणों को कड़ी सुरक्षा के बीच मंदिर में लाया जाता है। केवल अष्टमी और दीपावली पर देवी को पहनाने के लिए जिन आभूषणों की जरूरत होती है वही लाए जाते हैं।

प्रतिदिन बकरे की बलि चढ़ती है देवी को

इसे तंत्र विद्या की सिद्ध पीठ माना गया है, मंदिर में देवी को रोज एक बकरे की बलि चढ़ाई जाती है, माना तो ये भी जाता है कि प्राचीन काल में रोज देवी को एक नरबलि दी जाती थी। बकरे की बलि मंदिर ट्रस्ट की ओर से होती है। आम लोग भी अपनी मनोकामना पूरी होने पर मंदिर में बलि चढ़ाते हैं। इसके लिए ट्रस्ट ने फीस तय की हुई है।

मंदिर में दीपावली पर भी चढ़ते हैं सोने चांदी के गहन, होता है बड़ा उत्‍सव

त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ में तंत्र साधक साधनाएं करते हैं। त्रिपुर सुंदरी मंदिर में सबसे बड़ा उत्सव दीपावली पर होता है। इसे यहां दीपावली काली पूजा के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर बड़ा मेला लगता है।

त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ को कूर्म पीठ भी कहा जाता है

इस मंदिर का वास्‍तु के दृष्टिकोण से भी महत्‍व है। मंदिर की बनावट और वास्तु कुछ इस तरह से तैयार किया गया है कि ये भक्तों और पर्यटकों दोनों को आकर्षित करता है। मंदिर का निर्माण बंगाली वास्तुशैली एकरत्न में कराया गया था। जिस पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है, उसका आकार कछुए की पीठ के जैसा है। इसी कारण इसे कूर्म पीठ भी कहते हैं। एक मान्‍यता के अनुसार इस जगह भगवान विष्णु का मंदिर बनना था। निर्माण शुरू भी हो चुका था, लेकिन त्रिपुरा के तत्कालीन राजा धन्यमाणिक्य को सपने में देवी ने दर्शन दिए। सपने में राजा को ये पता चला कि जहां विष्णु मंदिर बन रहा है, वहां पहले शक्तिपीठ था। इस सपने के बाद राजा ने बांग्लादेश के चिटगांव में काले पत्थर की बनी त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमा को लाकर मंदिर के गर्भगृह में स्थापित कर दिया। मंदिर के गर्भगृह में काले ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित दो प्रतिमाएं स्थापित हैं। पांच फीट ऊंचाई की मुख्य प्रतिमा माता त्रिपुर सुंदरी की है, जबकि दो फीट की दूसरी मूर्ति है, जिसे छोटी माता कहा जाता है, यह मूर्ति भुवनेश्वरी देवी की है।

मंदिर में खासतौर पर चढ़ाई जाने वाली चीजें

इस मंदिर में देवी को साड़ी, सोने के गहने, मिठाइयां, भोग के लिए चावल-दाल और बलि के लिए बकरे देने का चलन है। यह सारा प्रसाद मंदिर प्रबंधन कार्यालय में पहले जमा करना होता है। भक्तों को मंदिर में बनने वाले अन्न भोग खाने के लिए 70 रुपये की अलग से एक पर्ची लेनी होती है।

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