Magh Gupt Navratri : गुप्त नवरात्रि के समय पर माता का विविध रुप से पूजन किया जाता है. नौ दिनों के दौरान किया गया दस महा विद्या स्त्रोत भक्तों की सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है. माता के पूजन में यदि महाविद्या स्त्रोत का पाठ कर लिया जाए तो इसके द्वारा भक्तों की साधना को शुभ फल प्राप्त होते हैं. माता के इन दसों रुपों की पूजा एक साथ संपन्न हो जाती है. शास्त्रों के अनुसार दस महाविदया साधना के लिए दस महा विद्या स्त्रोत का पाठ अत्यंत ही विशेष फल प्रदान करने वाला होता है.
दस महा विद्या स्त्रोत साधना नियम
गुप्त नवरात्रि के समय भक्त माता की ज्योत प्रज्जवलित करते हैं. अनेक प्रकार के उपायों एवं कार्यों द्वारा माता की कृपा भी पाते हैं. ऎसे में इन के साथ ही दस महा विद्या स्त्रोत का यदि नियमित रुप से पाठ कर लिया जाए तो इसके द्वारा भक्तों पर माता की विशेष कृपा बनती है. माता के स्त्रोत का पाठ करने हेतु प्रात:काल पूजा के लिए समस्त तैयारियां कर लेने के पश्चात आसन पर बैठ कर इस स्त्रोत का पाठ करना चाहिए.
दसमहाविद्या स्त्रोत से शांत होते है नव ग्रह
ज्योतिष अनुसार दस महा विद्या स्त्रोत के पाठ द्वारा नव ग्रहों की शांति भी होती है. साधक के भीतर जागरण होता है तथा सात चक्र संतुलित होते हैं. यह स्त्रोत हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर देने के साथ साथ आत्मिक शांति एवं शुभता को प्रदान करने वाला होता है. गुप्त नवरात्रि एक ऎसा समय जब ब्रह्माण की उर्जा में शक्ति का प्रवाह बेहद विशेष रुप से हो रहा होता है. यह वह समय होता है जब शक्ति एवं साधना प्राप्ति को कर पाना सहज रुप से संभव बन जाता है.
गुप्त नवरात्रि में करें दस महा विद्या स्त्रोत साधना
गुप्त नवरात्रि का समय तंत्र एवं मंत्र दोनों की सिद्धि हेतु बहुत विशेष माना गया है. इस समय के दोरान यदि साधक माता के इस स्त्रोत एवं मंत्र का जाप करता है तो उसे इसके सिद्धिदायक फल प्राप्त होते हैं.
दस महाविद्या स्तोत्र
नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्ड-मुण्ड-विनाशिनि । नमस्ते कालिके । काल महाभयविनाशिनी ।।
शिवे रक्ष जगद्धात्रि । प्रसीद हरिवल्लभे । प्रणमामि जगद्धात्रीं, जगत्पालन कारिणीम् ।।
जगत्क्षोभकरीं विद्यां, जगत्सृष्टि विधायिनीम् । करालां विकटा घोरां, मुण्डमाला विभूषिताम् ।।
हरार्चितां हराराध्यां, नमामि हरवल्लभाम् । गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालंकार भूषिताम् ।।
हरिप्रियां महामायां, नमामि ब्रह्म-पूजिताम् । सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधर गणैर्युताम् ।।
मन्त्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिंग शोभिताम् । प्रणमामि महामायां, दुर्गा दुर्गतिनाशिनीम् ।।
उग्रामुग्रमयीमुग्र-तारामुग्र गणैर्युताम् । नीलां नील-घन-श्यामां, नमामि नील-सुन्दरीम् ।।
श्यामांगीं श्यामघटिकां, श्यामवर्ण विभूषिताम् । प्रणामामि जगद्धात्रीं, गौरीं सर्वार्थ-साधिनीम् ।।
विश्वेश्वरीं महा-घोरां, विकटां घोर-नादिनीम् । आद्यामाद्य-गुरोराद्यामाद्यानाथ-प्रपूजिताम् ।।
श्रीदुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् । प्रणमामि जगद्धात्रीं, चन्द्र-शेखर-वल्लभाम् ।।
त्रिपुरा-सुन्दरीं बालामबला-गण-भूषिताम् । शिवदूतीं शिवाराध्यां, शिव-ध्येयां सनातनीम् ।।
सुन्दरीं तारिणीं सर्व शिवागणविभूषिताम् । नारायणीं विष्णु-पूज्यां, ब्रह्म-विष्णु-हर-प्रियाम् ।।
सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्य-गणवर्जिताम् । सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्व-सिद्धिदाम् ।।
विद्यां सिद्धिप्रदां विद्यां, महा-विद्या-महेश्वरीम् । महेश-भक्तां माहेशीं, महा-काल-प्रपूजिताम् ।।
प्रणमामि जगद्धात्रीं, शुम्भासुर-विमर्दिनीम् । रक्त-प्रियां रक्त-वर्णां, रक्त-वीज-विमर्दिनीम् ।।1
भैरवीं भुवनादेवीं, लोल-जिह्वां सुरेश्वरीम् । चतुर्भुजां दशभुजामष्टा दशभुजां शुभाम् ।।
त्रिपुरेशीं विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम् । अट्टहासामट्टहास-प्रियां धूम्र-विनाशिनीम् ।।
कमलां छिन्नमस्तां च, मातंगीं सुर-सुन्दरीम् । षोडशीं विजयां भीमां, धूम्रां च बगलामुखीम ।।
सर्व-सिद्धि-प्रदां सर्वविद्या मन्त्रविशोधिनीम् । प्रणमामि जगत्तारां, सारं मन्त्र-सिद्धये ।। ।
।। इति श्री दस महाविद्या स्तोत्रं समाप्तम्।।
एस्ट्रोलॉजर राजरानी