Vat Savitri Vrat : वट सावित्री का व्रत सनातन परंपरा का एक अहम हिस्सा है, जिसे सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और शादीशुदा जीवन की सुखद कामना के लिए रखती हैं। यह व्रत सुहागन महिलाओं के लिए एक अत्यंत पावन पर्व है ,जिसमें महिलाएं व्रत रखती है और वट वृक्ष की पूजा अर्चना करती है। सुबह के साथ साथ इस व्रत में शाम का समय भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मान्यता है कि देवी सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण वट वृक्ष के पास यमराज से मांगे थे तभी से वटवृक्ष समृद्धि पतिव्रत धर्म और साथ-साथ सुहाग और लंबी उम्र का प्रतीक बन गया।
सावित्री तथा सत्यवान की कथा से जुड़ा है वट सावित्री का व्रत
वट सावित्री का व्रत एक प्रसिद्ध कथा से जुड़ा हुआ है। यह प्रसिद्ध कथा सत्यवान तथा सावित्री के प्रेम की कथा है। कथा कुछ इस प्रकार से है कि राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने माता सावित्री की उपासना की और उनसे एक पुत्री का वर मांगा। माता सावित्री ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया इसके बाद उनका नाम सावित्री रखा गया।
देवी सावित्री जब विवाह की योग्य हुई तो उनके स्वयंवर का आयोजन किया गया जिसमें उन्होंने शाल्व देश के राजकुमार सत्यवान को पति के रूप में चुना। परंतु नारद मुनि ने देवी सावित्री को चेतावनी दी कि सत्यवान की आयु केवल एक वर्ष की ही बची है किंतु देवी सावित्री अपनी निर्णय पर अटल रही और उन्होंने सत्यवान से विवाह कर लिया।
विवाह के बाद सत्यवान एक दिन जंगल में लड़कियां काट रहे थे कि तभी वह बेहोश होकर सावित्री की गोद में जा गिरे। ठीक उसी वक्त यमराज उनके प्राण हरने आए। जब वह सत्यवान की आत्मा को अपने साथ लेकर जा रहे थे तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी।
यमराज में कितनी ही बार उन्हें वापस लौट जाने के लिए कहा लेकिन सावित्री अपनी निर्णय पर अडिग रही। उनकी भक्ति प्रेम समर्पण और पतिव्रत धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने उन्हें तीन वर मांगने के लिए कहा।
तब देवी सावित्री ने अपने धैर्य और बुद्धिमत्ता से तीन वर मांगे।
1. उनके सास ससुर की आंखों की खोई हुई रोशनी और राज्य वापसी।
2. उनके पति को सौ पुत्र।
3. स्वयं को 100 पुत्रों की मां होने का सौभाग्य।
उनके वर मांगने पर यमराज ने उन्हें तथास्तु कह दिया लेकिन बाद में उन्हें समझ आया कि बिना सत्यवान के यह संभव नहीं है इसलिए उन्होंने सत्यवान को जीवन दान दे दिया। इस कथा से हमें यह संदेश मिलता है कि नारी के अटूट प्रेम और दृढ़ संकल्प के सामने मृत्यु को भी हारना पड़ता है। देवी सावित्री की भक्ति प्रेम और समर्पण के कारण ही सुहागन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करके अपने पति की लंबी आयु की कामना करती है।
वट सावित्री व्रत में शाम का महत्व
वट सावित्री व्रत में शाम के समय महिलाएं स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करती है। महिलाएं थाली में चावल , रोली ,सिंदूर , लाल चूडय़िां,फल ,मिठाई ,सुहागानों की निशानी ,कच्चा सूत और जल से भर लोटा सजाती है। उसके बाद जल का लोटा वट वृक्ष को अर्पित करके कच्चे सूट से वृक्ष की परिक्रमा करती है और अपने वैवाहिक जीवन के अखंड और सुखद होने की कामना करती है। Vat Savitri Vrat
अटूट प्रेम का प्रतीक
वट वृक्ष की परिक्रमा और पूजा अर्चना के बाद सावित्री सत्यवान की कथा होती है जो नारी के अटूट प्रेम का प्रतीक है। उसके बाद दीप जलाकर महिलाएं माता सावित्री का ध्यान करके अपने पति के चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेती है। अलग-अलग क्षेत्र में व्रत के नियम अलग है ,कुछ स्थानों पर महिलाएं निर्जला उपवास करती है तो कुछ स्थानों पर पूजा के बाद फलाहार या सात्विक भोजन किया जाता है। कुछ स्थानों पर व्रत के दौरान सामूहिक भजन कीर्तन का आयोजन किया जाता है। Vat Savitri Vrat
वट सावित्री की संध्या
वट सावित्री की यह संध्या भारतीय परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो नारी के संस्कार और प्रेम के प्रति अटूट समर्पण का प्रतीक है। Vat Savitri Vrat
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