वो जिला जिसे कहते हैं ‘लहसुन का शहर’, यहीं लगती है देश की सबसे बड़ी मंडी


केंद्र सरकार ने भारत और भूटान को जोड़ने वाले महत्वाकांक्षी रेल प्रोजेक्ट की घोषणा कर दी है। इस परियोजना के तहत असम और पश्चिम बंगाल के शहरों को भूटान के गेलेफू और समत्से से जोड़ा जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम केवल यात्रा को आसान नहीं बनाएगा, बल्कि दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक सहयोग को भी नई ऊँचाइयों तक ले जाएगा। उम्मीद है कि अगले चार वर्षों में यह रेल नेटवर्क पूरी तरह तैयार हो जाएगा। भूटान हिमालय की ऊँची पहाड़ियों में बसा है, जहां कठिन भौगोलिक परिस्थितियों और कम तथा बिखरी हुई आबादी के कारण अब तक रेल नेटवर्क का निर्माण संभव नहीं हो सका। India-Bhutan Rail Connection
भारी खर्च और तकनीकी चुनौतियों ने भी इसकी राह में बाधाएं खड़ी कीं। लेकिन अब यह इतिहास बनने वाला है। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद भूटान में पहली बार ट्रेन चलेगी, जिससे पर्यटन और व्यापार दोनों को मजबूती मिलेगी। भूटान अकेला नहीं है। दुनिया के कई ऐसे देश हैं, जहां अब तक रेल नेटवर्क नहीं पहुंच पाया। भारत-भूटान कनेक्शन की यह पहल इसलिए भी खास है क्योंकि यह दर्शाती है कि तकनीकी और आर्थिक चुनौतियों को पार कर भी नई संभावनाओं को जन्म दिया जा सकता है। India-Bhutan Rail Connection
लीबिया में 1998 में रेल नेटवर्क बनाने की कई योजनाएं बनीं, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक उलझनों ने उन्हें कभी साकार नहीं होने दिया। 2011 में प्रथम लीबियाई गृहयुद्ध के बाद, त्रिपोली और बेनगाज़ी जैसे प्रमुख शहरों को जोड़ने की सारी कोशिशें ठप हो गईं। आज लीबिया में यात्रा के लिए सड़क नेटवर्क और समुद्री बंदरगाह ही मुख्य विकल्प हैं। सीमित परिवहन साधनों के कारण लोग शहरों के बीच अक्सर बस, निजी कार या हवाई जहाज़ का सहारा लेते हैं। यही वजह है कि रेल नेटवर्क का सपना यहाँ आज भी अधूरा ही रह गया है।
सेंट्रल अफ्रीका का यह देश अपने रेगिस्तानी इलाके और सीमित बुनियादी ढांचे के लिए मशहूर है। फ्रांसीसी औपनिवेशिक योजनाकारों ने कभी चाड को कैमरून और नाइजीरिया से जोड़ने के लिए रेल नेटवर्क विकसित करने की कोशिश की, लेकिन यह परियोजना कभी पूरी तरह सफल नहीं हो पाई। आज भी चाड में लोगों की यात्रा और माल ढुलाई मुख्य रूप से सड़क और नदी मार्ग पर निर्भर है। रेल का सपना यहाँ रह गया है, लेकिन देश की चुनौतीपूर्ण भौगोलिक परिस्थितियाँ इसे साकार होने नहीं देतीं।
2014 में नाइजर ने नियामे से डोसो तक रेल नेटवर्क बनाने का साहसिक प्रयास किया, लेकिन यह योजना कभी पूरी तरह सफल नहीं हो सकी। यहाँ रेलवे का अभाव लोगों को शहरों के बीच यात्रा के लिए सड़क और साझा टैक्सियों पर निर्भर बनाता है। इसके अलावा, नदियों और जलमार्गों के माध्यम से नावों और छोटे जहाजों का इस्तेमाल भी आम है। नाइजर की चुनौतीपूर्ण भौगोलिक स्थिति और सीमित इंफ्रास्ट्रक्चर ने इसे रेल के लिए मुश्किल बना दिया, जिससे देश में रेल का सपना आज भी अधूरा ही है। India-Bhutan Rail Connection
सोमालिया में 1910 के दशक में इतालवी उपनिवेशवादियों ने पहली बार रेलमार्ग स्थापित करने की कोशिश की थी, लेकिन 1940 के दशक में ब्रिटिश कब्जे के दौरान यह पूरी तरह नष्ट कर दिया गया। आज भी सोमालिया में चुनौतीपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा की समस्याओं के कारण नए रेल नेटवर्क का विकास संभव नहीं हो पाया है। देश में यातायात के मुख्य साधन सड़क मार्ग और छोटे तटीय बंदरगाह ही हैं, जबकि रेल का सपना केवल इतिहास की किताबों में ही जीवित है।
ओमान में अब तक बड़ा और स्थायी रेल नेटवर्क विकसित नहीं हो पाया है। हां, देश में एक टूरिस्ट ट्रेन जरूर है, जो अल हूटा गुफा जैसी अद्भुत जगहों से होकर गुजरती है, लेकिन आम यात्री और मालवाहक रेल सेवाओं का सपना अभी भी अधूरा है। हाल के वर्षों में ओमान ने 1,300 मील से ज्यादा लंबाई वाले राष्ट्रीय रेल नेटवर्क और राजमार्ग परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन अभी तक इसे वास्तविकता में बदल पाना संभव नहीं हुआ।
आर्थिक कठिनाइयों और लगातार अशांति के बीच यमन में रेल नेटवर्क हमेशा एक अधूरा सपना ही रहा है। समय-समय पर देश में रेल परियोजनाओं के प्रस्ताव आते रहे, लेकिन कोई भी हकीकत में तब्दील नहीं हो पाया। इसका मुख्य कारण है यमन की सड़कें — जिनमें से केवल एक छोटा हिस्सा ही पक्का है। देश में लंबी दूरी की यात्राओं और माल ढुलाई के लिए लोग मुख्य रूप से बस, निजी वाहन और हवाई मार्ग पर निर्भर हैं। भारत-भूटान रेल कनेक्शन की यह पहल न केवल क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करेगी, बल्कि भूटान और भारत के बीच आर्थिक और पर्यटन संबंधों में नई ऊँचाइयां भी लाएगी। India-Bhutan Rail Connection


