holashtak 2022 : 10 मार्च से लगेगा होलाष्टक, जानिए क्यों नहीं करते इसमें शुभ कार्य?

Holashtak 2022
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calendar02 Dec 2025 03:22 AM
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holashtak 2022 : फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक की अवधि को शास्त्रों में होलाष्टक कहा गया है। होलाष्टक (holashtak 2022) शब्द दो शब्दों का संगम है। होली तथा आठ अर्थात 8 दिनों का पर्व। यह अवधि इस साल 10 मार्च से 17 मार्च तक अर्थात होलिका दहन तक है। इन दिनों गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार, विवाह संबंधी वार्तालाप, सगाई, विवाह, किसी नए कार्य, नींव आदि रखने, नया वाहन लेने, आभूषण खरीदने, नया व्यवसाय आरंभ या किसी भी मांगलिक कार्य आदि का आरंभ शुभ नहीं माना जाता। इस मध्य 16 संस्कार भी नहीं किए जाते। नवविवाहता को पहली होली मायके की बजाय ससुराल में मनानी चाहिए।

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इसके पीछे ज्योतिषीय एवं पौराणिक, दोनों ही कारण माने जाते हैं। एक मान्यता के अनुसार कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग कर दी थी। इससे रुष्ट होकर उन्होंने प्रेम के देवता को फाल्गुन की अष्टमी तिथि के दिन ही भस्म कर दिया था। कामदेव की पत्नी रति ने शिव की आराधना की और कामदेव को पुनर्जीवित करने की याचना की जो उन्होंने स्वीकार कर ली। महादेव के इस निर्णय के बाद जन साधारण ने हर्षोल्लास मनाया और होलाष्टक का अंत दुलंहडी को हो गया। इसी परंपरा के कारण यह 8 दिन शुभ कार्योंं के लिए वर्जित माने गए।

ज्योतिषीय कारण परंतु ज्योतिषीय कारण अधिक वैज्ञानिक, तर्क सम्मत तथा ग्राह्य है। ज्योतिष के अनुसार, अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल, तथा पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव के हो जाते हैं। इन ग्रहों के निर्बल होने से मानव मस्तिष्क की निर्णय क्षमता क्षीण हो जाती है और इस दौरान गलत फैसले लिए जाने के कारण हानि होने की संभावना रहती है। विज्ञान के अनुसार भी पूर्णिमा के दिन ज्वार भाटा, सुनामी जैसी आपदा आती रहती हैं या पागल व्यक्ति और उग्र हो जाता है। ऐसे में सही निर्णय नहीं हो पाता। जिनकी कुंडली में नीच राशि के चंद्रमा, वृश्चिक राशि के जातक, या चंद्र छठे या आठवें भाव में हैं उन्हें इन दिनों अधिक सतर्क रहना चाहिए। मानव मस्तिष्क पूर्णिमा से 8 दिन पहले कहीं न कहीं क्षीण, दुखद, अवसाद पूर्ण, आशंकित निर्बल हो जाता है। ये अष्ट ग्रह, दैनिक कार्यक्लापों पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। इस अवसाद को दूर रखने का उपाय भी ज्योतिष में बताया गया है। इन 8 दिनों में मन में उल्लास लाने और वातावरण को जीवंत बनाने के लिए लाल या गुलाबी रंग का प्रयोग विभिन्न तरीकों से किया जाता है। लाल परिधान मूड को गर्मा देते हैं यानी लाल रंग मन में उत्साह उत्पन्न करता है। इसी लिए उत्तर प्रदेश में आज भी होली का पर्व एक दिन नहीं अपितु 8 दिन मनाया जाता है। भगवान कृष्ण भी इन 8 दिनों में गोपियों संग होली खेलते रहे और अंततः होली में रंगे लाल वस्त्रों को अग्नि को समर्पित कर दिया। इसलिए होली मनोभावों की अभिव्यक्ति का पर्व है जिसमें वैज्ञानिक महत्ता है, ज्योतिषीय गणना है, उल्लास है, पौराणिक इतिहास है। भारत की सुंदर संस्कृति है जब सब अपने भेदभाव मिटा कर एक हो जाते हैं।

शुभ मुहूर्त-

फाल्गुन पूर्णिमा 2022

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 17 2022 को 13-30 बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 18 2022 को 12-48 बजे

होलिका दहन 17 मार्च 2022

होलिका दहन मुहूर्त – शाम 6:33 से 8:58

होली बसंत ऋतु में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय पर्व/त्योहार है। वस्तुतः यह रंगों का त्योहार है। यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहला दिन होलिका दहन किया जाता है उसके दूसरे दिन रंग खेला जाता है। फाल्गुन मास में मनाए जाने के कारण होली को फाल्गुनी भी कहते हैं।

होलाष्टक से जुड़ी मान्यताएं होलाष्टक से जुडी मान्यताओं को भारत के कुछ भागों में ही माना जाता है। इन मान्यताओं का विचार सबसे अधिक पंजाब में देखने में आता है। होली के रंगों की तरह होली को मनाने के ढंग में विभिन्न है। होली उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडू, गुजरात, महाराष्ट्र, उडिसा, गोवा आदि में अलग ढंग से मनाने का चलन है। देश के जिन प्रदेशों में होलाष्टक से जुड़ी मान्यताओं को नहीं माना जाता है। उन सभी प्रदेशों में होलाष्टक से होलिका दहन के मध्य अवधि में शुभ कार्य करने बन्द नहीं किये जाते है।

होलिका पूजन करने के लिये होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी खास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है। जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है। जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है। होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है। सबसे पहले इस दिन, होलाष्टक शुरु होने वाले दिन होलिका दहन स्थान का चुनाव किया जाता है। इस दिन इस स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर, इस स्थान पर होलिका दहन के लिये लकड़ियां एकत्र करने का कार्य किया जाता है। इस दिन जगह-जगह जाकर सूखी लकड़ियां विशेष कर ऐसी लकड़ियां जो सूखने के कारण स्वयं ही पेडों से टूट्कर गिर गई हों, उन्हें एकत्र कर चौराहे पर एकत्र कर लिया जाता है। होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक प्रतिदिन इसमें कुछ लकड़ियां डाली जाती है। इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बड़ा ढेर बन जाता है। इस दिन से होली के रंग फिजाओं में बिखरने लगते है। अर्थात होली की शुरुआत हो जाती है। बच्चे और बड़े इस दिन से हल्की फुलकी होली खेलनी प्रारम्भ कर देते हैं। होलाष्टक से मिलती जुलती होली की एक परम्परा राजस्थान के बीकानेर में देखने में आती है। पंजाब की तरह यहां भी होली की शुरुआत होली से आठ दिन पहले हो जाती है। फाल्गुन मास की सप्तमी तिथि से ही होली शुरु हो जाती है, जो धूलैण्डी तक रहती है। राजस्थान के बीकानेर की यह होली भी अंदर मस्ती, उल्लास के साथ साथ विषेश अंदाज समेटे हुए हैं। इस होली का प्रारम्भ भी होलाष्टक में गडने वाले डंडे के समान ही चौक में खम्भ पूजने के साथ होता है।

होलाष्टक की पौराणिक मान्यता फाल्गुण शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन अर्थात पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। इस दिन से मौसम की छठां में बदलाव आना आरम्भ हो जाता है। सर्दियां अलविदा कहने लगती है और गर्मियों का आगमन होने लगता है। साथ ही बसंत के आगमन की खुशबू फूलों की महक के साथ प्रकृ्ति में बिखरने लगती है। होलाष्टक के विषय में यह माना जाता है कि जब भगवान श्री भोलेनाथ ने क्रोध में आकर कामदेव को भस्म कर दिया था, तो उस दिन से होलाष्टक की शुरुआत हुई थी। होलिका में गाय के गोबर से बने उपले की माला बनाई जाती है उस माला में छोटे-छोटे सात उपले होते हैं। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका उद्देश्य यह होता है कि होली के साथ घर में रहने वाली बुरी नज़र भी जल जाती है और घर में सुख समृद्धि आने लगती है। लकड़ियों व उपलों से बनी इस होलिका का मध्याह्न से ही विधिवत पूजा प्रारम्भ होने लगती है। यही नहीं घरों में जो भी बने पकवान बनता है होलिका में उसका भोग लगाया जाता है। शाम तक शुभ मुहूर्त पर होलिका का दहन किया जाता है। इस होलिका में नई फसल की गेहूँ की बालियों और चने के झंगरी को भी भूना जाता है और उसको खाया भी जाता है। होलिका का दहन हमें समाज की व्याप्त बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का प्रतीक है। यह दिन होली का प्रथम दिन भी कहलाता है।

होली और होलिका से संबंधित प्रचलित कथा होली पर्व से जुड़ी हुई अनेक कहानियाँ हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की है। प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही भगवान मानने लगा था। उसने अपने राज्य में भगवान के नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से नाराज होकर हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग कभी भी नहीं छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में जल नहीं सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आदेश का पालन हुआ परन्तु आग में बैठने पर होलिका तो आग में जलकर भस्म हो गई,परन्तु प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। अधर्म पर धर्म की, नास्तिक पर आस्तिक की जीत के रूप में भी देखा जाता है। उसी दिन से प्रत्येक वर्ष ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में होलिका जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जाता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।

मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, चंड़ीगढ़

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Dharam Karma : वेद वाणी

Rigveda 1
locationभारत
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calendar02 Dec 2025 05:02 AM
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Sanskrit : ते न इन्द्रः पृथिवी क्षाम वर्धन्पूषा भगो अदितिः पञ्च जनाः। सुशर्माणः स्ववसः सुनीथा भवन्तु नः सुत्रात्रासः सुगोपाः॥ ऋग्वेद ६-५१-११॥ Hindi : प्रभु, पृथ्वी, अग्नि, वायु, माता, पोषण करने वाला और पांच प्राणवायु हमारे रक्षण और वर्धन करने वाले हो। (ऋग्वेद ६-५१-११) English : May God, the earth, Agni, air, mother, nurturer, and five vital airs protect and develop us.  (Rig Veda 6-51-11)
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Chaitra Navratri 2022 कब से शुरु होंगे चैत्र नवरात्रि? जानें शुभ मुहूर्त और पूजा की विधि

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Chaitra Navratri
locationभारत
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calendar02 Dec 2025 02:41 AM
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Chaitra Navratri 2022 : मार्च और अप्रैल माह में (Chaitra Navratri) त्योहार ही त्योहार हैं। मार्च में जहां होली पर्व मनाया जाएगा, वहीं (Chaitra Navratri) दूसरी ओर अप्रैल माह के प्रथम सप्ताह में चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri 2022) शुरु हो जाएंगे। वैसे तो नवरात्रि हर तीन माह बाद आते हैं। एक वर्ष में चार बार देवी दुर्गा के नवरात्रि होते हैं, जिनमें दो नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है, जबकि शारदीय और चैत्र नवरात्रि गुप्त नवरात्रि नहीं होते हैं। शारदीय और चैत्र नवरात्रि का खास महत्व होता है, जबकि गुप्त नवरात्रि पर तांत्रिक गुप्त साधना करते हैं। आगामी 2 अप्रैल 2022 से चैत्र नवरात्रि शुरू होंगे और इनका समापन 11 अप्रैल 2022 को होगा। नवरात्रि के पवित्र 9 दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है।

Chaitra Navratri 2022

चैत्र नवरात्रि शुभ मुहूर्त चैत्र नवरात्रि के लिए कलश स्थापना शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को होगी। कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त 2 अप्रैल सुबह 6 बजकर 10 मिनट से लेकर 8 बजकर 29 मिनट तक है। यानी कलश स्थापना के लिए कुल 2 घंटे 18 मिनट का समय मिलेगा।

इस साल माता रानी की सवारी-

धार्मिक मान्यता के अनुसार हर नवरात्रि में मां दुर्गा अलग-अलग वाहन पर सवार होकर आती हैं और विदाई के वक्त माता रानी का वाहन अलग होता है। इस बार चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आएंगी। अगर नवरात्रि की शुरुआत रविवार या सोमवार से होती है तो मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं। नवरात्रि की शुरुआत मंगलवार या शनिवार से होती है तो माता रानी घोड़े पर सवार होकर आती हैं। नवरात्रि की शुरुआत गुरुवार या शुक्रवार से होती है तो मां डोली पर सवार होकर आती हैं। चैत्र नवरात्रि की शुरुआत शनिवार से हो रही है, इसलिए मां का वाहन घोड़ा है।

कैसे करें कलश स्थापना कलश स्थापना के लिए सुबह उठकर स्नान के बाद साफ कपड़े पहनें। पूजा स्थल या पूजा मंदिर की साफ-सफाई कर लाल कपड़ा बिछाएं। फिर इसके उपर अक्षत यानि साबुत चावल रखें। इसके बाद इसके ऊपर जौ बोएं। फिर इसके ऊपर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। कलश पर स्वास्तिक बनाकर इस पर कलावा बांधें। कलश में साबुत, सुपारी, सिक्सा, अक्षत और आम का पत्ते डालें। इसके बाद एक नारियल के ऊपर चुनरी लपेटकर कलावा बांधें। इस नारियल को कलश के ऊपर रखें। इसके बाद देवी का आह्वान करें। फिर धूप-दीप आदि जलाकर कलश की पूजा करें। इसके बाद मां दुर्गा की पूजा करें। मां की पूजा के दौरान आप दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकते हैं। या ​फिर सामान्य रुप से दुर्गा चालीसा का पाठ नियमित रुप से करें। ध्यान रखें कि पूजन के बाद मां दुर्गा की आरती अवश्य करें। आरती समापन के बाद दोनों कान पकड़ कर मां से क्षमा याचना जरुर करें। किस दिन देवी के किस स्वरुप की होगी पूजा?

2 अप्रैल- प्रथम नवरात्रि, घटस्थापना और शैलपुत्री स्वरुप की पूजा

3 अप्रैल- द्वितीय नवरात्रि, मां ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा

4 अप्रैल- तृतीय नवरात्रि, मां चंद्रघंटा की पूजा

5 अप्रैल- चतुर्थ नवरात्रि, मां कुष्माण्डा की पूजा

6 अप्रैल- पंचनम नवरात्रि, स्कंदमाता की पूजा

7 अप्रैल- षष्ठम नवरात्रि, मां कात्यायनी की पूजा

8 अप्रैल- सप्तम नवरात्रि, मां कालरात्रि की पूजा

9 अप्रैल- अष्टम नवरात्रि, महागौरी की पूजा

10 अप्रैल- नवम नवरात्रि, मां सिद्धिदात्री की पूजा