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whatsapp news : आज के समय में अधिकांश मोबाइल उपभोक्ता किसी न किसी रुप में व्हाटसएप (whatsapp news) का प्रयोग करता है। चाहे वह पर्सनल एकाउंट हो या बिजनेस एकाउंट। लेकिन अब खबर आ रही है कि व्हाटसएप (whatsapp news) का प्रयोग करने और उसके फीचर यूज करने के लिए पैसे भी चुकाने पड़ सकते हैं।
व्हाटसएप (whatsapp news) के विभिन्न फीचर्स पर नजर रखने वाले वाली साइट WABetainfo की एक रिपोर्ट के अनुसार गूगल ड्राइव पर व्हाटसएप चैट बैकअप लिमिट फीचर आ सकता है। एंड्रोयड यूजर्स के व्हाटसएप चैट बैकअप गूगल ड्राइव पर रखा जाता है। WABetainfo की एक रिपोर्ट में जो बाते कही गई हैं उससे वाकई वॉट्सऐप यूजर्स को आगे चलकर थोड़ी परेशानी हो सकती है और वॉट्सऐप चैट का बैकअप लेने के लिए फ़ीस चुकानी पड़ सकती है। इस समय एंड्रॉयड यूजर्स का वॉट्सऐप चैट उनके गूगल अकाउंट में ही बैकअप होता है। अभी के लिए ये बैकअप अनलिमिटेड है। ऐपल यूजर्स की बात करें तो iPhone यूजर्स के वॉट्सऐप चैट्स का बैकअप iCloud पर स्टोर होता है। व्हाटसएप बैकअप के लिए iCloud का 5GB डेटा अलॉट किया गया होता है। लिमिट रीच होने के बाद यूजर्स को iCloud से स्पेस खरीदना होता है। ये अलग से नहीं मिलता, बल्कि iCloud पर जितना स्पेस खरीदते हैं उसमें से ही वॉट्सऐप बैकअप के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ऐपल की तरह गूगल भी व्हाटसएप चैट बैकअप को आपके जीमेल आईडी के साथ दिए गए 15GB डेटा में काउंट करेगा तो फिर आपको गुगल ड्राइव का स्पेस खरीदना पड़ेगा। चूंकि अभी गूगल आपको 15 जीबी फ्री स्पेस देता है। अच्छी बात ये है कि व्हाटसएप का बैकअप इस 15जीबी के अंदर काउंट नहीं होता, क्योंकि बैकअप अनलिमिटेड है। आने वाले समय में अगर गूगल ऐपल को फॉलो करता है तो आपका वॉट्सऐप चैट बैकअप 15GB डेटा में ही शामिल होगा। इस 15 जीबी में आपके ईमेल और दूसरे गूगल का डेटा शामिल होगा। ऐसे में जैसे ही 15 जीबी स्पेस खत्म होगा वैसी ही वॉट्सऐप चैट्स बैकअप होने भी बंद हो जाएंगे। बैकअप के लिए आपको गुगल वन प्लान खरीदना पड़ सकता है। गुगल वन के तहत कंपनी भारत में 130 मासिक सब्सक्रिप्शन में 100 जीबी डेटा देती है। राहत भरी खबर यह भी है कि फिलहाल अभी व्हाटसएप चैट बैकअप फ्री है। लेकिन आने वाले समय में अगर वॉट्सऐप चैट बैकअप के लिए पैसे चुकाने पड़े तो आपको हैरानी नहीं होनी चाहिए।
whatsapp news : आज के समय में अधिकांश मोबाइल उपभोक्ता किसी न किसी रुप में व्हाटसएप (whatsapp news) का प्रयोग करता है। चाहे वह पर्सनल एकाउंट हो या बिजनेस एकाउंट। लेकिन अब खबर आ रही है कि व्हाटसएप (whatsapp news) का प्रयोग करने और उसके फीचर यूज करने के लिए पैसे भी चुकाने पड़ सकते हैं।
व्हाटसएप (whatsapp news) के विभिन्न फीचर्स पर नजर रखने वाले वाली साइट WABetainfo की एक रिपोर्ट के अनुसार गूगल ड्राइव पर व्हाटसएप चैट बैकअप लिमिट फीचर आ सकता है। एंड्रोयड यूजर्स के व्हाटसएप चैट बैकअप गूगल ड्राइव पर रखा जाता है। WABetainfo की एक रिपोर्ट में जो बाते कही गई हैं उससे वाकई वॉट्सऐप यूजर्स को आगे चलकर थोड़ी परेशानी हो सकती है और वॉट्सऐप चैट का बैकअप लेने के लिए फ़ीस चुकानी पड़ सकती है। इस समय एंड्रॉयड यूजर्स का वॉट्सऐप चैट उनके गूगल अकाउंट में ही बैकअप होता है। अभी के लिए ये बैकअप अनलिमिटेड है। ऐपल यूजर्स की बात करें तो iPhone यूजर्स के वॉट्सऐप चैट्स का बैकअप iCloud पर स्टोर होता है। व्हाटसएप बैकअप के लिए iCloud का 5GB डेटा अलॉट किया गया होता है। लिमिट रीच होने के बाद यूजर्स को iCloud से स्पेस खरीदना होता है। ये अलग से नहीं मिलता, बल्कि iCloud पर जितना स्पेस खरीदते हैं उसमें से ही वॉट्सऐप बैकअप के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ऐपल की तरह गूगल भी व्हाटसएप चैट बैकअप को आपके जीमेल आईडी के साथ दिए गए 15GB डेटा में काउंट करेगा तो फिर आपको गुगल ड्राइव का स्पेस खरीदना पड़ेगा। चूंकि अभी गूगल आपको 15 जीबी फ्री स्पेस देता है। अच्छी बात ये है कि व्हाटसएप का बैकअप इस 15जीबी के अंदर काउंट नहीं होता, क्योंकि बैकअप अनलिमिटेड है। आने वाले समय में अगर गूगल ऐपल को फॉलो करता है तो आपका वॉट्सऐप चैट बैकअप 15GB डेटा में ही शामिल होगा। इस 15 जीबी में आपके ईमेल और दूसरे गूगल का डेटा शामिल होगा। ऐसे में जैसे ही 15 जीबी स्पेस खत्म होगा वैसी ही वॉट्सऐप चैट्स बैकअप होने भी बंद हो जाएंगे। बैकअप के लिए आपको गुगल वन प्लान खरीदना पड़ सकता है। गुगल वन के तहत कंपनी भारत में 130 मासिक सब्सक्रिप्शन में 100 जीबी डेटा देती है। राहत भरी खबर यह भी है कि फिलहाल अभी व्हाटसएप चैट बैकअप फ्री है। लेकिन आने वाले समय में अगर वॉट्सऐप चैट बैकअप के लिए पैसे चुकाने पड़े तो आपको हैरानी नहीं होनी चाहिए।

Election 2022 : विधानसभा चुनाव (Election 2022) की सरगर्मियां चल रही है। सभी प्रत्याशी अपने अपने तरीके से मतदाताओं को लुभाने में लगे हैं। लेकिन एक गांव ऐसा भी है, जहां के मतदाता किसी भी प्रत्याशी के लुभावने वायदों की गिरफ्त में नहीं आते हैं। इस गांव के सभी मतदाताओं ने इस विधानसभा चुनाव में केवल नोटा (NOTA) का प्रयोग करने का मन बनाया है। यानि कि उनके लिए कोई भी प्रत्याशी योग्य नहीं है। यह गांव आम खड़क के नाम से मशहूर है और इसी नाम की विधानसभा सीट भी है। यह गांव उत्तराखंड राज्य के चंपावत जनपद में आता है। इस क्षेत्र के लोग सभी नेताओं से निराश हो चुके हैं। यहां के ग्रामीणों की सबसे पुरानी मांग रही है पिथौरागढ़ लिंक रोड की। लंबे समय से लंबित मांग को पूरा करने में प्रशासन की विफलता से निराश ग्रामीणों ने आगामी में नोटा के लिए मतदान करने का फैसला किया है।
इस क्षेत्र में कनेक्टिविटी की कमी के चलते पहले ही लगभग 65 फीसदी निवासी गांव छोड़ने के लिए मजबूर हो चुके हैं। आम खड़क के ग्रामीणों का कहना है कि वे वर्ष 2007 से 1,500 मीटर लिंक रोड की मांग कर रहे हैं। हालांकि, प्रस्तावित परियोजना को जिला योजना में शामिल किया गया था, लेकिन यह आज तक काम नहीं हुआ। यदि लिंक रोड का निर्माण किया जाता है, तो यह गांव को टनकपुर-चंपावत राजमार्ग से जोड़ेगी और उनकी कई चिंताओं का समाधान करेगी। अब तक सिर्फ आश्वासन स्थानीय लोगों का कहना है कि जब भी चुनाव नजदीक आते हैं, हमें राजनीतिक दलों के नेताओं से आश्वासन मिलता है कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो सड़क का निर्माण करवाएंगे। लेकिन चुनाव के बाद वे हमें भूल जाते हैं। हमारे पास इस बार नोटा का सहारा लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। लोगों का कहना है कि स्वतंत्रता सेनानियों का गांव होने के बावजूद आम खड़क शिक्षा, चिकित्सा और बैंकिंग सुविधाओं से रहित है। गांव के निवासी और स्वतंत्र सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के जिला अध्यक्ष महेश चौराकोटी ने कहा कि सड़क के अभाव में ग्रामीणों को मामूली चिकित्सा सहायता के लिए टनकपुर और स्कूली शिक्षा के लिए श्यामलताल पहुंचने के लिए लगभग 5 किमी की यात्रा करनी पड़ती है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि सड़क और बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण 65 फीसदी से अधिक ग्रामीण गांव से पलायन कर गए हैं। राज्य के गठन से पहले कुल 71 परिवारों में से केवल 25 ही बचे हैं। लिंक रोड नहीं होने के कारण अधिकारी या निचले स्तर के सरकारी कर्मचारी और तकनीशियन गांव का दौरा करने से हिचकिचाते हैं। नतीजतन, छोटी से छोटी खराबी को भी ठीक होने में लंबा समय लग जाता है।अगर बिजली आपूर्ति में थोड़ी सी भी खराबी आती है, तो उसे ठीक करने के लिए हमें एक तकनीशियन के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है।
Election 2022 : विधानसभा चुनाव (Election 2022) की सरगर्मियां चल रही है। सभी प्रत्याशी अपने अपने तरीके से मतदाताओं को लुभाने में लगे हैं। लेकिन एक गांव ऐसा भी है, जहां के मतदाता किसी भी प्रत्याशी के लुभावने वायदों की गिरफ्त में नहीं आते हैं। इस गांव के सभी मतदाताओं ने इस विधानसभा चुनाव में केवल नोटा (NOTA) का प्रयोग करने का मन बनाया है। यानि कि उनके लिए कोई भी प्रत्याशी योग्य नहीं है। यह गांव आम खड़क के नाम से मशहूर है और इसी नाम की विधानसभा सीट भी है। यह गांव उत्तराखंड राज्य के चंपावत जनपद में आता है। इस क्षेत्र के लोग सभी नेताओं से निराश हो चुके हैं। यहां के ग्रामीणों की सबसे पुरानी मांग रही है पिथौरागढ़ लिंक रोड की। लंबे समय से लंबित मांग को पूरा करने में प्रशासन की विफलता से निराश ग्रामीणों ने आगामी में नोटा के लिए मतदान करने का फैसला किया है।
इस क्षेत्र में कनेक्टिविटी की कमी के चलते पहले ही लगभग 65 फीसदी निवासी गांव छोड़ने के लिए मजबूर हो चुके हैं। आम खड़क के ग्रामीणों का कहना है कि वे वर्ष 2007 से 1,500 मीटर लिंक रोड की मांग कर रहे हैं। हालांकि, प्रस्तावित परियोजना को जिला योजना में शामिल किया गया था, लेकिन यह आज तक काम नहीं हुआ। यदि लिंक रोड का निर्माण किया जाता है, तो यह गांव को टनकपुर-चंपावत राजमार्ग से जोड़ेगी और उनकी कई चिंताओं का समाधान करेगी। अब तक सिर्फ आश्वासन स्थानीय लोगों का कहना है कि जब भी चुनाव नजदीक आते हैं, हमें राजनीतिक दलों के नेताओं से आश्वासन मिलता है कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो सड़क का निर्माण करवाएंगे। लेकिन चुनाव के बाद वे हमें भूल जाते हैं। हमारे पास इस बार नोटा का सहारा लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। लोगों का कहना है कि स्वतंत्रता सेनानियों का गांव होने के बावजूद आम खड़क शिक्षा, चिकित्सा और बैंकिंग सुविधाओं से रहित है। गांव के निवासी और स्वतंत्र सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के जिला अध्यक्ष महेश चौराकोटी ने कहा कि सड़क के अभाव में ग्रामीणों को मामूली चिकित्सा सहायता के लिए टनकपुर और स्कूली शिक्षा के लिए श्यामलताल पहुंचने के लिए लगभग 5 किमी की यात्रा करनी पड़ती है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि सड़क और बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण 65 फीसदी से अधिक ग्रामीण गांव से पलायन कर गए हैं। राज्य के गठन से पहले कुल 71 परिवारों में से केवल 25 ही बचे हैं। लिंक रोड नहीं होने के कारण अधिकारी या निचले स्तर के सरकारी कर्मचारी और तकनीशियन गांव का दौरा करने से हिचकिचाते हैं। नतीजतन, छोटी से छोटी खराबी को भी ठीक होने में लंबा समय लग जाता है।अगर बिजली आपूर्ति में थोड़ी सी भी खराबी आती है, तो उसे ठीक करने के लिए हमें एक तकनीशियन के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है।