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Chanakya Niti : इन चीजों को करने से चली जाती है चेहरे की सुंदरता

Chanakya Niti

Chanakya Niti

Chanakya Niti : चेहरे की सुंदरता को लेकर न केवल भारतीय महिलाएं बल्कि पुरुष भी अनेकों उपाय करते हैं। सुंदरता को बरकार रखने के लिए युवतियां और महिलाएं अनेक प्रकार के सौंदर्य प्रशासन सामान का भी प्रयोग करती हैं। लेकिन मनुष्य के सौंदर्य को लेकर आचार्य चाणक्य की नीति कुछ और ही कहती है। आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र ‘चाणक्य नीति’ में काफी कुछ लिखा है। उनका मत है कि सौंदर्य मनुष्य का गहना तो है ही, साथ ही इस गहने को संभालकर रख पाना कठिन भी है।

Chanakya Niti in hindi

आपको बता दें आचार्य चाणक्य के नीति शास्त्र ‘चाणक्य नीति’ पर आज भी बहुत सारे लोग भरोसा करते हैं। आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में एक सफल राजनीतिज्ञ बनने से लेकर खुशहाल परिवार बनाने तक की जानकारी दी है। आचार्य चाणक्य ने मानव के सौंदर्य को लेकर लिखा है कि …

स्वहस्तप्रथिता माला स्वहपृष्टचन्तनम्।
स्वहस्तलिखितस्तोत्रं शक्रस्यापि श्रियं हरेत्॥

आचार्य चाणक्य का कहना है कि अपने हाथ से बनाई गई माला, अपने हाथ से घिसा चन्दन तथा स्वयं अपने हाथों से लिखा स्तोत्र इन्द्र की शोभा को भी हर लेते हैं।
इस अर्थ यही है कि अपने हाथ से बनाई गई माला नहीं पहनी चाहिए और स्वयं घिसा हुआ चन्दन अपने शरीर पर नहीं लगाना चाहिए। ऐसा करने पर किसी भी व्यक्ति की सुन्दरता घट जाती है। अपने हाथ से लिखे मन्त्र या पुस्तक से पूजा नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से पूजा का फल नहीं मिलता और हानि भी होती है।

उपचार गुण

दरिद्रता धीरतया विरराजते कुवस्त्रता स्वच्छतया विराजते।
कवन्नता चोष्णतया विराजते कुरूपता शीलतया विराजते।।

आचार्य चाणक्य यहां सापेक्ष गुण प्रभाव की चर्चा करते हुए कहते है कि धीरज से निर्धनता भी सुन्दर लगती है, साफ रहने पर मामूली वस्त्र भी अच्छे लगते हैं। गर्म किये जाने पर बासी भोजन भी सुन्दर जान पड़ता है और शील स्वभाव में कुरूपता भी सुन्दर लगती है।
आशय यह है कि धीर गंभीर रहने पर व्यक्ति अपनों गरीबी में भी सुख में रह लेता है। स्वच्छता से पहने जाने पर साधारण कपड़े भी अच्छे लगते हैं। बासी भोजन गर्म किए जाने पर स्वादिष्ट लगता है। यदि कुरूप व्यक्ति अच्छे आचरण एवं स्वभाव वाला हो, तो सभी उससे प्रेम करते हैं। गुणों से, कमियों में भी निखार आ जाता है।

मर्दन

इक्षुवण्डास्तिलाः शूद्रा कान्ताकाञ्चनमेदिनी।
चन्दन वधि ताम्बूल मर्वनं गुणवर्धनम्॥

आचार्य चाणक्य यहां दबाए जाने की गुणवत्ता प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि ईं ख, तिल, शूद्र, पत्नी, सोना, पृथ्वी, चन्दन, दही तथा ताम्बूल (पान) इनके मर्दन से ही गुण बढ़ते हैं
आशय यह है कि गन्ने को और तिलो को परे जाने से. शूद्र से सेवा कराने से. स्त्री से सम्भोग करने से, सोने को पीटे जाने से, पृथ्वी में परिश्रम करने से, चन्दन को घिसे जाने से, दही को मधे जाने से तथा पान को चबाने से ही इन सबके गुण बढ़ते हैं।

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