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सफल व्यक्ति बनने के लिए इनका वशीकरण करना है बेहद जरूरी

Chanakya Niti

Chanakya Niti

Chanakya Niti : आज के जमाने में कामयाब व्यक्ति कौन नहीं बनना चाहता है। कामयाब व्यक्ति बनने के लिए कुछ चीजों को वश में करना बेहद जरुरी होता है। भारत के महान अर्थशास्त्री और कूट राजनीतिक आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र चाणक्य नीति में वशीकरण को लेकर विस्तार से लिखा है। उन्होंने कहा कि वशीकरण बेहद ही सरल काम है। जिस व्यक्ति में दूसरे का वशीकरण करने के गुण होते हैं, वह जिंदगी में कभी फेल नहीं हो सकता और कामयाब व्यक्ति बनता है।

Chanakya Niti

आचार्य चाणक्य द्वारा रचित नीति शास्त्र ‘चाणक्य नीति’ पर आ भी बहुत सारे लोग विश्वास करते हैं और आचार्य चाणक्य की नीतियों और संदेशों का अनुसरण करते हैं। आइए जानते हैं कि आचार्य चाणक्य ने किन लोगों का वशीकरण किए जाने का सुझाव दिया है।

इन्हें वश में करें

लुब्धमर्थन गृहणीयात्स्तब्धमंजलिकर्मणा।
मूर्खश्छन्दानुरोधेन यथार्थवादेन पण्डितम्।।2।।

आचार्य चाणक्य वशीकरण के संबंध में बताते हैं कि लालची को धन देकर, अहंकारी को हाथ जोड़कर, मूर्ख को उपदेश देकर तथा पण्डित को यथार्थ की बात बताकर वश में करना चाहिए। इसका अर्थ यही है कि लालची व्यक्ति को धन देकर कोई भी काम कराया जा सकता है। घमण्डी व्यक्ति से कोई काम कराना हो तो उसके सामने हाथ जोड़कर, झुककर चलना चाहिए। मुर्ख व्यक्ति को केवल समझा-बुझाकर ही वश में किया जा सकता है। विद्वान व्यक्ति से सत्य बात कहनी चाहिए, उन्हें स्पष्ट बोलकर ही वश में किया जा सकता है।

दुष्टों से बचें

कुराजराज्येन कुतः प्रजासुखं कुमित्रमित्रेण कुतोऽभिनिवृत्तिः।
कुवारवारैश्च कुतो गृहे रतिः कृशिष्यमध्यापयतः कुतो यशः।।

आचार्य चाणक्य दुष्टों के प्रभाव को प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा सुखी कैसे रह सकती है। दृष्ट मित्र से आनन्द कैसे मिल सकता है। दुष्ट पत्नी से घर में सुख कैसे हो सकता है ? तथा दुष्ट-मूर्ख शिष्य को पढ़ाने से यश कैसे मिल सकता है।

अर्थ है कि दुष्ट-निकम्मे राजा के राज्य में प्रजा सदा दुःखी रहती है। दुष्ट मित्र सदा दुःखी ही करता है। दुष्ट पत्नी घर की मुख-शांति को समाप्त कर देती है तथा दुष्ट शिष्य को पढ़ाने से कोई यश नहीं मिलता है। अतः दुष्ट राजा, दुष्ट मित्र, दुष्ट पत्नी तथा दुष्ट शिष्य के होने से इनका न होना ही बेहतर है। इसलिए सुखी रहने के लिए अच्छे राजा के राज्य में रहना चाहिए, संकट से बचाव के लिए अच्छे व्यक्ति को मित्र बनाना चाहिए, रतिभोग के सुख के लिए कुलीन कन्या से विवाह करना चाहिए तथा यश व कीर्तिलाभ के लिए योग्य पुरुष को शिष्य बनाना चाहिए।

सीख किसी से भी ले लें

सिंहादेकं बकादेक शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात्।
वायसात्पंच शिक्षेच्च षट् शुनस्त्रीणि गर्दभात्।।

यहां आचार्य चाणक्य सीखने की बात किसी भी पात्र से सीखने का पक्ष रखते हुए कहते हैं कि सिंह से एक, बगुले से एक, मुर्गे से चार, कौए से पांच, कुत्ते से छः तथा गधे से सात बातें सीखनी चाहिए।
चाणक्य ने बताया है कि सीखने को तो किसी से भी मनुष्य कुछ भी सीख सकता है पर इसमें भी मनुष्य जिनसे कुछ गुण सीख सकता है उनमें उसे शेर और बगुले से एक-एक, गधे से तीन, मुर्गे से चार, कौए से पांच और कुत्ते से छह गुण सीखने चाहिए।

इसका मूल भाव यह है कि व्यक्ति को जहां से भी कोई अच्छी बात मिले, सीखने में संकोच नहीं करना चाहिए। यदि नीच व्यक्ति के पास भी कोई गुण है तो उसे भी ग्रहण करने का यत्न करना चाहिए।

Chanakya Niti  शेर से सीख लें

प्रभूतं कार्यमपि वा तत्परः प्रकर्तुमिच्छति !
सर्वारम्भेण तत्कार्य सिंहादेकं प्रचक्षते।।

यहां आचार्य चाणक्य शेर से ली जानेवाली सीख के बारे में बता रहे हैं कि छोटा हो या बड़ा, जो भी काम करना चाहें, उसे अपनी पूरी शक्ति लगाकर करें? यह गुण हमें शेर से सीखना चाहिए। भाव यह है कि शेर जो भी काम करता है, उसमें अपनी पूरी शक्ति लगा देता है। अत: जो भी काम करना हो उसमें पूरे जी-जान से जुट जाना चाहिए।

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