Precious Stones: यूपी के बांदा जिले के प्रमुख उत्पाद शजर पत्थर को जीआई टैग मिलने से कारोबारियों में खुशी की लहर दौड़ गई है। एक जिला-एक उत्पाद के तहत शजर पत्थर को पहले ही पहचान मिल चुकी है और जीआई टैग मिलने से इस उद्योग को पंख लग जाएंगे।
अब पूरे देश में बिकेगा शजर पत्थर
बांदा की डीएम दुर्गा शक्ति नागपाल ने बताया कि शजर पत्थर को जीआई टैग प्राप्त हो चुका है। इससे कारोबारी शजर पत्थर को पूरे देश में पहुंचा सकते हैं। जीआई टैग एक प्रकार का मुहर है, जो किसी भी प्रोडक्ट के लिए प्रदान की जाती है। इस मोहर के प्राप्त होने जाने के बाद प्रोडक्ट को विशेष महत्व प्राप्त हो जाता है।
अब सिर्फ बांदा में होगा शजर का कारोबार
जीआई टैग मिलने से बांदा के अलावा कहीं और शजर का कारोबार नहीं होगा। साथ ही साथ उस क्षेत्र को सामूहिक रूप से इसके उत्पादन का एकाधिकार प्राप्त हो जाता है। इसके लिए शर्त यह है कि उस वस्तु का उत्पादन या प्रोसेसिंग उसी क्षेत्र में होना चाहिए, जहां के लिए टैग किया जाना है। जीआई टैग के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन होंगे। कहा jजा रहा है कि शजर पत्थर की देश और दुनिया में अलग पहचान होगी। जीआई टैग जनपद की समृद्ध संस्कृति और सामूहिक बौद्धिक विरासत का हिस्सा बनेगा । जनपद के स्ट्रेजर को जीआई टैग गुणवत्ता का आश्वासन देता है। साथ ही साथ जिले के अलावा कहीं भी शजर का कारोबार नहीं होगा।
क्या होता है जीआई टैग
किसी भी रीजन का जो क्षेत्रीय उत्पाद होता है, उससे उस क्षेत्र की पहचान होती है। उस उत्पाद की ख्याति जब देश-दुनिया में फैलती है तो उसे प्रमाणित करने के लिए एक प्रक्रिया होती है। जिसे जीआई टैग यानी जीओग्राफिकल इंडीकेटर (Geographical Indications) कहते हैं। जिसे हिंदी में भौगोलिक संकेतक नाम से जाना जाता है।
400 वर्ष पूर्व हुई थी शजर पत्थर की खोज
400 वर्ष पूर्व अरब से आये लोगों ने केन नदी में पाये जाने वाले इस पत्थर की खोज की थी और इसका नाम शजर रखा था। बांदा के स्थानीय लोगों के मुताबिक, शरद पूर्णिमा की चांदनी रात चंद्रमा की किरणें शजर पत्थर पर पड़ती हैं तो इन पर झाड़ियां, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, मानव और नदी धारा के चित्र उभरते हैं। वहीं, वैज्ञानिकों का मानना है कि शजर पत्थर पर उभरने वाली आकृति फंगस ग्रोथ है और कुछ नहीं।केन नदी में पाया जाने वाला शजर पत्थर खूबसूरत तो होता ही है, इसका धार्मिक महत्व भी कम नहीं है। मुसलमान जब हज पर जाते हैं तो इसे साथ लेकर जाते हैं और इस पर कुरान की आयतें लिखवाते हैं। हिंदू व अन्य समुदाय के लोग इस पत्थर को सोने-चांदी की अंगूठी में जड़वाकर पहनते हैं। अरब देशों में इसे ‘हकीक’ और भारत में स्फटिक कहा जाता है।