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Chandra Shekhar Azad : आदिवासियों से निशानेबाजी सीख बने थे क्रान्तिकारी।

Chandra Shekhar Azad: He became a revolutionary after learning shooting from the tribals.

Chandra Shekhar Azad: He became a revolutionary after learning shooting from the tribals.

Chandra Shekhar Azad : 27 फ़रवरी 1931 को शहीद हुए Chandra Shekhar Azad की आज  पुण्यतिथि  है । इस अवसर पर पूरा देसज आज इनको नमन कर रहा है । भारत को आजादी दिलाने में कई क्रांतिकारियों ने बढ़ -चढ़ कर अपना योगदान दिया और देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन तक न्योछावर कर दिया लेकिन क्रांतिकारियों की यह सूची Chandra Shekhar Azad के नाम के बिना अधूरी-सी लगती है।

Chandra Shekhar Azad  Death :

 

कहा जाता है कि देश भक्ति की जूनून अक्सर कुछ लोगों में बचपन से ही दिखायी देने लगता है और इस बात को Chandra Shekhar Azad ने महज 15 वर्ष की आयु में ही सही साबित कर दिया था। जब असहयोग आंदोलन में शामिल होने पर गिरफ्तार किये गए इस महान क्रन्तिकारी से एक अंग्रेज जज ने उनका नाम, पता आदि पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि उनका नाम आज़ाद है, पिता का नाम स्वतंत्रता है और घर का पता जेल है। ऐसे बेबाक जवाब को सुनकर ही हर किसी को उनके देश प्रेम का अंदाज़ा हो गया था। हालांकि बाद में उनके 15 कोड़े की सजा भी सुनाई गयी। लेकिन आज़ाद के लिए देश प्रेम के आगे यह सजा कोई मायने नहीं रखती थी।

Chandra Shekhar Azad  Death Anniversary  :

बचपन में आदिवासियों से सीखा धनुष चलाना

23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के एक छोटे से गाँव भाबरा में जन्मे चंद्रशेखर तिवारी बचपन से ही निशाना लगाने में पक्के थे। और इसके पीछे का कारण था कि वे काफी समय तक आदिवासियों से धनुष चलाना सीखते थे। एक क्रन्तिकारी के तौर पर जब वे देश को आज़ाद कराने की मुहिम में शामिल हुए तब उन्होंने जंगल में रह कर कई अन्य लोगों को भी निशानेबाजी सिखायी। स्वतन्त्रता संग्राम के लिए पैसे जुटाने में भी आज़ाद  ने अहम भूमिका निभाई। वे चंदा इक्क्ठा करने और उसे सही व्यक्ति तक अंग्रेजों से छुपा कर पहुंचाने में सर्वश्रेष्ठ थे।

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मरने के बाद भी कम नहीं होने दिया अंग्रेजों के मन में खौफ

27 फरवरी 1931 को इलाहबाद के अलफ्रेड पार्क में जब भगत सिंह और Chandra Shekhar Azad ने अंग्रेज़ों से मुठभेड़ की तब आखिरी गोली बचने पर आज़ाद ने एक पेड़ की ओट में खुद को गोली मार ली लेकिन अंग्रेज़ों के हाथ नहीं आये। बताया जाता है कि अंग्रेज़ों के मन में आज़ाद के प्रति इतना डर था कि उनकी मौत के बाद उन्होंने उस पेड़ को भी कटवा दिया जिसके पीछे आज़ाद ने खुद को गोली मारी थी।

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