Thursday, 26 December 2024

Chetna Manch Kavita – होली में भौजाई जैसे …

गीतकार – राजेंद्र राजन मौसम में पुरवाई जैसे सूरज में गरमाई जैसे ढंकी-छुपी सी तुम हो मुझमें काया में परछाई…

Chetna Manch Kavita – होली में भौजाई जैसे …

गीतकार – राजेंद्र राजन

मौसम में पुरवाई जैसे
सूरज में गरमाई जैसे
ढंकी-छुपी सी तुम हो मुझमें
काया में परछाई जैसे

नदिया को सागर का जैसे
शब्दहीन उल्लास पुकारे
किसी यौवना के पल-पल में
उम्र, सखी-सी केश सँवारे
बचपन में तरुणाई जैसे
होली में भौजाई जैसे
ढकी-छुपी सी तुम हो मुझमें
काया में परछाई जैसे

मन आवारा निश्छल जैसे
सुख-दुख में कुछ भेद न माने
वो सबको ही अपना समझे
भले-बुरे को क्या पहचाने
कपटी मन चतुराई जैसे
सागर में गहराई जैसे
ढकी-छुपी सी तुम हो मुझमें
काया में परछाई जैसे

मन का पंछी दिशाहीन हो
और गगन हँसता हो उस पर
कहाँ ठिकाना उसे मिलेगा
वृक्ष नहीं उगते हैं नभ पर
शून्य सदन तन्हाई जैसे
तुलसी में चौपाई जैसे
ढंकी-छुपी सी तुम हो मुझमें
काया में परछाई जैसे।

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यदि आपको भी कविता, गीत, गजल और शेर ओ शायरी लिखने का शौक है तो उठाइए कलम और अपने नाम व पासपोर्ट साइज फोटो के साथ भेज दीजिए चेतना मंच की इस ईमेल आईडी पर- [email protected]

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