Thursday, 25 April 2024

Death Anniversary : महान कवि प्रदीप को कभी कोई राष्ट्रीय सम्मान नहीं मिला!

 विनय संकोची 27 जनवरी 1963 की शाम राजधानी दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने देशभक्ति से…

Death Anniversary : महान कवि प्रदीप को कभी कोई राष्ट्रीय सम्मान नहीं मिला!

 विनय संकोची

27 जनवरी 1963 की शाम राजधानी दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने देशभक्ति से ओतप्रोत ‘ ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी’, गाया तो वहां मौजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ-साथ सभी की आंखें नम हो गई थीं।

तत्कालीन राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन और सभी कैबिनेट मंत्रियों के अतिरिक्त अभिनेता दिलीप कुमार, देव आनंद, राज कपूर, राजेंद्र कुमार, गायक मोहम्मद रफी और हेमंत कुमार भी इस समारोह में शामिल थे। लेकिन इस कार्यक्रम में महान कवि और गीतकार कवि प्रदीप को ही आमंत्रित नहीं किया गया था, जिन्होंने ऐ मेरे वतन के लोगों… जैसा अमर गीत लिखा था।
बाद में तीन माह के उपरांत 21 मार्च 1963 को पंडित नेहरू ने विशेष आग्रह कर कवि प्रदीप से भेंट की और उन्हीं की आवाज में उक्त गीत को सुना।

देश प्रेम और देशभक्ति से ओतप्रोत भावनाओं को सुंदर शब्दों में पिरो कर जन-जन तक पहुंचाने वाले महान कवि प्रदीप की आज पुण्यतिथि है। 6 फरवरी 1915 को मध्यप्रदेश में उज्जैन के छोटे से कस्बे बड़नगर में जन्मे कवि प्रदीप का वास्तविक नाम रामचंद्र नारायण द्विवेदी था। विद्यार्थी जीवन से ही हिंदी काव्य लेखन एवं हिंदी काव्य वाचन में उनकी विशेष रूचि थी। इंदौर, इलाहाबाद, प्रयाग और लखनऊ में विद्याध्ययन किया। गुजराती ब्राह्मण चुन्नीलाल भट्ट की पुत्री सुभद्रा बेन से 1942 में विवाह हुआ। 1950 में विले पार्ले में उन्होंने शानदार बंगला बनवाया।

कवि प्रदीप कवि सम्मेलनों में भी खूब दाद बटोरा करते थे। कविता उनकी सांस-सांस में बसी थी। कविता उनका जीवन थी। इसीलिए अध्यापन छोड़कर वे कविता में लीन हो गए।

एक बार इलाहाबाद प्रयाग में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ। इस गोष्ठी की अध्यक्षता राजऋषि पुरुषोत्तम दास टंडन ने की थी और गोष्ठी में महादेवी वर्मा, भगवती चरण वर्मा, प्रफुल्ल चंद्र ओझा ‘मुक्त’, हरिवंशराय बच्चन, नरेंद्र शर्मा, बालकृष्ण शर्मा, रमाशंकर शुक्ल ‘रसाल’, पद्मकांत सरीखे दिग्गज रचनाकारों ने काव्य पाठ किया। इसी गोष्ठी में 20 वर्षीय तरुण कवि प्रदीप ने अपने सुरीले काव्य पाठ से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। उस दिन हिंदी जगत को एक नया सितारा मिला। कमाल तो तब हुआ जब लखनऊ से प्रकाशित पत्रिका माधुरी के फरवरी 1938 के अंक में महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने कवि प्रदीप पर लेख लिखकर उनकी काव्य प्रतिभा पर मोहर लगा दी। कवि प्रदीप ने 1939 में मुंबई में कदम रखा और उसी वर्ष फिल्म ‘कंगन’ के गीत लिखकर बतौर गीतकार फिल्म जगत में स्थापित हो गए। ‘कंगन’ में लिखे प्रदीप के चार गीतों में से तीन गीतों को लता मंगेशकर ने स्वर दिया था।

कवि प्रदीप गांधीवादी विचारधारा के कवि थे और उन्होंने जीवन मूल्यों की कीमत पर धन- दौलत को कभी महत्व नहीं दिया। वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। चंद्रशेखर आजाद की शहादत पर कवि प्रदीप ने गीत लिखा – ‘वह इस घर का एक दिया था…।’ सन 1940 में आजादी का आंदोलन चरम पर था। कवि प्रदीप अपनी कविताओं से देशवासियों में जागृति पैदा कर रहे थे। फिल्म ‘बंधन’ में उनके द्वारा लिखे गीत ‘चल चल रे नौजवान’ ने आजादी के दीवानों में नया जोश भरने का काम किया। प्रभात फेरी में कवि प्रदीप का यही गीत गाया जाता था। इस गीत ने भारतीय जनमानस पर जादू कर दिया था और यह गीत ‘राष्ट्रीय गीत’ बन गया। सिंध और पंजाब की विधानसभा ने इस गीत को ‘राष्ट्रीय गीत’ की मान्यता दी और इसे विधानसभा में गाया जाने लगा।

बलराज साहनी ने इस गीत को लंदन बीबीसी से प्रसारित कर दिया था। अपने कैशौर्य वाले काल में इंदिरा गांधी प्रभात फेरियों में ‘चल चल रे नौजवान’ गाकर अपनी ‘वानर सेना’ की परेड कराया करती थीं। यह गीत नासिक विद्रोह (1946) के समय सैनिकों का अभियान गीत बन गया था। 1943 में कवि प्रदीप ने फिल्म किस्मत में गीत लिखा ‘आज हिमालय की चोटी से हमने फिर ललकारा है, दूर हटो ए दुनिया वालो हिंदुस्तान हमारा है’- प्रदीप का यह गीत अंग्रेजी सरकार पर सीधा प्रहार था। अंग्रेजी सरकार ने कवि प्रदीप की गिरफ्तारी का वारंट निकाला, तो वह भूमिगत हो गए। वर्ष 1954 में प्रदीप का फिल्म ‘नास्तिक’ का गीत ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान’ ने उनकी प्रसिद्धि में चार चांद लगा दिए। फिल्म ‘जागृति’ के गीत ‘हम लाए हैं तूफान से किश्ती निकाल के’ और ‘दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल’ बहुत लोकप्रिय हुए। कवि प्रदीप को अपने अंतिम समय 11 दिसंबर 1998 तक हमेशा यह अफसोस रहा कि भारत सरकार ने कभी उन्हें कोई सम्मान, कोई पुरस्कार नहीं दिया। इसे महान कवि की प्रतिभा और देशभक्ति का अपमान ही माना जाएगा। उनके हिस्से में मात्र एक सम्मान आया और वह था ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’!

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