Friday, 29 March 2024

Death Anniversary : याद आये दीनदयाल

 विनय संकोची आज एकात्म मानववाद के प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्याय (P.Deendayal Upadhay)  की पुण्यतिथि (Death Anniversary ) है। आज ही…

Death Anniversary : याद आये दीनदयाल

 विनय संकोची

आज एकात्म मानववाद के प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्याय (P.Deendayal Upadhay)  की पुण्यतिथि (Death Anniversary ) है। आज ही के दिन जनसंघ के संस्थापक महासचिव और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के महान विचारक पं. दीनदयाल की हत्या की गई थी। उनकी हत्या का रहस्य 50 साल बाद भी अनसुलझा है। सच तो यह है कि उस महान विचारक की हत्या की गंभीरता से जांच का प्रयास किया ही नहीं गया। जनसंघ के नेता बलराज मधोक ने अपनी आत्मकथा ‘जिंदगी का सफर’ के तीसरे खंड में दीनदयाल उपाध्याय हत्याकांड के संदर्भ में रहस्योद्घाटन करते हुए लिखा कि उन्हें अपने सूत्रों से पता चला था कि हत्या में जनसंघ के ही कुछ वरिष्ठ नेता शामिल थे और ये पार्टी पर नियंत्रण के लिए चल रहे आतंरिक संघर्ष का नतीजा था। मधोक ने दीनदयाल हत्याकांड की जांच को बाधित करने वाले जनसंघ के दो नेताओं का भी खुलासा अपनी किताब में किया है। मधोक के आरोप और शंका की पुष्टि या खंडन केवल निष्पक्ष जांच के बाद ही संभव है, लेकिन अब शायद ही कभी ऐसा हो।

आज जो नेता दीनदयाल उपाध्याय को अपना आदर्श बताकर उनके सच्चे अनुयायी होने का दम भरते हैं, उनमें से कोई भी पंडित जी के विचारों पर पूरी तरह खरा उतरता नहीं लगता है।पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने निजी हित व सुख-सुविधाओं का त्याग कर दिया था। व्यक्तिगत जीवन में उनकी कोई महत्वाकांक्षा भी नहीं थी। उन्होंने अपना जीवन समाज और राष्ट्र को समर्पित कर दिया था और यही बात उन्हें महान बनाती है। पंडित जी के नाम का सहारा लेकर राजनीति चमकाने वालों में है कोई ऐसा नेता जिसने सुख-सुविधाओं को त्याग दिया है और जिसकी अपनी कोई महत्वाकांक्षा न हो। हां- उनकी तरह अपना जीवन समाज और राष्ट्र को समर्पित करने का दिखावा करने वाले, ढोंग रचने वाले नेताओं की भीड़ जरूर दिखती है।

पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय के अनुसार हमारा यह नारा होना चाहिए कि कमाने वाला खिलायेगा तथा जो जन्मा सो खायेगा। अर्थात खाने का अधिकार जन्म से प्राप्त होता है। इस कर्तव्य के निर्वाह की क्षमता पैदा करना ही अर्थव्यवस्था का काम है। …और आज अर्थव्यवस्था इस कर्तव्य का निर्वाह करने में पूरी तरह सक्षम दिखाई नहीं पड़ती है। पंडित जी का कहना था- शिक्षा समाज का दायित्व है। बच्चों को शिक्षा देना समाज के हित में है। वो नि:शुल्क चिकित्सा का भी सुझाव देते हैं, परंतु आज तक न सभी बच्चों को शिक्षा और पूरी आबादी को नि:शुल्क तो नि:शुल्क सस्ती सशुल्क चिकित्सा भी उपलब्ध नहीं है।

पंडित दीनदयाल ने हर खेत को पानी और हर हाथ को काम का विचार भी दिया था लेकिन कई दशक बीत जाने के बाद भी न हर खेत को पानी मिल रहा है और न ही हर हाथ को काम। आने वाली सरकार पिछली सरकारों पर आरोप लगाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेती है, लेकिन यह समस्या का समाधान तो नहीं ही है।

पंडित दीनदयाल ने एक बड़ी अच्छी सलाह दी थी, जिसे माना ही नहीं गया। उन्होंने कहा था-‘व्यक्ति को वोट दें, बटुए को नहीं, पार्टी को वोट दें, व्यक्ति को नहीं, सिद्धांत को वोट दें पार्टी को नहीं।’ उनकी इस बात को माना गया हो ऐसा लगता नहीं है, माना जा सकता भी कहां है? जब बटुआ टिकट खरीदेगा तो वोट भी तो परोक्ष रूप से बटुए को ही जाएगी। आज तो भाजपा में ही तमाम नेता पार्टी से बड़े हो गये हैं, पार्टी के बजाय नेता के नाम पर वोट मांगे जा रहे हैं। रही तीसरी बात कि सिद्धांत को वोट दें पार्टी को नहीं, तो अब सिद्धांत रहे कहां हैं। पार्टियों ने सिद्धांत उतार कर ताक पर रख दिये हैं और पार्टी, पार्टी के नेता पार्टी के मूलभूत सिद्धांत से बड़े हो गये हैं। यह सब देखकर दीनदयाल जी की आत्मा दु:खी जरूर होती होगी।

अंत में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के कुछ विशेष विचार जिन पर आज की राजनीति को चिन्तन करना चाहिए। पंडित जी ने कहा था-‘विविधता में एकता और विभिन्न रूपों में एकता की अभिव्यक्ति भारतीय संस्कृति की विचारधारा में रची-बसी हुई है।’ और ‘मुसलमान हमारे शरीर का शरीर और हमारे खून का खून हैं।’ …और यह भी कि किसी भी सिद्धांत में न विश्वास करने वाले अवसरवादी ही देश की राजनीति को नियंत्रित करते हैं।अवसरवाद से राजनीति के प्रति लोगों का विश्वास खत्म होता जा रहा है।

Related Post