Thursday, 25 April 2024

Gandhi Jayanti: हिंदुत्व को ब्रह्माण्ड सा व्यापक मानते थे गांधी!

विनय संकोची आज ‘हिंदू’, ‘हिंदुत्व’, ‘हिंदू धर्म’ और ‘हिंदू राष्ट्र’ के समर्थन में उग्र स्वर सुनाई देते हैं और उनकी…

Gandhi Jayanti: हिंदुत्व को ब्रह्माण्ड सा व्यापक मानते थे गांधी!

विनय संकोची

आज ‘हिंदू’, ‘हिंदुत्व’, ‘हिंदू धर्म’ और ‘हिंदू राष्ट्र’ के समर्थन में उग्र स्वर सुनाई देते हैं और उनकी आड़ में महात्मा गांधी के ‘हिंदूवाद’ की जमकर आलोचना होती है। महात्मा गांधी निष्ठावान सनातनी हिंदू थे और हिंदू धर्म के समस्त मूल्यों में पूरी आस्था रखते थे लेकिन कट्टरता का उनके हिंदू धर्म में कोई स्थान नहीं था। गांधी का हिंदू धर्म दूसरे धर्मों के प्रति पूरी तरह सहिष्णु और विनम्र था।

महात्मा गांधी के धार्मिक हिंदू का स्वरूप इतना साफ था कि देश में उन्हें सब बिना संदेह के हिंदू मानते थे। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर उन्हें बुरा सवर्ण हिंदू मानते थे। मुस्लिम लीग उन्हें हमेशा कट्टर हिंदू मानती रही। साम्यवादी, गांधी को सांप्रदायिक हिंदू मानते थे। स्वतंत्रता संघर्ष और अंग्रेजी राज से मुक्ति की आकांक्षा के साथ-साथ लोग महात्मा गांधी को हिंदू आस्था के रक्षक और हिंदू धर्म के पुनरुद्धार का प्रतीक भी मानने लगे थे। लोग तो यहां तक कहने लगे थे कि गांधी हिंदू वाद को पुनर्स्थापित करने आया है।

12 अक्टूबर 1921 के ‘यंग इंडिया’ में महात्मा गांधी ने लिखा था – ‘मैं स्वयं को सनातनी हिंदू कहता हूं क्योंकि मैं वेदों उपनिषदों पुराणों और समस्त हिंदू शास्त्रों में विश्वास करता हूं और इसीलिए अवतारों और पुनर्जन्म में भी मेरा विश्वास है। मैं वर्णाश्रम धर्म में विश्वास करता हूं। इसे मैं उन अर्थों में मानता हूं जो पूरी तरह से वेद सम्मत हैं। लेकिन उसके वर्तमान प्रचलित और भौंडे स्वरूप को नहीं मानता। मैं प्रचलित अर्थों से कहीं अधिक व्यापक अर्थ में गाय की रक्षा में विश्वास करता हूं मूर्ति पूजा में मेरा विश्वास नहीं है।’

महात्मा गांधी का यह हिंदू धर्म या कहें कि उनका यह हिंदुत्व देश के तत्कालीन हिंदू संगठनों यथा – राष्ट्रीय सेवक संघ और हिंदू महासभा के हिंदुत्व से बिल्कुल मेल नहीं खाता था। इन हिंदू संगठनों का अंतिम लक्ष्य ‘हिंदू भारत’ की स्थापना था, जबकि महात्मा गांधी के विचार, कर्म और उद्देश्य में ‘हिंदू भारत’ की कल्पना तक नहीं थी। गांधी का भारत, हिंदू भारत न होकर वह भारत था, जिसमें समस्त स्तरों पर समानता के साथ, देश के समस्त धर्मों, जीवन पद्धतियों, उपासना पद्धतियों, रीति-रिवाजों का समावेश हो। हिंदू संगठनों को गांधी का यह भारत स्वीकार नहीं था।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने एक समय महात्मा गांधी से तीन सवाल पूछे थे; आपका धर्म क्या है? आपके जीवन में धर्म का क्या प्रभाव है? सामाजिक जीवन में इसकी क्या भूमिका है?

महात्मा गांधी जी के तीनों प्रश्नों का क्रमवार उत्तर देते हुए कहा – ‘मेरा धर्म है हिंदुत्व। यह मेरे लिए मानवता का धर्म है और मैं जिन धर्मों को जानता हूं उनमें यह सर्वोत्तम है।’ दूसरे प्रश्न के उत्तर में बापू ने कहा – ‘आपके प्रश्न में भूतकाल के बजाय वर्तमान काल का प्रयोग खास मकसद से किया गया है। सत्य और अहिंसा के माध्यम से मैं धर्म से जुड़ा हूं। मैं अक्सर अपने धर्म को सत्य का धर्म कहता हूं। यहां तक कि ईश्वर सत्य है, कहने के बजाय मैं कहता आया हूं – सत्य की ईश्वर है। सत्य से इनकार हमने जाना ही नहीं है। नियमित प्रार्थना मुझे अज्ञात सतत यानी ईश्वर के करीब ले जाती है।’ तीसरे प्रश्न के उत्तर में गांधी जी ने कहा – इस धर्म का सामाजिक जीवन पर प्रभाव रोजाना के सामाजिक व्यवहार में परिलक्षित होता है या हो सकता है। ऐसे धर्म के प्रति सत्यनिष्ठ होने के लिए व्यक्ति को जीवन पर्यंत अंह का त्याग करना होगा।’

महात्मा गांधी का कहना था – ‘जितनी गहराई से मैं हिंदुत्व का अध्ययन कर रहा हूं, उतना ही मुझ में विश्वास गहरा होता जाता है कि हिंदुत्व ब्रह्मांड जितना ही व्यापक है। मेरे भीतर से कोई मुझे बताता है कि मैं एक हिंदू हूं और इसके अतिरिक्त कुछ और नहीं।’ महात्मा गांधी हिंदुत्व को मानवता के प्रति सेवा का ध्येय मानते थे। मानव सेवा ही प्रभु सेवा कहते थे।

महात्मा गांधी ने जीवन भर कट्टरतावादी हिंदू संगठनों का प्रभाव जनमानस पर पड़ने से रोका। लेकिन गोडसे द्वारा की गई गांधी की हत्या ने भारत के हिंदू राष्ट्र बनने की संभावना पर मानो विराम ही लगा दिया। क्योंकि गांधी की हत्या से जनमानस हिंदू संगठनों के विरुद्ध हो गया। यहां तक कि स्वयं हिंदू संगठनों के 80% लोग गांधी की हत्या के विरुद्ध थे।

आज सत्ता उन लोगों के हाथों में है, जो उन हिंदू संगठनों से निकले हैं जिन्हें न गांधी पसंद थे और न ही उनके हिंदुत्व की परिभाषा। इसीलिए आए दिन गांधी के बारे में अनर्गल बयान सुनने को मिलते हैं। गांधी की हत्या से गांधी मरे नहीं, अमर हो गए। विश्व में भारत से ज्यादा गांधीवाद की स्वीकार्यता है। गांधी एक विचार है और विचार कभी नहीं मरते

Related Post