Friday, 29 March 2024

Hindi Kahani – अनूठी कला

Hindi Kahani : प्राचीनकाल में उज्जयिनी में वीरदेव नामक का एक राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम पद्मरति…

Hindi Kahani – अनूठी कला

Hindi Kahani : प्राचीनकाल में उज्जयिनी में वीरदेव नामक का एक राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम पद्मरति था। उसकी कोई संतान नहीं थी। पुत्र प्राप्ति की कामना से राजा और सनी ने मंदाकिनी के तट पर जाकर तपस्या करने के बाद जब स्नान और अर्चन की विधियों पूरी को तब भगवान् शंकर प्रसन्न हुए और आकाश से उनकी वाणी सुनाई पड़ी- ‘राजन्! तुम्हारे कुल में एक पराक्रमी पुत्र और एक अतुलनीय रूपवती कन्या जन्म लेगी, जो अपनी सुन्दरता से अप्सराओं का भी तिरस्कार करेगी।

यह आकाशवाणी सुनकर राजा वीरदेव की कामना पूरी हो गई। वह अपनी पत्नी के साथ अपनी नगरी में चला गया। कुछ समय बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम शूरदेव रखा। फिर कुछ दिनों बाद एक कन्या ने जन्म लिया। अपने सौंदर्य से कामदेव के मन में भी स्पृहा उत्पन्न करने वाली उस कन्या का नाम रखा अनगरति। जब वह कन्या बड़ी हुई, तब उसके योग्य वर प्राप्त करने के लिए राजा वीरदेव ने पृथ्वी के सभी राजाओं के चित्र मँगवाए।

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जब पृथ्वी के सभी राजाओं के चित्र आ गए, तो राजा वीरदेव को उनमें से कोई भी अपनी कन्या के योग्य नहींीं लगा। तब उन्होंने प्यार से अपनी कन्या से कहा- ‘बेटी! मुझे तुम्हारे योग्य वर नहीं दिखाई पड़ता, अतः तुम सब राजाओं को एकत्र करके स्वयंवर करो।’

पिता की बात सुनकर राजकुमारी ने कहा ‘पिताजी! लज्जा के कारण मैं स्वयंवर नहीं करना चाहती, किंतु जो भी सुरूप युवक कोई अनूठी कला जानता हो, आप उसी से मेरा विवाह कर दें। इससे अतिरिक्त किसी और से मुझे कोई काम नहीं है।’

कन्या की बात सुनकर राजा उसके लिए वैसे ही वर की खोज करने लगे। इसी बीच, लोगों के मुँह से यह वृतांत सुनकर दक्षिणापथ के चार पुरुष वहां पहुँचे, जो वीर थे, कलाओं में निपुण थे और भव्य आकृति वाले थे। राजा ने उन सबका स्वागत-सत्कार किया। फिर राजपुत्री की इच्छा रखने वाले वे पुरुष एक के बाद एक राजा से अपनी कला-कौशल का वर्णन करने लगे। उनमें से पहले ने कहा- ‘राजन्! मैं शूद्र हूँ। मेरा नाम पंचपट्टिक है। मैं प्रतिदिन पाँच जोड़े उत्तम वस्त्र तैयार करता हूँ। उनमें से एक जोड़ा वस्त्र मैं देवता को चढ़ाता हूँ और एक जोड़ा ब्राह्मण को देता हूँ। एक जोड़ा मैं अपने पहनने के लिए रखता हूँ। इस राजकन्या का विवाह यदि मुझसे होगा, तो एक जोड़ा वस्त्र मैं इसे दूँगा और एक जोड़ा वस्त्र बेचकर मैं अपने खाने-पीने का प्रबंध करूँगा। अतः इस कन्या का विवाह आप मुझसे कर दें।’

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दूसरा पुरुष बोला- ‘राजन् मैं भाषाज्ञ नामक वैश्य हूँ। मैं सब पशु-पक्षियों की बोलियाँ जानता हूँ, अतः इस राजपुत्री को आप मुझे दें।’

तीसरा बोला- ‘राजन्! मैं पराक्रमी क्षत्रिय राजा हूँ। मेरा नाम खड्गधर है। खड्ग विद्या में मेरी बराबरी करने वाला कोई योद्धा इस धरती पर नहीं है। अतः आप अपनी इस कन्या को मुझे दें।’

चौथा बोला- ‘राजन्! मैं ब्राह्मण हूँ। मेरा नाम जीवदत्त है। मेरे पास एक ऐसी विद्या है, जिससे मैं मरे हुए प्राणियों को लाकर उन्हें जीवित करके दिखाता हूँ। अतः ऐसे साहसिक कार्य में दक्ष, मुझको आप इसका पति स्वीकार करें।’ उन दिव्यवेश और आकृति वाले उन चारों पुरुषों की बातें सुनकर राजा का मस्तिष्क चकराने लगा।

Hindi Kavita – माँ तो माँ होती है

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