Thursday, 28 March 2024

Hindi Kahani – चोर की मुक्ति

Hindi Kahani –  बहुत समय पहले अयोध्या नगरी में वीरकेतु नाम का एक राजा राज्य करता था। उस राज्य में…

Hindi Kahani – चोर की मुक्ति

Hindi Kahani –  बहुत समय पहले अयोध्या नगरी में वीरकेतु नाम का एक राजा राज्य करता था। उस राज्य में रत्नदत्त नाम का एक वैशिक रहता था। उसकी एक कन्या थी जिसका नाम रनावती था जब वह युवती हुई, तब रत्नदन से न केवल बड़े बड़े वणिक, बल्कि राजा लोग भी उससे विवाह की याचना करने लगे। पुरुषों से द्वेष रखने वाली यह कन्या पति के रूप में इंद्र को भी पसंद नहीं करती थी। वह विवाह की बात भी न सुनना चाहती थी, सुनते ही प्राण त्याग करने का उद्यत हो जाती थी। पुत्री से अधिक प्रोति होने के कारण पिता दुःखी होकर भी चुप रहा, लेकिन यह बात पूरी अयोध्या में फैल गई। उन्हीं दिनों अयोध्यावासियों के यहाँ लगातार चोरियाँ होने लगी। तब समस्त पुरवासियों ने राजा वीरकंतु से निवेदन किया- ‘महाराज! हम लोग रोज-रोज चोरों के द्वारा लूटे जाने पर भी उन्हें देख नहीं पाते, अतः आप ही इसका उपाय करें।’

पुरवासियों की बात सुनकर राजा चौरकेतु ने पहरेदारों को आदेश दिया। पहरेदार रात के समय छिपकर भी नगरी के चारों का पता न लगा सके। नगरी में चोरियाँ होती ही रहीं, तब एक दिन राजा वेश बदलकर स्वयं ही रात के समय चुपचाप महल से निकला और शस्त्र लेकर अकेला ही नगर में घूमने लगा। उसने एक जगह एक अकेले व्यक्ति को चारदीवारी में जाते हुए देखा।

Hindi Kahani – चोर की मुक्ति

वह पाँवों की आहट बचाता, बड़ी होशियारी से चल रहा था। उसकी आँखें शंकित और चंचल थीं, वह बार-बार पीछे की ओर देखता जाता था। राजा यह सोचकर उसके पास गया कि अवश्य ही यही चोर है, जो अकेला घूमता हुआ मेरी नगरी में चोरी किया करता है। चोर ने राजा को देखकर पूछा- ‘तुम कौन हो भाई?”
राजा बोला- ‘मैं चोर हूँ।’ यह सुनकर चोर बोला – ‘तब तो मेरे ही समान होने के कारण तुम मेरे अपने हो, इसलिए तुम मेरे घर चलो। वहां मैं मित्र के समान तुम्हारा स्वागत करूंगा।’

राजा उसकी बात मानकर उसके घर चला गया, जो एक वन में खोदी हुई जमीन के अंदर था। वहां सुख-सुविधाओं के अनन्त वैभव भरे हुए थे। राजा जब वहां एक आसन पर बैठ गया, तब चोर घर के भीतरी हिस्से में चला गया। उसी समय एक दासी ने वहां आकर राजा से कहा- ‘महाराग! आप यहां मृत्यु के मुख में क्यों आए हैं? यह पापी प्रसिद्ध चोर है। जब वह बाहर निकलेगा, तब निश्चय ही आपके साथ विश्वासघात करेगा, अतः आप शीघ्र ही यहां से चले जाएं।’

दासी की बात सुनकर राजा झटपट वहां से निकल कर अपने महल में आया और रातों-रात उसने अपनी सेना को तैयार कर लिया। सेना सजाकर वह चोर के भूमिगृह के पास आया। तुरही बजाती हुई उसकी सेना ने उस चोर के घर को जाने वाली सुरंग के मुहाने को घेर लिया। इस तरह अपने घर को घिरा हुआ जान कर चोर समझ गया कि उसका भेद खुल गया है, इसलिए वह वीर मरने का निश्चय करके युद्ध के लिए बाहर निकल आया। युद्ध के लिए बाहर निकलकर उसने अमानुषिक पराक्रम दिखाया। हाथ में ढाल और तलवार लेकर, अकेले ही उसने हाथियों की सूंड, घोड़ों की जांघे और वीरों के मस्तक काट डाले। तब अपनी सेना को इस तरह नष्ट होती देखकर, राजा स्वयं ही आगे बढ़ा। राजा खड्ग-विद्या का जानकार था। उसने नाटकीय कौशल से उसके हाथ से पहले तलवार. फिर छुरी छीन ली। इस प्रकार वह चोर जब निःशस्त्र हो गया, तब राजा ने भी अपने शस्त्र छोड़ दिए और बाहु-युद्ध से उसे पछाड़कर जीवित ही पकड़ लिया तथा उसे बाँध कर, उसकी धन-दौलत के साथ, अपनी नगरी में ले आया। जब उस चोर को वध भूमि में ले जाया जा रहा था, उसी समय वणिक की कन्या रत्नावती ने उसे अपने महल से देख लिया। वह घायल था, उसके अंग धूल से भरे थे, फिर भी रत्नावती उसे देखकर कामवश हो गई। उसने जाकर अपने पिता रत्नदत्त से कहा- ‘पिताजी! जिस पुरुष को ये लोग वध करने के लिए ले जा रहे हैं, मैंने उसे ही अपना पति चुना है अतः आप राजा से कहकर उसकी प्राणरक्षा करें, नहीं तो उसके पीछे मैं भी मर जाऊंगी।’

Hindi Kahani – चोर की मुक्ति

यह सुनकर रत्नदत्त बोला ‘बेटी! यह तुम क्या कह रही हो? तुम तो उन राजाओं को भी पति नहीं बनाना चाहती, जो तुम्हारी कामना करते हैं, फिर तुम आपत्ति में पड़े हुए, इस दुष्ट चोर की इच्छा कैसे करती हो?”
लेकिन रत्नावती पिता की इन बातों से भी अपने निश्चय से नहीं टली। आखिरकार बेटी का अटल निश्चय देखकर रत्नदत्त राजा के पास गया। उसने अपना सब कुछ देकर भी राजा से उस चोर की मुक्ति मांगी, लेकिन राजा ने सौ करोड़ स्वर्ण मुद्राएं लेकर भी उस चोर को छोड़ना स्वीकार नहीं किया, जो उसको लूटता रहा था और जिसे उसने अपनी जान की बाजी लगाकर पकड़ा था।
रत्नावती के पिता जब इस तरह असफल होकर लौट आए, तब सबके रोकने-मना करने पर भी वह स्नान करके और पालकी पर सवार होकर, उस चोर के बाद मरने के लिए निर्धारित वधभूमि में गई। उसके पीछे-पीछे रोते हुए उसके माँ-बाप तथा अन्य लोग भी गए।

इसी बीच बधिकों ने चोर को सूली पर चढ़ा दिया था। उसके प्राण छटपटा रहे थे। तभी उसकी नजर अपने कुटुम्बियों के साथ आती हुई रत्नावती पर पड़ी। लोगों से उसका वृत्तांत सुनकर चोर ने क्षण-भर तो आँसू बहाए, फिर वह हँसा और फिर सूली पर चढ़े हुए उस चोर ने अपने प्राण त्याग दिए ।
फिर उस साध्वी वणिककन्या ने उस चोर के शरीर को सूली पर से उत्तरवाया और उसे लेकर चिता पर आरोहण किया। इसी बीच भगवान शिव अदृश्य रूप में इस श्मशान भूमि में प्रकट हुए और बोले- ‘पतिव्रते! स्वयं वरण किए हुए इस पति के प्रति तुमने जो भक्ति दिखलाई है, उससे मैं संतुष्ट हुआ, अत: तुम मुझसे वर मांगो।’

Hindi Kahani – चोर की मुक्ति

यह सुनकर रत्नावती ने देवाधिदेव महादेव को प्रणाम करके उनसे वर मांगा। बोली- ‘भगवन्! मेरे पिता के कोई पुत्र नहीं है। उन्हें सौ पुत्र हों। मेरे सिवा उन्हें दूसरी संतान नहीं है, अतः मेरे बिना वे जीवित नहीं रहेंगे।’
यह सुनकर भगवान् शिव बोले- ‘तुम्हारे पिता को सौ पुत्र होंगे, लेकिन तुम दूसरा वर मांगो, क्योंकि तुम्हारी जैसी वीर हृदया के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है।’

रत्नावती बोली ‘भगवान्! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो मेरे ये पति जीवित हो जाएं और इनकी मति धर्म में स्थिर रहे। ‘ भगवान शिव बोले- ‘ऐसा ही हो! तुम्हारा यह पति, अक्षतशरीर जी उठे] धर्म में इसकी मति स्थिर रहे और राजा वीरकेतु इस पर प्रसन्न हों।’
जैसे ही भगवान् शंकर ने यह कहा, वैसे ही वह चोर अक्षत शरीर से जीवित होकर उठ खड़ा हुआ। यह देखकर वणिक रत्नदत्त जैसा विस्मित हुआ, वैसा ही प्रसन्न भी हुआ। फिर वह अपने कुटुम्बियों सहित अपनी कन्या रत्नावती तथा जामाता उस चोर को अपने घर ले आया। पुत्र-प्राप्ति का वर पाने की खुशी में रत्नदत्त ने अपनी सामर्थ्य के अनुसार उत्सव मनाया।

जब राजा को यह सब वृत्तांत मालूम हुआ, तब संतुष्ट होकर उसने उस परम वीर चोर को बुलाकर अपना सेनापति बना लिया। उस अद्वितीय वीर चोर ने भी चोरी की वृत्ति छोड़ दी और उस वणिकपुत्री से विवाह करके, राजा के अनुकूल रहकर सन्मार्ग अपनाया।

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