Thursday, 25 April 2024

Hindi Kahani – महान विवेकी राजा

Hindi Kahani – प्राचीनकाल में अंग राज्य में मकरध्वज नाम का एक राजा राज्य करता था। वह काफी वृद्ध हो गया…

Hindi Kahani – महान विवेकी राजा

Hindi Kahani – प्राचीनकाल में अंग राज्य में मकरध्वज नाम का एक राजा राज्य करता था। वह काफी वृद्ध हो गया था। शासन संभालने की शक्ति क्षीण हो गई थी। उसे ज्ञात हो गया था कि मैं कुछ ही दिनों का मेहमान हूं। मेरे प्राण कभी भी निकल सकते हैं। इन परिस्थितियों में एक दिन उसने अपने पुत्र मलयसिंह से कहा बेटे अब मैं काफी वृद्ध हो गया हूं, परंतु इहलोक में मेरी इच्छाएं अभी भी शेष है। सुख भोग की लालसा अब भी मुझमें जीवित है। मैं और कुछ समय जीवित रहना चाहता हूं, लेकिन प्रकृति, धर्म के अनुसार वृद्ध होने के बाद मृत्यु निश्चित है। तुम मेरे मरने के बाद मेरे शव को जलाना नहीं। मेरा शव गल न जाए, केवल हडिड्यां न बचें, इसके लिए उस शव पर आवश्यक लेपन कराना। मेरे शव को सुरक्षित रखना। भविष्य के बारे में कोई क्या कह सकता है ? हो सकता है, भविष्य में वैद्यशास्त्र, इतनी उन्नति करें कि वह मुझे जिंदा कर दे। यह भी संभव है कि कोई दीर्घ तपस्वी, महोन्नत ऋषि अपनी तपोशक्ति से मुझमें प्राण फूंक दे। जो भी हो, इसे अपने पिता की अंतिम इच्छा मानकर अवश्य पूरी करना। इसके एक सप्ताह बाद ही राजा मकरध्वज की मृत्यु हो गई। पिता की इच्छा के अनुसार मलय सिंह ने अपने पिता के शव को नहीं जलाया और उसे चंदन से बनी एक पेटी में सुरक्षित रख दिया। इसके बाद मलय सिंह अंगराज्य के सिंहासन पर आसीन हो गया। कलिंग राज्य की राजकुमारी विद्युतप्रभा से उसने विवाह किया। कुछ कुछ दिन बाद विद्युत प्रभा गर्भवती हो गई। ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की कि लड़का होगा। ज्योतिषी के चेहरे को देखकर मलयसिंह को लगा कि ज्योतिषी और भी बताना चाह रहा है, लेकिन बताने से डर रहा है।

तब मलयसिंह ने उसे आश्वासन देते हुए कहा- ‘जो स्पष्ट है कहिए। कुछ भी छिपाइए मत।’ ज्योतिष ने कहा- ‘राजन्! एक महीने के अंदर महारानी को सर्प द्वारा
इसने का खतरा है।’

राज- दंपत्ति ज्योतिषी की इस भविष्यवाणी पर बहुत ही व्याकुल हुए। अब तक उन्हें इस बात पर अपार हर्ष हो रहा था कि राजसिंहासन पर आसीन होने के लिए राजकुमार पैदा होने वाला है, अपने वंश का वारिस आने वाला है, लेकिन ज्योतिषी की बातों ने क्षण-भर में उनका आनंद दुःख में बदल दिया। उस दिन से राजा ने राज्य में दिखाई देने वाली हर बाँबी को खोदकर उसमें साँप दिखाई पड़े, तो मारने की आज्ञा सैनिकों को दी। हर घर में नेवले को पालना अनिवार्य कर दिया। मलयसिंह स्वयं एक चील को पालने लगा। वह चील सदा पालतू तोते की तरह उसके कंधे पर बैठी रहती थी।

कुछ समय तक तो महारानी बिना किसी आफत के मुक्त रहीं, लेकिन सर्प के खतरे की जो भविष्यवाणी की गई थी, वह दिन आ गया। विद्युतप्रभा अपने पति से बोली- ‘इस खिली चाँदनी रात में थोड़ी देर बगीचे में घूमने को जी चाहता है। अगर आप कहें तो चलें?”

Hindi Kahani – महान विवेकी राजा

मलयसिंह उसकी इच्छा अस्वीकार न कर सका। दोनों बगीचे में टहलने लगे। उस समय जो चील मलयसिंह के कंधे पर थी. अकस्मात उड़ी और पास के अशोक वृक्ष पर रेंगने वाले साँप को लेकर हवा में उड़ चली, परंतु दुर्भाग्य, साँप ने अपने को चील के पंजे से छुड़ाया और ठीक विद्युतप्रभा की भुजा पर जा गिरा। इस आकस्मिक आक्रमण से भयभीत होकर रानी जोर से चिल्लाई। सर्प ने अपना फन उठाया और रानी के कंधे पर डस लिया। विष के प्रभाव से रानी भूमि पर अचेत होकर गिर पड़ी। राजवैद्य दौड़-दौड़े आए। चिकित्सा प्रारंभ करने के पहले ही रानी ने अपने प्राण त्याग दिए । रानी को देखते हुए लग रहा था कि वह अद्भुत सौंदर्य राशि
निद्रावस्था में है। इस स्थिति में देखकर राजा उसे अग्नि को समर्पित नहीं कर पाया। उसके शव पर भी लेपन पुतवाया और उसे चंदन की पेटी में सुरक्षित रख कर उसी कमरे में रख दिया, जिस कमरे में उसने अपने पिता का शव रखा था।

कुछ समय बाद हिमालय पर्वत में तपस्या करने वाले महर्षि चैतन्य आनंद स्वामी उस राज्य में पधारे। उन्होंने मुस्कराते हुए राजा मलयसिंह को आशीर्वाद दिया और कहा- ‘पुत्र! तुम्हें मुझसे कुछ बताने की आवश्यकता नहीं है। जो हुआ है, वह सब मैं जानता हूँ। प्रकृत्ति के विरुद्ध किए जाने वाले कार्य विनाश हेतु होते हैं। अपने पिता के शव को न जलाकर तुमने उसे सुरक्षित रख लिया, इसलिए यह दुर्घटना घटी और उससे तुम्हारी पत्नी की अकालमृत्यु हुई। अब भी कुछ नहीं बिगड़ा। अपने पिता के शव का दाह संस्कार करवाओ। तुम्हारी पत्नी जीवित हो जाएगी।’

महर्षि की बात सुनकर मलयसिंह सोच में पड़ गया। फिर हाथ जोड़कर बोला- ‘स्वामी जी! क्या आप मृतकों को प्राणदान नहीं देंगे?’

महर्षि हँसते हुए बोले- ‘वत्स! मेरी तपोशक्ति केवल एक ही प्राणी को बचाने तक सीमित है। कहो, किसको बचाऊँ, पत्नी को या पिता को?” यह सुनकर मलयसिंह कुछ देर तो चुप रहा। फिर कुछ सोचकर तपाक
से बोला- ‘स्वामीजी! आप मेरे पिता मकरध्वज को ही प्राणदान दीजिए।’ महर्षि ने मलयसिंह का अभिनन्दन करते हुए कहा- ‘वत्स, तुम महान् विवेकी हो। इसीलिए अपने तीनों प्रियजनों को जीवन दे पा रहे हो।’
यह कहानी सुनाकर बेताल बोला- ‘राजन् चैतन्यस्वामी की बातों में पारस्परिक वैरुध्य दिखाई दे रहा है। लगता है, वे अपनी ही बात के विरुद्ध कह रहे हैं। प्रथम तो उन्होंने बताया कि वह अपनी तपोशक्ति से एक ही को जीवित कर पाएँगे, लेकिन मलयसिंह ने जैसे ही अपने पिता को बचाने की प्रार्थना की, तो उन्होंने तत्काल कह दिया कि अपने विवेक से तीनों को जीवन दे रहे हैं। जबकि महर्षि की सम्पूर्ण शक्ति एक ही को जीवित करने तक सीमित है, तो तीन को प्राणदान देना कैसे संभव है? मेरी दृष्टि में यह असंभव है। थोड़ी देर के लिए समझ लें कि यह संभव है, पर यह तो बताएँ कि महर्षि के कहे अनुसार मलयसिंह अपने पिता की दाह-क्रियाएँ करवाता, तो विद्युतप्रभा के मरने की बात ही नहीं उठती अर्धांगिनी की बात भुलाकर अपने वृद्ध पिता को बचाने की प्रार्थना करना राजा का अविवेक है, अक्षम्य अपराध है। राजा यही चाहता था कि सब लोग उसे पितृभक्ति-परायण कहकर उसकी प्रशंसा करें।

थोड़ी देर के लिए इसे भी भुला दें। महर्षि की बातों में एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही है। हम तो केवल मलय सिंह के पिता और पत्नी को ही जानते हैं, लेकिन महर्षि ने जिस तीसरे प्राणी के बारे में बताया, वह तीसरा प्राणी है कौन? मेरे इन संदेहों का समाधान जानते हुए भी अगर आप चुप्पी साधे रहे, तो मेरी शर्त के अनुसार आपके सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगे।’ विक्रमादित्य ने कहा- ‘बेताल! मलयसिंह को केवल पितृभक्त समझना भूल होगी। वह अपनी पत्नी को जान से भी ज्यादा चाहता था। इसलिए पत्नी की मृत्यु के बाद उसने दूसरे विवाह का प्रयत्न ही नहीं किया। ऐसा विचार मन में आने ही नहीं दिया। महर्षि ने कहा कि मकरध्वज के शव की अंतिम क्रिया न करने के दोष ही के कारण विद्युतप्रभा की अकालमृत्यु हुई है। इन बातों से मलयसिंह समझ गया कि अगर महर्षि उसके पिता को प्राणदान देंगे, तो दोष का निवारण हो जाएगा और उसकी धर्मपत्नी भी जीवित हो जाएगी।

इसलिए उसने महर्षि से अपने पिता को प्राणदान देने की प्रार्थना की। इस सूक्ष्मता को जानने के कारण ही महर्षि ने ‘महान विवेकी’ कहकर मलयसिंह का अभिनन्दन किया। विद्युतप्रभा बच गई, तो इसका मतलब यही हुआ कि उसके गर्भ में जो शिशु है, वह भी बच गया। उस शिशु को ही महर्षि ने तीसरा प्राणी बताया। ‘

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