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Hindi Kavita – आए हैं जिस मक़ाम से

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आए हैं जिस मक़ाम से उसका पता न पूछ
दास्तां-सफ़र पूछ मगर रास्ता न पूछ।

गर हो सके तो देख ये पाँवों के छाले
सहरा कहाँ था और कहाँ ज़लज़ला न पूछ।

वहाँसे चले हैं जबसे निरंतर नशे में है
ले जाए किस दयार में हमको नशा न पूछ।

वाक़िफ़ नहीं है इश्क़ की पेचीदगी से तू
है ये शुरू कहाँ से कहाँ पे सिरा न पूछ।

मौसम गए सुकून गया ज़िन्दगी गई
दीवानगी की आग में क्या-क्या गया न पूछ।

किसकी तलाश कैसी हम्द कैसी बन्दगी
है धूप में कि छाँव में मेरा ख़ुदा न पूछ।

जब वो नज़र के बीच जले है चराग़-सा
ख़्वाहिश न कोई पूछ कोई इल्तिजा न पूछ।

इन्दु श्रीवास्तव

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