Tuesday, 23 April 2024

जयंती : सादगी की प्रतिमूर्ति थे प्रथम राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद

विनय संकोची भारत रत्न, भारतीय संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले, महान स्वतंत्रता सेनानी, देश के प्रथम राष्ट्रपति, संपूर्ण…

जयंती : सादगी की प्रतिमूर्ति थे प्रथम राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद

विनय संकोची

भारत रत्न, भारतीय संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले, महान स्वतंत्रता सेनानी, देश के प्रथम राष्ट्रपति, संपूर्ण जीवन सादा जीवन-उच्च विचार के सिद्धांत का निर्वाह करने वाले, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की आज जयंती है। राजेंद्र प्रसाद जी का जीवन राष्ट्र निर्माण और मां भारती की सेवा में समर्पित था। असाधारण प्रतिभा के धनी डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने आजीवन सिद्धांतों से कभी कोई समझौता नहीं किया। उनका मानना था कि जो बात सिद्धांत में गलत है वह बात व्यवहार में भी सही नहीं है।

बिहार के सिवान के जीरादेई गांव में के कायस्थ परिवार में जन्मे डॉ.राजेंद्र प्रसाद के पिता महादेव सहाय संस्कृत और फारसी के जानकार थे और माता कमलेश्वरी देवी एक धार्मिक ग्रहणी थीं। राजेंद्र बाबू हमेशा ही एक मेधावी छात्र रहे मात्र 13 वर्ष की आयु में विवाह के बाद भी उनकी पढ़ाई का सिलसिला जारी रहा।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अनेक शिक्षण संस्थाओं को शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दीं। बिहार के मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर और फिर प्रिंसिपल भी रहे। कानून की पढ़ाई का इरादा किया और कानून पढ़ते-पढ़ते कलकत्ता सिटी कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के तौर पर काम भी किया।

कानून की डिग्री हासिल करने के बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद के सामने बेहतरीन वकालत का पेशा था, लेकिन उन्होंने देश सेवा को प्राथमिकता दी और 1928 में तो उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय के सीनेटर पद से त्यागपत्र देकर स्वयं को पूरी तरह देश सेवा को समर्पित कर दिया और देखते ही देखते राजेंद्र बाबू कांग्रेस से जुड़ने के बाद स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार और महाराष्ट्र के प्रमुख नेता बन गए।

राजेंद्र बाबू का हिंदी, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी और बांग्ला भाषाओं पर पूरा अधिकार था। उन्होंने संस्कृत का भी अच्छा अध्ययन कर रखा था और गुजराती का भी उन्हें व्यवहारिक ज्ञान था। हिंदी की पत्रिकाओं में राजेंद्र बाबू लेख लिखते रहते थे।

3 दिसंबर 1884 को जन्मे राजेंद्र बाबू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि गोपाल कृष्ण गोखले से मुलाकात करने के बाद वह आजादी की लड़ाई में शामिल होने को बेचैन हो गए, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियां उनके मार्ग में बाधा थीं। काफी सोच-विचार के बाद राजेंद्र प्रसाद जी ने अपने अग्रज महेंद्र प्रसाद और अपनी पत्नी राजवंशी देवी को भोजपुरी में एक पत्र लिखा और देश सेवा की अनुमति मांगी। बमुश्किल मिली अनुमति के बाद राजेंद्र बाबू आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। बापू के 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ और 1931 के ‘नमक सत्याग्रह’ राजेन्द्र प्रसाद जी का योगदान सराहनीय रहा।

सरल, सहज और मृदुभाषी डॉ. राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति बने और बारह वर्षों तक देश के सर्वोच्च पद को संभाला। 26 नवंबर 1950 को देश को गणतंत्र राष्ट्र का दर्जा मिलने से वे देश के पहले राष्ट्रपति बने। 1957 में उन्हें दोबारा राष्ट्रपति चुना गया और 1962 में वे अपने पद से हट गए। राजेंद्र बाबू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक से अधिक बार अध्यक्ष भी रहे थे। वे उच्च कोटि के लेखक भी थे उन्होंने 1946 में अपनी आत्मकथा के अतिरिक्त ‘बापू के कदमों में’, ‘इंडिया डिवाइडेड’, ‘सत्याग्रह ऐट चंपारण’, ‘गांधी जी की देन’, ‘भारतीय संस्कृति व खादी का अर्थशास्त्र’ आदि पुस्तकें भी लिखीं। राजेंद्र बाबू 1962 में पद त्याग कर पटना चले गए थे और बिहार विद्यापीठ में रहकर जनसेवा का कार्य करने लगे थे।

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