प्रत्येक व्यक्ति जो इस धरती पर जन्म लेता है वह अमर होना चाहता है मृत्यु से सभी डरते हैं इसी कारण से बड़े अपने से छोटों को हमेशा दीर्घायु होने का आशीर्वाद देते हैं पर सब लोग दीर्घायु नहीं होते और कोई चिरजीवी भी नहीं होता|
हमारे प्राचीन ग्रंथों में बताया गया है कि सात चिरंजीवी पुरुष हुए हैं उनके नाम है अश्वत्थामा, महाबली, व्यास, हनुमान जी विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम |
आइए हम इन चिरंजीवियों के विषय में थोड़ा-थोड़ा जानने का प्रयास करते हैं |
अश्वत्थामा –गुरु द्रोण के पुत्र अनेक शक्तियों के स्वामी और विद्वान जिनके बारे में कहते हैं कि उन्होंने ही द्रौपदी के पुत्रों को रात के अंधेरे में जलाकर मार दिया था और अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में ब्रह्मास्त्र चला दिया था और कृष्ण भगवान के श्राप के कारण इस पृथ्वी पर ईश्वर से अपनी मुक्ति की प्रार्थना करते हुए सदियां बता दी |
राजाबलि –प्रहलाद के पुत्र जो अपने दान कर्म के कारण इतने प्रसिद्ध थे कि स्वर्ग में देवता भी उनकी प्रसिद्धि से डरने लगे थे और ईश्वर ने उनसे दो पग में पूरी पृथ्वी और स्वर्ग ले लिया और तीसरे पद में उन्होंने अपना शीश ईश्वर के सामने कर दिया|
व्यास जी-कौरवों और पांडवो के जैविक पितामह महान् विद्वान महाभारत ग्रंथ के रचयिता
हनुमान जी –राम भक्त हनुमान जिन्होंने प्रभु भक्ति में अपनी छाती चीरकर उसमें श्री राम के दर्शन करा दिए थे |
विभीषण –लंकापति रावण के छोटे भाई विभीषण जिन्हें सारी दुनिया लंका के विनाश व रावण की मृत्यु के रहस्य को उजागर करने वाला मानती है| सही का साथ दिया परन्तु अपने राज्य व राजा से विश्वासघात किया |
कहावत भी हैै कि घर का भेदी लंका ढाए
कृपाचार्य –राजा शांतनु द्वारा गोद लिए व पालित आचार्य जीवन भर राज्य को समर्पित सही गलत समझते हुए भी पालक का ही साथ देने का धर्म
परशुराम-जन्म लिया ब्राह्मण कुल में |पिता की अतिशय भक्ति यहां तक कि पिता के कहने पर माता का शीश तक काट दिया | क्रोध में वंश के वंश नष्ट कर दिये|
यह है सप्त चिरंजीवियों के अति संक्षिप्त परिचय |
कुछ लोगों का कहना है कि यह सब वाकई में जीवित है |यहां तक कि अश्वत्थामा और हनुमान जी को तो बहुत लोगों ने देखने का दावा भी किया है |मेरी मंशा ना तो उन सब लोगों को झूठा साबित करने की है और ना ही सही |
मुझे ऐसा लगता है कि हमारे ग्रंथों में यह सब जीवित है ऐसा कह कर हमें एक संदेश दिया है कि यह सभी शारीरिक रूप से जीवित हो या ना हो, यह सब हर व्यक्ति के अंदर छुपे हुए भाव है, यह व्यक्ति की सोच के आयाम है जैसे अश्वत्थामा -इतने विद्वान होते हुए भी विवेक हीनता में उन्होंने अविवेकी होकर गलत काम किए, जैसा कि एक साधारण व्यक्ति करता है , बदले की भावना इंसान का विवेक छीन लेती है और उससे ऐसा आचरण करवाती है उसके स्तर का ना होकर बहुत निम्न स्तर का होता है.|
राजा बलि -यह आपके अंदर के उस गुण को दर्शाते हैं जो दूसरों को तकलीफ में देख कर अपना सर्वस्व तक लुटा देते हैं जिनके लिए धर्म ही सर्वोपरि है |
व्यास जी– व्यास मतलब विद्वता जब तक इस पृथ्वी पर विद्वान रहेंगे इस धरती को प्रेरणादायक ग्रंथ मिलते रहेंगे
हनुमान जी– हनुमान जी प्रतीक है शक्ति और भक्ति का अपने इष्ट देव के लिए असंभव कार्य भी कर गुजरने का भाव| हनुमान जी और कोई नहीं वह आनंद और भक्ति का वो स्रोत है जो अगर किसी को प्राप्त हो गया तो उसे और कोई वस्तु आकर्षित ही नहीं कर सकती
विभीषण -विभीषण दूसरा नाम विश्वासघात का| एक ऐसा व्यक्ति जो अपने राजा व राज्य के सर्वनाश का कारण बना| अपनी सोच में वह सही हो सकते हैं पर मैं कह सकती हूं कि ऐसे ही विभीषण के कारण हमारी भारत भूमि ने सदियों तक आक्रांताओं के वार सहे और गुलामी भी सही|
कृपाचार्य –जिसने पाल पोस कर बड़ा किया उसके प्रति स्वामी भक्ति यह भाव जब तक जीवित है तब तक अनजान बालकों को का पालन पालन पोषण करने लोग आगे आते रहेंगे |
परशुराम -परशुराम नाम है क्रोध के अतिरेक का |एक गलती के लिए पूरे वंश को सजा देने का बीड़ा उठा लेने का वाले का | व्यक्ति अपने ज्ञान व शक्ति का
अपने क्रोध से दमन कर देता है|
यह सात भाव प्रत्येक व्यक्ति के अंदर मौजूद होते हैं| हम इनमें से जिस भाव को ज्यादा महत्व देते हैं वही भाव ज्यादा शक्तिशाली हो जाता है इसलिए हमें अपने भावों को सींचते समय यह जरूर सोचना चाहिए कि हम अश्वत्थामा परशुराम या विभीषण को खाद पानी दे रहे हैं या महाबली व्यास हनुमान या कृपाचार्य को | हमारा कर्तव्य होना चाहिए कि हम उन्हें शारीरिक रूप से ना ढूंढ करें इन चिरजीवियों में जो अच्छे गुण हैं उन गुणों को अपने अंदर समाहित कर के एक अच्छे इंसान बनने का प्रयत्न करें |