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आज कलम के जादूगर की पुण्यतिथि, जानिए कैसे धनपत राय से बन गए मुंशी प्रेमचंद

Munshi Premchandra

भारतीय लेखकों में सर्वोच्च मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchandra) का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। ये भारतीय इतिहास के एक ऐसे लेखक हैं, जिन्होंने अपने कलम के जादू से हर वर्ग के लोगों को बांधकर रखा।

संक्षिप्त जीवन परिचय–
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी (Varanasi) जिले के लमही गांव में हुआ। इनकी माता का नाम आनंदी देवी व पिता का नाम अजायब लाल था। इनके पिता पटवारी का काम करते थे। मुंशी प्रेमचंद का बचपन गांव में ही बिता। इनका बचपन बेहद गरीबी में बीता यहां तक की प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने के लिए इन्हें काफी दूर तक नंगे पांव पैदल ही चलना पड़ता था।

अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए इन्होंने बच्चों को ट्यूशन देना शुरू किया और ट्यूशन में जो पैसा मिलता था उसमें से अपने खर्च के लिए रख बाकी पैसा घर भेज दिया करते थे। साहित्य में बचपन से ही रुचि थी अतः उन्होंने स्नातक की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य, पर्शियन व इतिहास विषय से पूरी की।

कैसे धनपत राय बन गए मुंशी प्रेमचंद्र–
बचपन में मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand) को धनपत राय श्रीवास्तव के नाम से जाना जाता था। साहित्य के क्षेत्र में इन्हें प्रेमचंद के नाम से जाना जाता है। इसके पीछे इसके पीछे भी एक कहानी है। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद इनकी सरकारी नौकरी लग गई इसके साथ ही, इन्होंने लेखन कार्य भी शुरू किया। शुरुआती दौर में इन्होंने नवाब राय के नाम से लेखन की शुरुआत की। यह उस दौर में लेखन कार्य किया करते थे जब हमारा देश अंग्रेजों के पराधीन था। इनकी पहली कहानी संग्रह का नाम था ‘सोजे वतन’। यह कहानी अंग्रेजों द्वारा देश पर किए जा रहे अत्याचार पर आधारित थी। यही वजह थी कि इनकी इस कहानी को अंग्रेजों ने जब्त कर लिया। इस घटना के बाद इन्होंने नवाब राय नाम को छोड़ प्रेमचंद के नाम से लेखन कार्य शुरू किया इस घटना के बाद से इनकी जितनी भी कहानियां उपन्यास साहित्य रचना सामने आए उन सब का प्रकाशन प्रेमचंद्र के नाम पर ही हुआ।

प्रेमचंद्र जी का साहित्यिक योगदान –
प्रेमचंद्र जी का साहित्यिक योगदान हमारे देश की साहित्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। इन्होंने अपने लेखन कार्य से हर तबके के लोगों को बांधकर रखा। इनकी लेखन शैली ऐसी थी कि यह कभी भी पुरानी नहीं हो सकती। हमारा कहने का तात्पर्य यह है कि हर पीढ़ी के लोग जब इनकी रचनाओं को पढ़ते हैं, तो यह रचनाएं उन्हें खुद से जोड़ देती है।

मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchandr) ने अपने जीवन काल में 300 से भी अधिक कहानियां, लगभग 15 उपन्यास, 10 बाल पुस्तकें, सात अनुवाद एवं 3 नाटक के साथ साथ हजारों संपादकीय भाषण, भूमिका इत्यादि की रचनाएं की। उन्होंने अपने कलम भारतीय साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की। यही वजह है इन्हें ‘कलम के जादूगर’ की संज्ञा दी गई। इनके बेटे अमृतराज ने इनकी जीवनी ‘कलम के सिपाही’ के नाम से लिखी है।

साल 1936 में 8 अक्टूबर को इन्होंने अपनी अंतिम सांसे ली। यह आज भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन इनकी रचनाएं आज भी हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

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