देश की आजादी में अहम योगदान देने वाले भगत सिंह (BHAGAT SINGH) का जन्म आज के दिन यानी कि 27 सितंबर को 1907 में लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था जो अब पाकिस्तान में स्थित है। आज के देशभर में उनको श्रद्धांजलि दी जा रही है।
करतार सिंह सराभा और लाला लजपत राय ने उनके व्यक्तित्व पर काफी प्रभाव डाला था। 13 अप्रैल 1919 में हुए जलियनवालाबाग (JALLIANWALABAGH) हत्याकांड से काफी प्रभावित हुए थे।
आंदोलन में निभाई अहम भूमिका
भगत सिंह महात्मा गांंधी (MAHATMA GANDHI) द्वारा चलाए गए आंदोलन और भारत नेशनल काॅन्फ्रेन्स के सदस्य बनाए गए थे। आंदोलन से जुड़ने के कुछ समय बाद उन्होंने किसानों का साथ देने का फैसले का किया। उन्होंने चन्द्र शेखर आजाद के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरु किया। इसके बाद उन्होंने चन्द्रशेखर आजाद (CHANDRASHEKHAR AZAD) और रामप्रसाद बिस्मिल के साथ मिलकर कोकारी कांड नामक घटना को अंजाम दिया। इन सब ने 9 अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली 8 नंबर डाउन पैसेंजर से काकोरी नामक छोटे से स्टेशन पर सरकारी खजाने को लूट लिया था।
भगत सिंह अध्ययन में लेते थे दिलचस्पी
भगत सिंह सच्चे देशभक्त होने के अलावा एक अध्ययनशील विचारक, लेखक, चिंतक, दार्शनिक, पत्रकार और अंग्रजों के खिलाफ लड़ने वाले महान क्रांतिकारी थे। यहीं नहीं उन्होंने 23 साल की छोटी सी उम्र में फ्रांस, आयरलैंड औऱ रुस में हुई क्रांति का खूब अध्ययन (STUDY) किया था। वे हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के जानकार होने के साथ भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता बन गए थे। इसके अलावा भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे।
जेल में भगत सिंह (BHAGAT SINGH) ने लगभग दो साल गुज़ार दिया। जेल में रहने के दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते थे। उन्होंने जेल में अध्ययन जारी रखा। उनके द्वारा लिखे गए लेख आज भी विचारों का दर्पण माने जाते हैं।
उन्होंने अपने द्वारा लिखे हुए लेख से पूंजीपतियों को अपना शत्रु बताया है। उन्होंने बताया कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु ही कहा जाता है। उन्होंने जेल में रहने के दौरान अंग्रेज़ी में एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक है ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’? भगत सिंह और उनके साथियों ने जेल में 64 दिनों तक भूख हड़ताल जारी रखी। उनके साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण को त्याग दिया था।
साल 1931 को 23 मार्च के दिन भगत सिंह और इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दी गई थी। फांसी पर जाने से पहले वे ‘बिस्मिल’ की जीवनी पढ़ कर उनके जीवन को जानने की कोशिश कर रहे थे।