Saturday, 30 November 2024

वो शक्ति स्वरूपा थीं!

विनय संकोची आज महान् क्रांतिकारिणी झांसी की रानी और देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जयंती है। नारी…

वो शक्ति स्वरूपा थीं!

विनय संकोची

आज महान् क्रांतिकारिणी झांसी की रानी और देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जयंती है। नारी शक्ति की प्रतीक दोनों महामानवी विदुषियों को भावपूर्ण श्रद्घांजलि।

मणिकर्णिका-मनु से झांसी की रानी बनने वाली क्रांति-ज्वाला महारानी लक्ष्मीबाई की कहानी आज भी रोमांचित करती है। अंतिम सांस तक अंग्रेजों से लोहा लेने वाली रानी झांसी, अंग्रेज़ उनका शव तक लेने में सफल नहीं हो सके थे- रानी की यही तो अंतिम इच्छा थी।

जिस समय एक अंग्रेज ने पहले से ही घायल रानी के सिर पर तलवार का घातक प्रहार किया, तो वो बहते खून से लगभग अंधी हो गईं। रानी घोड़ेे से नीचे गिर पड़ीं। एक सैनिक ने उन्हें उठाया और पास के मंदिर में ले गया। रानी जीवित थीं लेकिन धीरे-धीरे होश खो रही थीं। बाहर गोलियां चल रही थीं। रानी के मुंह से रुक-रुक कर शब्द निकल रहे थे- ‘अंग्रेजों को मेरा शरीर नहीं मिलना चाहिए’- फिर उनका सिर एक ओर लुढ़क गया। सब कुछ शांत हो गया। रानी ने प्राण त्याग दिये। रानी के अंगरक्षकों ने आनन-फानन में कुछ लकडिय़ां जमा कीं और रानी की पार्थिव देह को उन पर रखकर आग लगा दी। अंग्रेजों की ताबड़तोड़ गोलीबारी से मंदिर के अंदर से संघर्ष कर रहे रानी के वफादार और पुजारी मारे गये। अंग्रेज अंदर पहुंचे, उन्हें एक शव की तलाश थी। तभी उन्होंने जलती चिता देखी। अंग्रेजों ने अपने बूट से चिता को बुझाने का प्रयास किया लेकिन तबतक रानी की हड्डियां राख बन चुकी थीं। अंग्रेज जीते जी तो रानी को छू नहीं सके, उनके पार्थिव शरीर को भी हासिल नहीं कर पाये। अंग्रेज इसे अपनी हार के तौर पर देखते रहे।

एक अंग्रेज अधिकारी कॉर्नेट कॉम्ब ने लक्ष्मीबाई की बहादुरी और हौसले को देखते हुए लिखा था- ‘वो बहुत ही अद्भुत और बहादुर महिला थी। यह हमारी खुशकिस्मती थी कि उसके पास उसी के जैसे आदमी नहीं थे।’ लॉर्ड कंबरलैंड ने लिखा था- ‘लक्ष्मीबाई असाधारण बहादुरी, विद्वता और दृढ़ता की धनी हैं। वे अपने अधीन लोगों के लिए बेहद उदार हैं। ये सारे गुण सभी विद्रोही नेताओं में उन्हें सबसे ज्यादा खतरनाक बनाते हैं।’

झांसी पर आखिरी कार्रवाई करने वाले सर ह्यूरोज ने कहा था-‘सभी विद्रोहियों में लक्ष्मीबाई सबसे ज्यादा बहादुर और नेतृत्व कुशल थीं। सभी बागियों के बीच वही मर्द थीं।’

रानी लक्ष्मीबाई की वीरगाथा को कुछ शब्दों, कुछ पंक्तियों में समेटना सागर के जल को एक चम्मच में समेटने जैसा है। शक्ति स्वरूपा झांसी की रानी को शत-शत नमन्।

 

19 नवम्बर के दिन ही इंदिरा प्रियदर्शनी का भी जन्म हुआ था, जो अपने बुद्घि-कौशल के चलते देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री के रूप में प्रतिष्ठित हुईं, पूरी दुनिया में एक सफल राजनेता के रूप में चर्चित और प्रसिद्घ हुईं। श्रीमती इंदिरा गांधी सादा जीवन, उच्च विचार की साकार मूर्ति थीं। राष्ट्रीय एकता बनाये रखने के लिए श्रीमती गांधी ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक भारत के गौरव को बढ़ाने के लिए भारतवासियों को सचेत किया। अपनी मृत्यु से 24 घंटे पूर्व भुवनेश्वर में दिये गये भाषण में उन्होंने जो कहा, उनको सुनकर तो ऐसा ही लगता है जैसे उन्हें अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था। अपने अंतिम भाषण में उन्होंने कहा था- ‘मुझे चिंता नहीं कि मैं जीवित रहूं या न रहूं। यदि राष्ट्र की सेवा में मैं मर भी जाऊं तो मुझे इस पर गर्व होगा। मुझे विश्वास है कि मेरे रक्त की एक-एक बूंद से अखंड भारत के विकास में मदद मिलेगी और यह सुदृढ़ तथा गतिशील होगा।’

इस भावपूर्ण भाषण के अगले दिन 31 अक्टूबर 1984 को नई दिल्ली के सफदरजंग रोड स्थित उनके आवास पर सुबह 9:29 बजे उनके दो अंगरक्षकों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने गोली मारकर इंदिरा गांधी की हत्या कर दी। कहा और माना जाता है कि इंदिरा गांधी की हत्या ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार की प्रतिक्रिया स्वरूप हुई, जिसका आदेश इंदिरा जी ने दिया था। जितना बड़ा नेता होता है, उससे उतनी ही बड़ी गलतियां होती हैं- इंदिरा जी से भी कुछ गलतियां हुईं, लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं हो सकता कि उन्होंने कुछ अच्छा किया ही नहीं। देश और विश्व ने उन्हें लौह महिला यानी आयरन लेडी के रूप में बेवजह तो स्वीकार नहीं किया होगा। इंदिरा गांधी की आलोचना-निंदा करना आसान है लेकिन देश को आगे बढ़ाने, विश्व पटल पर सशक्त राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में उनके योगदान को विस्मृत करना असंभव है।

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