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नि:संकोच : समाजसेवा के लिए चुनाव लडना जरूरी तो नहीं!

विनय संकोची

मेरी समझ में आज तक यह नहीं आया है कि राष्ट्र सेवा और समाज सेवा करने के लिए सांसद, विधायक, मेयर, पार्षद या प्रधान बनने की क्या जरूरत है? महात्मा गांधी ने कोई चुनाव नहीं लड़ा लेकिन अपनी राष्ट्र और समाज की सेवा के कारण राष्ट्रपिता बन गए। नोटों पर उनके फोटो छप गए थे। उनके पुतले लग गए। मुझे व्यक्तिगत रुप से लगता है कि यदि गांधीजी चुनावबाजी के चक्कर में पड़ते तो देश के दिल में इतना बड़ा स्थान नहीं बना सकते थे।

बहरहाल इस सच को भी स्वीकार करना होगा कि चुनाव की प्रणाली, चुनाव की परंपरा है, तो लोग उस में भाग भी अवश्य ही लेंगे। चुनाव लड़ने में कोई बुराई नहीं है, अगर चुनाव लड़ने वाले का उद्देश्य वास्तव में समाज की सेवा करना हो। आप तो बुद्धिमान हैं, जानते ही हैं कि समाज सेवा के उद्देश्य से चुनाव मैदान में उतरने वालों का प्रतिशत बहुत कम है, यूं समझो कि नगण्य के आसपास। चुनाव जीतने के बाद नेताजी की प्राथमिकता अपनी और अपनों की स्वार्थ पूर्ति के रूप में देखी जा सकती है। समाज दूसरे नंबर पर खड़ा नजर आता है।

जब भी किन्हीं चुनावों की आमद होती है, तो घोड़े के नाल ठुकते देख कर तमाम मेंढकियां भी अपनी टांग उठा देती हैं। मतलब आप समझ ही गए होंगे। टिकट की दौड़ में ऐसे अनगिनत लोग लग जाते हैं, जिनका समाज में कोई स्थान नहीं है, जिन्होंने समाज के लिए कोई नेक काम किया ही नहीं है, जो आत्ममुग्धा नायिका की तरह स्वयं को सबसे श्रेष्ठ समझते हैं। टिकट न मिलने की स्थिति में ऐसे नेताओं का बयान होता है-‘टिकट मिल जाता, तो हर हालत में जीतता, हारने का तो कोई मतलब ही नहीं था।’

बहुत से लोग निर्दलीय खड़े हो जाते हैं, उनमें से बहुत से इस आशा में खड़े हो जाते हैं कि कोई उन्हें बिठाने के लिए आएगा और उन्हें बैठ जाने का कुछ न कुछ मिल जाएगा। दूसरे पर अहसान भी मुफ्त में चढ़ जाएगा। ऐसे स्वयंभू नेताओं को तब शॉक लगता है, जब कोई उनके पास ऑफर लेकर आता ही नहीं है और अपनी और अपनी अनदेखी से रुष्ट नेताजी अपने लिए भी वोट मांगने नहीं निकलते हैं।

पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव आने वाले हैं और उस समय तमाम घोड़े और मेंढकियां नाल ठुकवाने के लिए आकर खड़े हो जाएंगे और तमाम नेता सिफारिश कर सकने वालों की परिक्रमा में भी जुट जाएंगे। अनेक नेता तो अपना नाम चलाने के लिए इस-उस के माध्यम का सहारा लेने में नहीं चूकते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो मौन भाव से समाज के बीच जाते हैं। यह साहस वही नेता कर पाएंगे, जिन्हें अपने काम पर भरोसा है, लोगों के प्रेम पर विश्वास है।

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