China News : हमारा पड़ोसी देश चीन अपनी ताकत के नशे में अंधा होता जा रहा है। भारत को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने वाला चीन इन दिनों एक खतरनाक खेल खेल रहा है। चीन अपने पड़ोस में बसे हुए छोटे-छोटे देशों को महंगी ब्याज दरों पर कर्जे देकर तमाम देशों पर अपना कब्जा जमाना चाहता है। चीन का यह खतरनाक खेल अभी तक ज्यादा लोगों की समझ में नहीं आ रहा है। चीन का प्रयास है कि वह 2049 तक दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति बन जाए।
“महाजन” बन गया है चीन
“महाजन” शब्द आपने जरूर सुना होगा। फिर भी आपको बता दें कि “महाजन” प्राइवेट ढंग से ब्याज पर पैसे देने वाले को कहा जाता है। भारत के पुराने इतिहास में लोगों को कर्ज में डुबाकर “महाजन” अपना गुलाम बना लेते थे। उसी “महाजन” वाले रास्ते पर हमारा पड़ोसी देश चीन चल रहा है। चीन छोटे-छोटे देशों को बेशुमार कर्जा देकर उन देशों पर कब्जा करके पूरी दुनिया में चीन का डंका बजाने की येाजना पर काम कर रहा है। हम यहां चीन की इस खतरनाक योजना का पूरा विश्लेषण कर रहे हैं।
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू मा लगातार ऐसे फैसले ले रहे हैं, जो चीन के साथ उनकी निकटता को ही दर्शाते हैं। छोटे पड़ोसी देशों के साथ चीन की निकटता भारत के लिए चिंताएं बढ़ाने वाली हैं। लेकिन सवाल यह है कि आखिर क्यों चीन विश्व के ऐसे देशों की तरफ अपने पैर पसार रहा है, जो आर्थिक और सामरिक रूप से कमजोर हैं? दरअसल, चीन पूरी तरह से नई विश्व व्यवस्था बनाने का मंसूबा पाले हुए है। शी जिनपिंग की चीनी कम्युनिस्ट पार्टी शासन को 2049 तक प्रमुख विश्व शक्ति बनाने की महत्वाकांक्षा है, जब वह अपने सौ वर्ष पूरे करेगी।
इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए चीन बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत आर्थिक एवं सामरिक रूप से कमजोर देशों को कर्ज देने की नीति का हथियार के रूप में प्रयोग कर रहा है। दूसरी ओर, चीन की आर्थिक मदद से अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने का मंसूबा पाले देश उसके कर्ज के जाल में फंसकर चीन का कर्ज चुकाने में दिक्कतों का सामना कर रहे हैं।
चीनी सहायता प्राप्त देशों, जैसे-श्रीलंका, जांबिया, इथियोपिया, पाकिस्तान, वेनेजुएला, नेपाल, केन्या, कंबोडिया, लाओस, अफगानिस्तान और म्यांमार जैसे कई देश हैं, जो गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। अब श्रीलंका को ही ले लें, जिसने गृहयुद्ध के उपरांत आर्थिक सुधारों के लिए चीन का रुख किया, लेकिन आज उसके कर्ज-जाल में फंस गया है। श्रीलंका ने पहले 2014 और पुन: 2017 में अपने कर्ज के पुन: प्रबंधन हेतु चीन से निवेदन किया था, लेकिन उसके दोनों अनुरोध खारिज कर दिए गए थे। अंतत: जब तक श्रीलंका ने आईएमएफ से सहायता मांगने का निर्णय लिया, तब तक उसकी अर्थव्यवस्था 1948 में देश की आजादी के बाद से सबसे खराब मंदी की ओर बढ़ गई, जिससे विद्रोह भडक़ गया और नतीजतन हजारों लोगों ने राष्ट्रपति को उनके घर से खदेड़ दिया था।
जांबिया की भी यही स्थिति है, जिसके कुल विदेशी कर्ज का तीस फीसदी हिस्सा चीन द्वारा निर्गत वि किया गया है और माना जाता है कि उस पर चीनी फाइनेंसरों का लगभग छह अरब डॉलर बकाया है। इस इस प्रकार 2020 में, चीन के कर्ज जाल में फंसते हुए जांबिया यूरो बॉन्ड्स पर डिफॉल्ट करने वाला पहला अफ्रीकी देश बन गया।
चीन के कर्ज जाल में फंसे पाकिस्तान की हालत पहले से ही काफी खराब चल रही है, हालांकि उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से तीन अरब डॉलर की सहायता मिली है, जिस पर उसकी अर्थव्यवस्था ‘टिकी हुई है। नेपाल और चीन ने 2017 में बीआरआई हेतु हस्ताक्षर किए थे, लेकिन लगभग सात साल बाद एक परियोजना तक क्रियान्वित नहीं हो पाई है और इसका सबसे बड़ा कारण रहा नेपाल का पोखरा हवाई अड्डा, जो चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं था, फिर भी चीन ने इसके लिए फंड देते हुए इसे बीआरआई के अंतर्गत बताने की कोशिश की।
इसी प्रकार, वेनेजुएला भी आर्थिक संकट में फंसा हुआ है, जहां सरकार पर कथित तौर पर चीन का भारी कर्ज बकाया है। तेल से समृद्ध, लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर इस देश ने 2005 से चीनी कर्ज ले रखा है। चीन के साथ दिक्कत यह है कि वह जो कर्ज देता है, उसके पीछे की शर्तों को कभी सार्वजनिक नहीं करता, जैसा आईएमएफ, विश्व बैंक या पेरिस समूह करते हैं। इस वजह से चीनी कर्ज की पारदर्शिता हमेशा संदेह के दायरे में रही है। चीन चूंकि आसान शर्तों पर ऋणों को निर्गत करता है, जो आर्थिक रूप से कमजोर देशों को आकर्षित करता है। कर्ज लेने वाले उन देशों को उस कर्ज के विपरीत परिणामों का एहसास तब होता है, जब उनके आर्थिक संकट बेकाबू हो जाते हैं और फिर वे इसके समाधान करने के लिए चीन से कोई रियायत प्राप्त नहीं कर पाते। उपरोक्त देशों के उदाहरणों से पता चलता है कि भले ही चीन ऋण देने की नीतियों में उदार है, लेकिन वह इसके जरिये कमजोर देशों को शिकार बनाता है। या चीन के साथ किसी देश के चाहे कितने भी अच्छे राजनीतिक रिश्ते क्यों न हों, वे ऋण संकट के समय चीन से तत्काल राहत की उम्मीद नहीं कर सकते। जाहिर है कि माले को उन देशों से, जो चीनी ऋण के जाल से जूझ रहे हैं, सीख लेनी चाहिए तथा भारत जैसे नैतिक और लोकतांत्रिक देश के साथ संबंधों को बिगाडऩा नहीं चाहिए।
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