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कोरोना: तीसरी लहर के खतरे के बीच भारतीयों को मिली एक अच्छी खबर !

सरकार का दावा है कि 27 अगस्त को एक दिन में ही भारत में 1.03 करोड़ लोगों को वैक्सिन लगाई गई है। भारत में 30 अगस्त तक 64 करोड़ से ज्यादा टीके लगाए जा चुके हैं। यानी, भारत की कुल वयस्क आबादी के 50% हिस्से का टीकाकरण हो चुका है।
जहां भारत में देश की आधी वयस्क आबादी को कम से कम पहला डोज लग चुका है वहीं, अमेरिका में अब तक 37 करोड़ टीके लगे हैं। साफ है कि भारत अमेरिका सहित यूरोप के कई देशों की तुलना में कहीं ज्यादा टीके लगा चुका है।
भारत में टीकाकरण की गति में पिछले दो महीने में काफी तेजी आई है। डेढ़ महीने पहले तक भारत में दूसरा डोज लगवाने वाले महज 10% हुआ करते थे। अगस्त के महीने में इसमें तेजी आई है। अब कुल टीका लगवाने वालों में 40% लोग ऐसे हैं जो अपना दूसरा डोज लगवा रहे हैं।
इस अच्छी खबर के लिए जिम्मेदार हैं दो कंपनियां
भारत के टीकाकरण अभियान को गति देने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान टीका बनाने वाली दो कंपनियों का है। इसमें सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक शामिल हैं। अगस्त में ही सीरम इंस्टीट्यूट ने 13.2 करोड़ टीकों का उत्पादन किया, जबकि भारत बायोटेक ने दो करोड़ से ज्यादा टीके बनाए। फिलहाल, दो भारतीय कंपनियां एक महीने में 15 करोड़ से ज्यादा टीकों का उत्पादन कर रही हैं।
आने वाले महीनों में इसके और बढ़ने की संभावना है। सीरम इंस्टीट्यूट ने सितंबर महीने में 20 करोड़ वैक्सीन देने की बात कही है। भारत बायोटेक फिलहाल दो से ढाई करोड़ वैक्सीन प्रति माह का उत्पादन कर रहा है।
हाल ही में भारत बायोटेक ने चिरॉन वेयरिंग प्राइवेट लिमिटेड नाम की विदेशी कंपनी का अधिग्रहण किया है। यह कंपनी अंकलेश्वर के अपने प्लांट में रेबीज वैक्सीन बनाती थी। भारत बायोटेक ने इस प्लांट में भी कोवैक्सीन का उत्पादन शुरू कर दिया है। 27 अगस्त को इस प्लांट में बनी कोवैक्सीन की पहली खेप जारी भी कर दी गई।
इस प्लांट में हर साल 20 करोड़ वैक्सीन का उत्पादन करने की क्षमता है। उम्मीद जताई जा रही है कि इस प्लांट के जुड़ने के बाद सितंबर से भारत बायोटक भी हर महीने साढ़े तीन से चार करोड़ कोवैक्सीन का उत्पादन करने लगेगी।
अब सुप्रीम कोर्ट में सरकार के दावे पर रहेगी नज़र
भारत में कोरोना की दूसरी लहर के बाद देश में टीका उत्पादन क्षमता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए थे। इस दौरान विदेशों में टीके भेजने पर भी सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। इन आलोचनाओं के बाद सरकार ने अपनी साख बचाने के लिए अगस्त के अंत तक 60 करोड़ टीके लगाने का दावा कर दिया था। उस वक्त इसे भी एक जुमला ही कहा गया। हालांकि, अगस्त खत्म होने से पहले भारत में 64 करोड़ टीके लगाए जा चुके हैं।
भारत सरकार ने जून में सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया था कि अगस्त से दिसंबर के बीच 135 करोड़ टीके लगा दिए जाएंगे। इसे भी सरकार का बड़बोलापन ही माना जा रहा था। सरकार ने 135 करोड़ टीकों का जो भरोसा कोर्ट को दिया था उसमें जॉनसन एंड जॉनसन के 30 करोड़, ज़ाइडस कैडिला के पांच करोड़ और स्पूतनिक के 10 करोड़ टीके मिलने की उम्मीद भी शामिल थी।
135 करोड़ में से 45 करोड़ टीके विदेशी कंपनियों से मिलने वाले थे। फिलहाल, अकेले सीरम इंस्टीट्यूट ही 20 करोड़ से ज्यादा टीके प्रतिमाह देने को दावा कर रही है। साथ ही, भारत बायोटेक भी अगर पांच करोड़े टीके प्रतिमाह का उत्पादन करती है, तो आने वाले पांच महीनों में 135 करोड़ के लक्ष्य को पाना मुश्किल नहीं दिखता।
अमरिकियों से बेहतर निकले भारत के लोग
सबसे पहले और तेजी से टीकाकरण करने के बावजूद अमेरिका में आज भी कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण टीके का विरोध है। अमेरिका की बड़ी आबादी विचारधारा और धार्मिक आधार पर टीके का विरोध कर रही है। अमेरिका की तुलना में भारत में शायद ही किसी विचारधारा या धर्म के मानने वाले टीके का विरोध कर रहे हैं। कम से कम खुले तौर पर कोई भी विचारधारा, पंथ या समुदाय भारत में टीकाकरण का विरोध नहीं कर रही है। यही कारण है कि टीकाकरण की देर और धीमी शुरुआत के बावजूद अमेरिका (34 करोड़) की तुलना में भारत में लगभग दो गुना (64 करोड़) टीके लग चुके हैं। टीकाकरण की गति को बढ़ाने और बनाए रखने में सबसे बड़ा योगदान देश की जनता का है जिसने किसी बहकावे में आए बिना इसका खुले दिल से समर्थन किया है।
भारत में टीकाकरण की प्रक्रिया फिलहाल जिस गति से चल रही है वह उम्मीद बंधाने वाली है। यह प्रक्रिया अगर इसी गति से चलती रही, तो भारत में जन-जीवन जल्द ही सामान्य हो सकता है। हालांकि, टीकाकरण की बेहतर गति के बावजूद इसे तीसरी लहर को रोकने की गारंटी मानना महज एक खुशफहमी होगी। ऐसे में जरूरी है कि लापरवाही और अति-आत्मविश्वास से बचा जाए, ताकि देश को तीसरी लहर से बचाया जा सके। क्योंकि, सावधानी हटी… दुर्घटना घटी।

-संजीव श्रीवास्तव

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