Monday, 6 May 2024

Cyclone Biparjoy: याद आया 25 साल पुराना चक्रवात, कपड़ों की तरह लटक रही थीं लाशें

  Cyclone Biparjoy: 9 जून 1998, उस दिन जेठ की गर्मी से थोड़ी राहत थी। गुजरात के कांडला पोर्ट में…

Cyclone Biparjoy: याद आया 25 साल पुराना चक्रवात, कपड़ों की तरह लटक रही थीं लाशें

 

Cyclone Biparjoy: 9 जून 1998, उस दिन जेठ की गर्मी से थोड़ी राहत थी। गुजरात के कांडला पोर्ट में लोग अपने रूटीन कामों में लगे थे। दोपहर होते-होते हालात बदलने लगे। पहले 150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलीं और थोड़ी देर में इनकी स्पीड 160 से 180 किमी प्रति घंटे पर पहुंच गई। अरब सागर में कम दबाव के चलते बना चक्रवात कांडला में लैंडफॉल हुआ था।मरने वालों की आधिकारिक संख्या 1,485 थी। 1,700 लोग लापता बताए गए, जो आज तक लापता ही हैं। इसके साथ 11 हजार से ज्यादा पशुओं की मौत हुई। इस चक्रवात से मची तबाही की भयावहता इन आंकड़ों से कहीं ज्यादा थी।

25 साल पुरानी कहानी याद करके लोग आज भी सिहर उठते हैं। 

Cyclone Biparjoy: 15 जून 2023 को गुजरात में एक बार फिर चक्रवात हिट करने वाला है तो 25 साल पुरानी कहानी याद करके लोग आज भी सिहर उठते हैं। अरब सागर में लो प्रेशर एरिया बना था। इसके पोरबंदर और द्वारका से टकराने का अनुमान लगाया गया था। वहां टकराने के बाद इसकी स्पीड बढ़ गई और ये कच्छ का रण पार करके कांडला पोर्ट में लैंडफॉल हुआ। कांडला के लोग और प्रशासन इसके लिए तैयार नहीं थे।गांधीधाम के रामबाग सरकारी अस्पताल में लाशों के ढेर लग गए थे। लॉबी में, आंगन में, हर तरफ शव कतारों में पड़े हुए थे। इनमें बच्चों की मृत्यु दर अधिक थी।

कांडला-गांधीधाम के बीच पुल पर बच्चे, पुरुष और महिलाओं की लाशें सूखते कपड़ों जैसे लटक रही थीं।

तूफान कितना भयानक था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1 अगस्त तक लाशें मिलती रही थीं। कुछ शव पाकिस्तान के तट पर भी पाए गए थे।कांडला से जब अचानक तूफान टकराया तो लोग जान बचाने के लिए बंदरगाह में पड़े कंटेनरों पर चढ़ गए, लेकिन तूफान इन कंटेनरों को ही अपने साथ उड़ाकर समुद्र में ले गया। इस तरह पोर्ट पर ही सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी। मौतों के सही आंकड़ों के सामने न आने का एक कारण यह भी था।

Cyclone Biparjoy: हवा की रफ्तार इतनी ज्यादा थी कि ये विशाल जहाज भी समुद्र छोड़कर किनारे पर चढ़ गया।

कांडला गांधीधाम परिसर में केवल एक ही श्मशान था और यहां कोई आधिकारिक कब्रिस्तान भी नहीं था। श्मशान में जब इतने सारे शव पहुंचे तो हालात बद से बदतर हो गए। इसके चलते शवों को प्लास्टिक में लपेट कर एक जगह इकट्ठा कर किया गया था। श्मशान के आसपास खाली जगहों पर पेट्रोल और डीजल छिड़ककर जलाया गया। इस दौरान भी हवा इतनी तेज थी कि शवों की हड्डियां समुद्र से लेकर हाईवे तक पर बिखर गई थीं। इस तूफान में छोटी-मोटी चीजों की बात तो दूर, विशालकाय जहाज से लेकर बार्ज और पोर्ट की महाकाय क्रेनें भी तबाह हो गई थीं। रेल की पटरियां उखड़ गई थीं और कच्छ में 15,000 बिजली के खंभे गिर गए थे। इसके चलते भुज सहित पूरे कच्छ में करीब तीन महीनों तक ब्लैकआउट रहा था। पेट्रोल पंपों के बर्बाद होने से पेट्रोल-डीजल की सप्लाई भी बंद हो गई थी। तूफान आने के दूसरे दिन भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल कांडला पहुंचे। इसके अगले दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर छोटे-बड़े कई नेताओं का गुजरात आना-जाना लगा रहा।

गैस रिसाव की अफवाह से 15 हजार मजदूर पलायन कर गए थे

तूफान दो घंटे बाद चला गया तो इसके बाद अफवाहों का दौर भी शुरू हुआ। एक अफवाह जहरीली गैस के रिसाव की भी फैली, जिसके चलते मजदूर परिवारों का पलायन शुरू हो गया। देखते ही देखते कांडला पोर्ट और गांधीधाम से करीब 15,000 मजदूर पलायन कर गए थे। ट्रेन और अन्य यातायात बाधित होने के चलते हजारों मजदूर पैदल ही चल दिए थे। हद तो यह भी हो गई थी कि कई परिवार लाशें ले जा रही गाड़ियों में सवार थे। बस वे किसी तरह जहरीली गैस से अपनी जान बचाना चाहते थे। ये मजदूर महीनों तक नहीं लौटे। चक्रवात पीड़ितों के लिए कांडला, गांधीधाम में कई राहत शिविर खोले गए। सबसे बड़ा राहत शिविर कांग्रेस का था। विपक्ष की नेता सोनिया गांधी भी पीड़ितों से मिलने पहुंची थीं।  करीब एक महीने तक कांडला के पास टापू पर लाशें पहुंचती रहीं। दर्जनों शव तो समुद्र में तैरते हुए मांडवी के तट तक पहुंच गए थे। आपदा प्रबंधन नहीं था। तूफान के बाद तटों पर कीचड़ हो गया था। स्थानीय लोगों ने कीचड़ में खोजबीन कर सैकड़ों लाशें निकालीं उस आपदा में 2,300 से ज्यादा लोग मरे थे। मुख्य रूप से कांडला, गांधीधाम में हताहत हुए थे। जामनगर के पास दो या तीन जहाज भी डूब गए थे। इसमें कितने लोगों की संख्या थी। इसका सही अंदाजा नहीं लग पाया। मौतों का सही आंकड़ा आज तक नहीं पता चल सका, क्योंकि कई लोग समुद्र में डूब गए। 1 अगस्त तक शव बरामद होते रहे।

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