दिल्ली। भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में समलैंगिक विवाह को आज भी कुप्रथा या हेय दृष्टि से देखा जाता है। अक्सर समलैंगिक जोड़ों को विवाह करने के लिए घर-परिवार और समाज से दो-चार जरूर करना पड़ता है लेकिन उन्हें समाजिक मान्यता फिर भी नहीं मिलती। समलैंगिक कम्युनिटी ने अपने अधिकारों को पाने के लिए गली-मोहल्लों, सड़क-चौराहों से लेकर कोर्ट तक का सहारा लिया है जहां कहीं उन्हें जीत मिली है तो कहीं हार। बावजूद इसके इन्होंने अपने हक की लड़ाई को लड़ना नहीं छोड़ा।
ताजा घटनाक्रम स्विट्जरलैंड का है जहां स्विट्जरलैंड की जनता ने समलैंगिक जोड़ों की शादी को लेकर कराए गए जनमत संग्रह में दो तिहाई मतों से अपनी मंजूरी दे दी है। स्विट्जरलैंड ने रविवार को हुए एक जनमत संग्रह में समलैंगिक जोड़ों को शादी करने और बच्चे गोद लेने की अनुमति देने के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला दिया। मतदाताओं ने बड़े बहुमत से समलैंगिक शादी के पक्ष में मतदान किया।
इसी साल समलैंगिक शादियों के विरोधियों ने जनमत संग्रह की मांग की थी। इस मांग के समर्थन में उन्होंने इतने लोगों के दस्तखत जुटा लिए थे कि सरकार को जनमत संग्रह कराना पड़ा। आधिकारिक नतीजों के मुताबिक स्विट्जरलैंड के 64.1 फीसदी मतदाताओं ने इसके पक्ष में मत दिया जबकि 36 प्रतिशत ने समलैंगिक शादियों के विरोध में मतदान किया। हालांकि, समर्थकों ने कहा है कि इस तरह की शादियां होने में महीनों लग सकते हैं। इसका कारण देश की प्रशासनिक और विधायी प्रक्रिया बताया जा रहा है। मतदान से पहले सरकार और सांसदों ने मतदाताओं से “सभी के लिए शादी” का समर्थन करने और एलजीबीटीक्यू+ जोड़ों के मौजूदा “असमान व्यवहार” को खत्म करने का आग्रह किया था। पिछले साल देश के सांसदों ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के लिए मतदान किया था। लेकिन कानून का विरोध करने वाले रूढ़िवादी नेताओं ने इस मुद्दे पर जनमत संग्रह कराने के लिए जरूरी 50,000 हस्ताक्षर जुटा लिए थे। कुछ ईसाई समूह के सदस्यों और दक्षिणपंथी स्विस पीपुल्स पार्टी (एसवीपी) जो कि स्विट्जरलैंड की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी ने ऐसी शादियों का पुरजोर विरोध किया था। स्विट्जरलैंड ने 1942 में समलैंगिकता को अपराध मुक्त कर दिया था, लेकिन स्थानीय और क्षेत्रीय पुलिस ने 1990 के दशक तक “समलैंगिक रजिस्टर” बनाए रखा।
साल 2007 में एक नई शुरुआत करते हुए सरकार ने समलैंगिक जोड़ों को साथ रहने का अधिकार दे दिया था लेकिन उन्हें उस वक्त शादी का अधिकार नहीं दिया गया था। हर साल करीब 700 लोग साथ रहने के लिए रजिस्टर कराते हैं। हालांकि इस तरह से रहने वाले लोगों को उस तरह का अधिकार नहीं मिलता जैसा कि शादीशुदा जोड़ों को मिलता है। वे बच्चों को गोद लेने से वंचित रह जाते थे। दिसंबर में सांसदों ने सिविल यूनियन के बजाय समलैंगिक, उभयलिंगी, ट्रांसजेंडर और क्वीर लोगों को शादी करने की अनुमति देने के लिए मतदान किया था। जनमत संग्रह के परिणाम की पुष्टि होने के बाद विवाह विधेयक को कानून बनने की अनुमति मिल जाएगी। समान लिंग वाले जोड़े साथ मिलकर बच्चे गोद ले पाएंगे और वे नागरिकता के लिए भी सरल प्रक्रिया के तहत आवेदन कर पाएंगे।