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Independence Day 2023: आजादी के अमृत महोत्सव पर जानना जरूरी है राष्ट्रीय ध्वज की कहानी

Independence Day 2023

Independence Day 2023

Independence Day 2023 : आईये आज हम जानें अपने राष्ट्रीय ध्वज के विषय में, कि यह कैसे बना ,इसके पीछे क्या कारण थे इतनी लम्बी प्रक्रिया से इसे क्यों गुजरना पड़ा ।

आज जब हम अपने देश की आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो हमें अपने राष्ट्र गान और राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण के विषय मे भी ज्ञात होना चाहिये । भारत के तिरंगे झंडे में तीन रंग क्यों हैं बीच मे चक्र का क्या अर्थ है यह किस कपड़े से बनता है और इसके बनाने के क्या नियम हैं । यह सब जानना आवश्यक है तभी हम इसके महत्व को समझ सकेंगे और तब हमारे मन में इसके प्रति आदर और सम्मान का भाव उदित होगा ।

Independence Day 2023
इसके तीन रंगों में उनकी अपनी अलग कहानी है 

तीन रंग की क्षितिज पट्टियों के बीच नीले रंग के चक्र द्वारा सुशोभित ध्वज की परिकल्पना मछलीपट्टनम के पिंगली वैंकैया जी ने की थी । तिरंगे ने अपने निर्माण से लेकर राष्ट्रीय ध्वज बनने की यात्रा में कई स्वरूप बदले । तिरंगे से पहले पांच और झंडे स्वतंत्रता आंदोलन के प्रतीक थे । सबसे पहले 7 अगस्त 1906 में भारत का राष्ट्रीय ध्वज सामने आया जिसे विवेकानन्द जी की शिष्या निवेदिता ने बनाया था । इसमें हरे पीले और लाल रंग की पट्टियां थी जिसमें हरे रंग की पट्टी में आठ कमल के फूल ,लाल रंग की पट्टी में चांँद ,सूरज और बीच में पीले रंग की पट्टी में वंदे मातरम् लिखा था । इसे कलकत्ता के पारसी बागान चौक में आंदोलनकारियों ने फहराया

तिरंगे से पहले पांच और झंडे स्वतंत्रता आंदोलन के प्रतीक थे

Independence Day 2023
दूसरी बार मैडम कामा और उनके साथ निर्वासित किये गये क्रांतिकारियों द्वारा 1907 में फहराया गया था । इसमे आठ कमल के स्थान पर एक कमल और बीच में वंदेमातरम का नारा था । 1917 में इसमें तीसरा बदलाव किया जिसमें पांच लाल और चार हरी क्षैतिज पट्टियां थी । अंदर सप्तर्षि के सात सितारे,एक कोने में अर्द्धचंद्र और सितारा था । बायीं ओर किनारे पर यूनियन जैक का झंडा था । यह कांग्रेस कमेटी की श्रीमती एनी बेसेंट के निर्देशन में और लोकमान्य तिलक तैयार हुआ था जिसे स्वराज आंदोलन में फहराया गया । इसके बाद चौथा परिवर्तन झंडा में उस समय आया जब बंग-भंग के कारण आक्रोशित जन मानस ने गांधी जी के नेतृत्व में विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करते हुये स्वदेशी आंदोलन चलाया।  जिसमें स्वराज की मांग थी । इसके लिये केशरिया रंग की क्षैतिज पट्टी के सफेद रंग की पट्टी में स्वराज आंदोलन के प्रतीक चरखे को चुना और उसके नीचे हरी पट्टी । इन तीन रंगों के बीच में चक्र का निशान था । यह 1921में बना । पांचवे परिवर्तन में बीच में चक्र के स्थान पर गांधी जी का चरखा था‌। अंत में छठवें परिवर्तन में पुन: अशोक चक्र को चुना गया जिसमें समय के प्रतीक 24 आरे हैं । 23 जुलाई 1947 में संविधान सभा द्वारा अपना कर इसे राष्ट्रीय ध्वझ के रूप में घोषित किया

15 अगस्त 1947 को प्रथम स्वतत्रंता दिवस के दिन फहराया गया 

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अब यही हमारा राष्ट्रीय ध्वज है जिसके तले हम आजादी का जश्न मनाकर खुशियां मनाते हैं ‌। इसके निर्माण में पिंगली वैंकैया जी का महत्वपूर्ण योगदान है । स्वराज आंदोलन के पहले गांधी जी की मुलाकात वैंकेया जी से दक्षिण अफ्रीका में हुई थी । इस समय उन्होंने अपना एक अलग राष्ट्र ध्वज बनाने की बात कही । उनकी बात से गांधी जी प्रभावित हुये और उन्होंने वैंकेया जी को ही राष्ट्र के ध्वज निर्माण का कार्य सौंपा । जिसके कारण वैंकेया जी अफ्रीका से भारत आये और इसके निर्माण में सभी राष्ट्रों के ध्वज का अध्ययन करते हुये इसका निर्माण किया । इस बृहद् कार्य में पांच वर्ष लगे तब कहीं जाकर इसका निर्माण हुआ । जिसका निर्माण करने के लिये उनके साथ एस.बी.बोमान और उमर सोमानी सहयोगी बने । डिजाइन बनाते समय उन्होंने गांधी जी से सलाह मशविरा किया कि वह किस तरह का और कैसा राष्ट्रीय ध्वज चाहते हैं । वैंकेया जी ने पहले हरे और लाल रंग की दो पट्टियों से ही इसका निर्माण किया था जिसमें गांधी जी को राष्ट्र की संपूर्ण एकता की झलक न मिलने से उसमें लाल रंग ऊपर नीचे हरा और बीच में सफेद रंग की पट्टी के मध्य नीले रंग का अशोक चक्र बनाने की बात कही । उस समय झंडे में रंग को लेकर काफी बहस हुई और तब जाकर 1931 में काग्रेस कमेटी ने इस ध्वज को पारित किया । बाद में 1947में यही राष्ट्र ध्वज बनकर आजाद भारत का प्रतीक बना ।
उषा सक्सेना-भोपाल (म.प्र.)

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