Friday, 19 April 2024

Karnataka Elections 2023: कर्नाटक में कौन है लिंगायत जिनकी चौखट पर पहुंचे मोदी ?

  Karnataka Elections 2023 कर्नाटक चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने लिंगायत समुदाय को बीजेपी के पाले में लाने का भरपूर…

Karnataka Elections 2023: कर्नाटक में कौन है लिंगायत जिनकी चौखट पर पहुंचे मोदी ?

 

Karnataka Elections 2023 कर्नाटक चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने लिंगायत समुदाय को बीजेपी के पाले में लाने का भरपूर प्रयास किया। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस ने लिंगायत समुदाय के लोगों को चोर कह कर पूरे समुदाय का अपमान किया है और लिंगायत समाज अपने वोट से कांग्रेस को जवाब देगा। इससे पहले कर्नाटक में कांग्रेस के नेता सिद्धारमैया ने टिप्पणी की थी कि लिंगायत मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, हालांकि सिद्धारमैया ने बाद में यह सफाई दी थी कि उन्होंने लिंगायत समुदाय को भ्रष्ट नहीं कहा था वे केवल मुख्यमंत्री की बात कर रहे थे।

हार जीत की चाबी लिंगायत के पास

खैर मुद्दे की बात यह है कि कर्नाटक चुनाव में हार जीत की चाबी लंबे समय से लिंगायत समुदाय के पास ही रही है । इस समुदाय ने जिस पार्टी का समर्थन किया उसने सरकार बना ली। कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों के बीच लिंगायत समुदाय को अपने पक्ष में करने की होड़ लगी हुई थी । बीजेपी के पास लिंगायत समुदाय के बड़े चेहरे के रूप में B. S. Yediyurappa है । तो मतदान से कुछ दिन पहले लिंगायत समुदाय के एक बड़े हिस्से ने कांग्रेस को अपना समर्थन देने की बात कह कर मुकाबला दिलचस्प बना दिया है।

100 सीटों पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव

विधानसभा की लगभग 100 सीटों पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है जहां हार जीत का फैसला लिंगायत समुदाय ही करता है। ऐसे में पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस और बीजेपी दोनों की ही नजर लिंगायत समुदाय पर थी ।

कर्नाटक में लिंगायत का दबदबा

आखिर कर्नाटक में लिंगायत इतने महत्वपूर्ण क्यों है? कर्नाटक राज्य की आबादी लगभग 6 करोड है जिसमें 17 से 18% लिंगायत समुदाय से हैं। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय लंबे समय से सत्ता के शीर्ष पर रहा है। कर्नाटक में बीजेपी के कद्दावर नेता येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई भी इसी समुदाय से आते हैं। कहा जाता है कि इस समुदाय का साथ जिस भी दल को मिलता है उसके लिए सत्ता का रास्ता आसान हो जाता है। इनका वर्चस्व मुख्य रूप से कर्नाटक के उत्तरी हिस्से पर है जहां से बीजेपी को हमेशा से काफी लाभ मिलता रहा है। इस बार कांग्रेस ने भी लिंगायत समुदाय को अपने पाले में करने का पूरा प्रयास किया है । कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही 50 से ज्यादा लिंगायत नेताओं को अपनी-अपनी पार्टी से टिकट दिए हैं ।

23 में से 10 मुख्यमंत्री लिंगायत समुदाय से

कर्नाटक में अभी तक 23 मुख्यमंत्री हुए हैं जिनमें से 10 लिंगायत समुदाय से हैं। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इस समुदाय का सत्ता में कितना भारी दखल है। पिछले 20 वर्षों में बीजेपी का कर्नाटक में जो उत्थान हुआ है उसका एक बड़ा कारण बीजेपी के पास बी एस येदियुरप्पा के रूप में लिंगायत समुदाय का एक प्रभावशाली चेहरा होना है जिसका प्रभाव लिंगायत समाज पर है । भले ही येदियुरप्पा इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे लेकिन पूरे चुनाव प्रचार में बीजेपी का बड़ा चेहरा बने हुए हैं । हालांकि इस बीच जगदीश शेट्टार और कुछ दूसरे लिंगायत नेता नाराजगी की वजह से बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में चले गए हैं  जिससे इस बार का चुनाव और भी दिलचस्प बन गया है ।

इस बार किसको जिताएगा लिंगायत समुदाय?

जिस तरह से इस बार लिंगायत समुदाय का समर्थन कांग्रेस को भी मिल रहा है अगर लिंगायत समुदाय का वोट कांग्रेस और बीजेपी के बीच बटं गया तब क्या होगा!!
या फिर उनका समर्थन किसी एक दल की तरफ झुक जाएगा ?

यह कहना मुश्किल है लेकिन जिसको भी लिंगायत समुदाय का बहुमत मिलेगा उसकी जीत का रास्ता साफ हो जाएगा।

लिंगायत समुदाय का इतिहास

basvanna
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12 वीं सदी में संत बसवन्ना ने शुरू किया समुदाय

12 वीं सदी में कर्नाटक में भक्ति परंपरा में एक नए आंदोलन का जन्म हुआ जिसकी नींव रखी संत बसवन्ना ने(1106- 68) जो जन्म से एक ब्राह्मण थे। बसवन्ना कालाचूरी राजा के दरबार में मंत्री थे। उनके अनुयाई वीरशैव (शिव के वीर) और लिंगायत (लिंग धारण करने वाले )कहलाए। आज भी लिंगायत समुदाय का इस क्षेत्र में विशेष महत्व है। यह समुदाय शिव की आराधना लिंग के रूप में करता है। इस समुदाय के पुरुष वाम स्कंध पर चांदी के 1 पिटारे में एक लघु लिंग को धारण करते हैं जिसे श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है। लिंगायतो का विश्वास है की मृत्यु के उपरांत भक्त शिव में लीन हो जाएंगे और इस संसार में पुनः नहीं लौटेंगे। लिंगायत धर्मशास्त्र में बताए गए श्राद्ध संस्कार का पालन नहीं करते । लिंगायतो ने जाति की अवधारणा और कुछ समुदायों के दूषित होने की ब्राह्मणीय अवधारणा का विरोध किया । पुनर्जन्म के सिद्धांत पर भी उन्होंने प्रश्नवाचक चिन्ह लगाया। इन सब कारणों से सामाजिक व्यवस्था के कई समुदाय लिंगायतों के अनुयाई हो गए ।धर्म शास्त्रों में जिन व्यवहारों को अस्वीकार किया गया था जैसे वयस्क विवाह और विधवा पुनर्विवाह, लिंगायत ने उन्हें मान्यता प्रदान की।वीर शैव परंपरा की व्युतपति उन वचनों से है जो कन्नड़ भाषा में उन स्त्री पुरुषों द्वारा रचे गए जो इस आंदोलन में शामिल हुए।

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