Manipur Violence:शिवम दुबे/ मणिपुर में तीन मई से हिंसा जारी है। अब तक 120 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। 3,000 से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं। पूरे राज्य में पुलिस, सेना और अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती कर दी गई है। म्यांमार से सटे इस राज्य को हिंसा की आग में झोंक कर कल दिल्ली में चाय पर चर्चा हुई। ऐसा क्यों कहा जा रहा है ये समझने से पहले आपको मणिपुर इस मुहाने पर कैसा आ खड़ा हुआ ये समझना बहुत जरूरी है।
विवाद की उत्पत्ति की कहानी
मणिपुर की राजधानी इम्फाल बिल्कुल बीच में है। ये पूरे प्रदेश का 10% भाग है, जिसमें प्रदेश की 57% आबादी रहती है। बाकी चारों तरफ 90% हिस्से में पहाड़ी इलाके हैं, जहां प्रदेश की 42% आबादी रहती है। इम्फाल घाटी वाले इलाके में मैतेई समुदाय की आबादी ज्यादा है। ये ज्यादातर हिंदू होते हैं। मणिपुर की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी करीब 53% है। अगर आंकड़ों पर नजर डाले तो सूबे के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई केवल समुदाय से आते हैं।
वहीं, दूसरी ओर पहाड़ी इलाकों में 33 मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं। इनमें प्रमुख रूप से नागा और कुकी जनजाति हैं। जिसकी चर्चा आप आए दिन सुन रहे है ।ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं। इसके अलावा मणिपुर में आठ-आठ प्रतिशत आबादी मुस्लिम और सनमही समुदाय की है। भारतीय संविधान के आर्टिकल 371C के तहत मणिपुर की पहाड़ी जनजातियों को विशेष दर्जा और सुविधाएं मिली हुए हैं, जो मैतेई समुदाय को नहीं मिली थी । ‘लैंड रिफॉर्म एक्ट’ की वजह से मैतेई समुदाय पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदकर सेटल नहीं हो सकता। जबकि जनजातियों पर पहाड़ी इलाके से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है। इसी बात को लेके दोनों समुदायों में मतभेद बढ़ते चले गए और आज मणिपुर इस मुकाम पर आ खड़ा हुआ ।
सीएम बिरेन सिंह को हटाने की मांग
विपक्षी दलों ने मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने की मांग की है और पूर्वोत्तर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का आह्वान भी किया है, उनका तर्क है कि जब तक स्थानीय समुदायों के बीच विश्वास बहाल नहीं हो जाता तब तक शांति हासिल नहीं की जा सकती. शनिवार को गृहमंत्री अमित शाह के द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक के दौरान यह बात सामने आई. शिव सेना की प्रियंका चतुर्वेदी ने विपक्ष के एकीकृत रुख पर जोर देते हुए कहा कि “शांति प्रक्रिया तभी शुरू हो सकती है जब समुदायों के बीच विश्वास बहाल करने पर ध्यान दिया जाएगा”. बैठक में 18 राजनीतिक दलों ने भाग लिया और यह साढ़े तीन घंटे से अधिक समय तक चली.
“चाय पर चर्चा” क्यों
वैसे तो विपक्ष लगातार मणिपुर की चर्चा कर रहा है रैलियों में, सभाओं में । लेकिन जब गृहमंत्री से मिल कर इस मामले को और गंभीरता पूर्वक उठाया जा सकता था तो विपक्ष ने अपने अपने दल के प्रतिनिध को भेज कर इस संगीन मामले को हल्का कर दिया। पटना में हुई विपक्षी दलों की बैठक में पार्टी प्रमुख का जाना और जलते मणिपुर की सर्वदलीय बैठक में अपने अपने दलों के सिर्फ प्रतिनिधि को भेजकर विपक्ष भी अपना पल्ला झाड़ लिया। अगर एक इस्तीफे की बात छोड़ दे तो ये पूरी बैठक किसी “चाय पर चर्चा” से कम नहीं थी