Friday, 19 April 2024

Prithviraj Chauhan Jayanti: इतिहासकारों का दावा : ठाकुर नहीं बल्कि गुर्जर जाति के थे सम्राट पृथ्वीराज चौहान

Prithviraj Chauhan Jayanti:  महान योद्धा व पराक्रमी सम्राट पृथ्वीराज चौहान की आज जन्म जयंती है । उनकी जयंती के अवसर…

Prithviraj Chauhan Jayanti: इतिहासकारों का दावा : ठाकुर नहीं बल्कि गुर्जर जाति के थे सम्राट पृथ्वीराज चौहान

Prithviraj Chauhan Jayanti:  महान योद्धा व पराक्रमी सम्राट पृथ्वीराज चौहान की आज जन्म जयंती है । उनकी जयंती के अवसर पर एक बार फिर यह सवाल ज़ोरदार ढंग से उठाया जा रहा है कि पृथ्वीराज चौहान किस जाति से थे ? ठाकुर समाज के लोग उन्हें राजपूत अथवा ठाकुर समाज के राजा के रूप में प्रचारित कर रहे हैं तो वही गुर्जर समाज के लोगों ख़ासतौर से गुर्जर समाज के युवा वर्ग का दावा है कि पृथ्वीराज चौहान गुर्जर जाति से थे । इस विषय में इतिहासकारों के भी अलग अलग मत है किन्तु अधिकतर इतिहासकारों का दावा हैं कि ठाकुर नहीं बल्कि गुर्जर जाति से थे पृथ्वीराज चौहान

पृथ्वीराज चौहान की जयंती पर छिड़ा बवाल , ठाकुर व गुर्जर समाज कर रहा है अपना अपना दावा

अनेक इतिहासकारों का मत है कि—-पृथ्वीराज चौहान (सन् 1166-1192) गुर्जर–चौहान वंश के हिंदू राजा थे जो उत्तरी भारत में 12 वीं सदी के उत्तरार्ध के दौरान अजमेर और दिल्ली पर राज्य करते थे। पृथ्वीराज को ‘राय पिथौरा’ भी कहा जाता है। वह गुर्जर के चौहान राजवंश के प्रसिद्ध राजा थे। पृथ्वीराज चौहान का जन्म अजमेर राज्य के वीर गुर्जर महाराजा सोमश्वर के यहाँ हुआ था। उनकी माता का नाम कपूरी देवी था जिन्हेँ पूरे बारह वर्ष के बाद पुत्र रत्न कि प्राप्ति हुई थी। पृथ्वीराज के जन्म से राज्य मेँ राजनीतिक खलबली मच गई उन्हेँ बचपन मेँ ही मारने के कई प्रयत्ऩ किए गए पर वे बचते गए। पृथ्वीराज चौहान जो कि वीर गुर्जर योद्धा थे बचपन से ही तीर और तलवारबाजी के शौकीन थे। उन्होँने बाल अवस्था  मेँ ही शेर से लड़ाई कर उसका जबड़ा फाड़ डाला था । पृथ्वीराज के जन्म के वक्त ही महाराजा को एक अनाथ बालक मिला जिसका नाम चन्दबरदाई रखा गया। जो  आगे चलकर बड़े कवि हुए । चन्दबरदाई और पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही अच्छे मित्र और भाई समान थे।

सोशल मीडिया पर छाया हुआ है पृथ्वीराज चौहान की जाति का मुद्दा

Prithviraj Chauhan Jayanti:   वह तंवर वंश के राजा अनंगपाल तंवर गुर्जर का दौहित्र (बेटी का बेटा) था और उसके बाद दिल्ली का राजा हुआ। उसके अधिकार में दिल्ली से लेकर अजमेर तक का विस्तृत भूभाग था। पृथ्वीराज ने अपनी राजधानी दिल्ली का नवनिर्माण किया। तोमर नरेश ने एक गढ़ के निर्माण का शुभारंभ किया था, जिसे पृथ्वीराज ने सबसे पहले इसे विशाल रूप देकर पूरा किया। वह उनके नाम पर पिथौरागढ़ कहलाता है और दिल्ली के पुराने क़िले के नाम से जीर्णावस्था में विद्यमान है।

इतिहासकारों का मत

कई इतिहासकारों के अनुसार अग्निकुल गुट मूल रूप से गुर्जर थे और चौहान गुर्जर के प्रमुख कबीले था। चौहान गुर्जर के चेची कबीले से मूलत निकले  हैं। बंबई गजेटियर के अनुसार चेची गुर्जर ने अजमेर पर 700 साल राज किया। इससे पहले मध्य एशिया में तारिम बेसिन (झिंजियांग प्रांत) के रूप में जाने- जाने वाले क्षेत्र में रहते थे। Chu- हान विवाद (200 ईसा पूर्व), “चू” राजवंश और चीन के “हान” राजवंश के बीच वर्चस्व की लड़ाई जिसमे yuechis / Gujars भी इस विवाद का हिस्सा थे। गुर्जर तब  भारत मे अरब बलों से लड़ते थे । वे “चू-हान” शीर्षक अपने बहादुर सैनिकों को सम्मानित करने के लिए प्रयोग किया जाता था जो बाद मे चौहान कहा जाने लगा ।

मोहम्मद गौरी ने भारत पर कई बार हमला किया था । पहली लड़ाई 1178 ईसवी में माउंट आबू के पास कायादरा पर लड़ी गयी और प्रथ्वीराज ने गौरी को हरा दिया था। इस हार के बाद गौरी गुजरात के माध्यम भारत में कभी नही घुसा । 1191 में तारोरी की पहली लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान ने फिर गौरी को हराया, तब गौरी ने अपने जीवन की भीख मांग ली । पृथ्वीराज ने उसे दोबारा ना घुसने की चेतावनी देकर सेनापतियों के साथ जाने की अनुमति दी। मोहम्मद गौरी  और गयासुद्दीन गजनी ने 1175. में भारत आक्रमण शुरू कर दिया। और 1176 में मुल्तान पर कब्जा कर लिया ।1178 ईस्वी में मोहम्मद गोरी ने गुजरात पर आक्रमण किया और गुर्जरेश्वर भीमदेव सोलंकी ने  उसे अच्छी तरह से हरा दिया और गुजरात से वापस भगा दिया ।

“गुर्जर मंडल” नामक एक संघ के तहत सभी “क्षत्रिय” शासकों को एकत्र किया

यह वही साल था जब पृथ्वीराज चौहान अजमेर और दिल्ली के सिंहासन पर चढ़े थे । उस समय तक”गुर्जर शासक “गौरी के आगामी खतरे से अच्छी तरह परिचित थे। गुर्जरेश्वर भीमदेव सोलंकी ने “गुर्जर मंडल” नामक एक संघ के तहत सभी “क्षत्रिय” शासकों को एकत्र किया । गौरी ने 1186 ईस्वी में पंजाब पर कब्जा कर लिया। ..  गुर्जरेश्वर भीमदेव और पृथ्वीराज भी रक्त के संबंधी थे  । भीमदेव ने इस समूह का नेतृत्व करने के लिए पृथ्वीराज से पूछा। पृथ्वीराज ने तारेन (1191 ईस्वी) में गौरी  के खिलाफ लड़ाई लड़ी। जिसमे गुर्जर कुल यानी खोखर, घामा, भडाना, सौलंकी, प्रतिहार और रावत ने भाग लिया। खांडेराव धामा (पृथ्वी की पहली पत्नी का भाई) के आदेश के तहत गुर्जरो और खोखर के संयुक्त बलों ने मुश्लिम को बुरी तरह हराया और सीमा तक उनका पीछा किया। गौरी  बुरी तरह घायल हो गया था ।  “पृथ्वी विजय” और “पृथ्वीराज रासो” में कहा कि उन्हें पृथ्वीराज  द्वारा पकड़  लिया गया लेकिन  वह भाग खडा हुआ और एक साल (1192 ईस्वी) के बाद गौरी दोगुने बलों के साथ लौट आया इस समय तक खोखार गुर्जर से चला गया , सोलंकी और चौहान के बीच एक अजीब प्रतिद्वंद्विता शुरू हो गई। यह पृथ्वीराज के  एकल बलों की हार थी ।  1200 के आसपास चौहान की हार के बाद राजस्थान का एक हिस्सा मुस्लिम शासकों के अधीन आ गया। शक्तियों के  प्रमुख केन्द्र नागौर और अजमेर थे। पृथ्वीराज  की  1195 ईस्वी में हार के बाद गुर्जरेश्वर का ताज अजमेर के हमीर सिंह चौहान ( पृथ्वीराज के  भाई) ने लिया इसके बाद कन्नौज (1193 ईस्वी), अजमेर (1195), अयोघ्या, बिहार (1194), ग्वालियर (1196), अनहीलवाडा (1197), चंदेल (1201 ईस्वी) पर मुसलमानों द्वारा कब्जा कर लिया गया और “गुर्जर मंडल” उस के बाद समाप्त हो गया।यह केवल 1400 ई के बाद एक नए नाम के साथ इतिहास में दिखा ।

Prithviraj Chauhan Jayanti:   तंवरो को दिल्ली का राजा कहा जाता है 

13 गांव गुर्जर तंवरों के महरौली में है , दक्षिण दिल्ली में 40 से अधिक गांव गुर्जर तंवरों (मुस्लिम) के गुड़गांव में हैं। अभी भी तंवरो को दिल्ली का राजा कहा जाता है। पाकिस्तान के एक प्रसिद्ध लेखक राणा अली हसन चौहान जिनका परिवार विभाजन के दौरान पाकिस्तान  चला गया, वह पृथ्वीराज की 37 वीं पीढ़ी से हैं। प्रवासन और गुर्जर चौहान के तुपराना, कैराना, नवराना और यमुना नदी के तट पर अन्य गुर्जर चौहानों के  गांव अभी भी मौजूद हैं, इसके अलावा दापे चौहान और देवड़ा चौहान के 84 गांव यूपी में हैं। अतः … प्रतिहार, सौलंकी और तंवर के साथ पृथ्वीराज  के संबंध थे! 1178 ईस्वी में गुर्जर मंडल का उनका गठन और उनकी वर्तमान पीढी अजमेर के चौहान शासकों अजय पाल, पृथ्वीराज ,जगदेव, विग्रहराज पंचम ,अपरा गंगेया, पृथ्वीराज द्वितीय, और सोमेश्वर हैं। मैनपुरी के चौहान शासकों में प्रताप रुद्र, वीर सिंह, घारक देव, पूरन चंद देव, करण  देव और महाराजा तेज सिंह चौहान )|

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