Friday, 19 April 2024

Queen Elizabeth : यूं हुई ब्रिटेन की महारानी सुपुर्द-ए-खाक

Queen Elizabeth :  सोमवार 19 सितंबर 2022 को सुबह (10.45 ) पर वेस्ट मिनिस्टर हॉल से वेस्ट मिनिस्टर एब्बे तक…

Queen Elizabeth : यूं हुई ब्रिटेन की महारानी सुपुर्द-ए-खाक

Queen Elizabeth :  सोमवार 19 सितंबर 2022 को सुबह (10.45 ) पर वेस्ट मिनिस्टर हॉल से वेस्ट मिनिस्टर एब्बे तक रानी के कॉफिऩ को ले जाया गया। कॉफिन के साथ परिवार के निकटवर्ती लोग गए। रानी के कॉफिऩ के साथ उनके पोती-पोते भी गए। इसके पूर्व कभी ऐसा नहीं हुआ था। यह शाही परिवार की परम्परा नहीं थी, बच्चों के प्रति रानी लिज़ाबेथ का अगाध प्रेम होने के कारण ऐसा संभव हुआ। वेस्ट मिनिस्टर एब्बे में अन्य देशों से आए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा राजनयिकों ने मौन श्रद्धांजलि अर्पित की। यहाँ लगभग सौ देशों के राष्ट्राध्यक्ष उपस्थित थे। भारतवर्ष से आयीं राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदीमुर्मू ने भी श्रद्धांजलि अर्पित की। दोपहर 12.00 बजे, श्रद्धांजलि के रूप में दो मिनट का राष्ट्रीय मौन भी रखा गया।

Queen Elizabeth:

वेस्टमिनिस्टरी एब्बे से  किंगजार्ज सिक्स मेमोरियल चैपल विंडसर के लिए यात्रा प्रारम्भ हुई।  इस यात्रा के मार्ग में दोनों ओर अपार जनसमूह शांत और भारी मन से खड़ा, रानी के अंतिम विदाई दे रहा था। अंतिम यात्रा के इस मार्ग पर प्रति एक मिनट के अंतराल पर, एक गन फ़ायर और बिगबैन पर एक प्रहार की गूंज छियान्वें बार सुनाई दी। यह यात्रा सेंट जार्ज चैपल पर जाकर रुकी, वहाँ ईसाई धर्मानुसार विशेष प्रार्थना का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। रात्रि 7.30 बजे (भारतीय समय के अनुसार अर्ध् रात्रि के बाद) क्वीन एलिज़ाबेथ का पार्थिव शरीर उनके दिवंगत पति प्रिंस फि़लिप के समीप दफऩाया दिया गया। यह एक निजी प्रक्रिया थी जिसका प्रसारण नहीं हुआ। इस प्रकार सत्तर वर्ष से लोगों के ह्रदय में निवास करने वाली रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के साथ, यूके का एक एरा समाप्त हो गया।

जनता के ह्रदय में बसी है क्वीन, जैसे मैंने देखा- रश्मि पाठक
जुलाई 2022 के अंतिम सप्ताह में मैं और मेरे पति, अपने पुत्र व उसके परिवार से मिलने स्कॉटलैंड पहुँचे। स्कॉटलैंड अपने प्राकृतिक सौंदर्य एवं शान्ति के लिए जाना जाता है।  हमारी यह चौथी यात्रा है फिर भी मैं इसके हरे-भरे मैदान, सुंदर रास्ते और झोंपड़ी नुमा घरों को देखकर अभिभूत हो जाती हूँ। यह एक संयोग है कि जब वर्ष 2016 में हम यहाँ आए थे तब रानी एलिज़ाबेथ के जन्म के 90 वर्ष होने पर भव्य समारोह मनाया जा रहा था। स्थानीय जनता का रानी के प्रति प्रेम का यह एक सुंदर उदाहरण था। वहीं प्रेम और श्रद्धा का दृश्य इस वर्ष रानी की मृत्यु पर देखने को मिला।

प्राय: स्कॉटलैंड की गलियों और सड़कों पर भीड़ देखने को नहीं मिलती। लेकिन रानी एलिज़ाबेथ की मृत्यु का समाचार सुनकर, सामान्य जनसमूह बालमोराल की ओर उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़ा। रानी एलिज़ाबेथ की मृत्यु 96 वर्ष की आयु में 8 सितंबर 2022 को स्कॉटलैंड स्थित बालमोराल के कैसल में हुयी थी। बालमोराल का कैसल रानी की निजी संपत्ति है। यह बहुत ही खूबसूरत बगीचों और ऊँचे-ऊँचे पेड़ों से घिरा हुआ है। यहाँ आकर रानी अपने आप को हल्का महसूस करती थीं। प्रतिवर्ष गर्मियों का समय वह यहाँ व्यतीत करने आती  थीं। अपने अंतिम समय में भी उन्हें यहाँ पूर्ण विश्रांति प्राप्त हुयी।

रानी एलिज़ाबेथ (Queen Elizabeth) की अंतिम यात्रा और यहाँ के भावविह्वल लोगों  की भावनाओं को समझने के हम भी साक्षी बने। जैसा कि मैंने प्रारम्भ में लिखा है कि स्कॉटलैंड में भीड़ देखने को नहीं मिलती, लेकिन रानी के अंतिम दर्शन के लिए लोग बालमोराल की ओर उमड़ पड़े। 10 सितंबर को हम सपरिवार, अपनी कार से बालमोराल की ओर निकले। लेकिन सभी निजी वाहन सुरक्षा की दृष्टि से बालमोराल से कुछ पहले बालेटर नामक शहर में रोक लिए गए। यहाँ से केवल नियुक्त बस के द्वारा ही बालमोराल ज़ाया जा सकता था। हमने देखा कि सुबह ही से बस के लिए एक लम्बी लाइन लगी हुयी थी जिसका सिरा कहीं नजऱ नहीं आ रहा था। यानि बालमोराल पहुँचना और वहाँ से उसी दिन वापसी संभव नजऱ नहीं आ रही थी।

हम परिवार के साथ बालेटर में इधर-उधर घूमते एक चर्च के पास पहुँचे,यह ग्लेनम्यूइक चर्च कहलाता है। इस चर्च के सामने रानी का श्रद्धांजलि स्थल बनाया हुआ था। स्थानीय लोगों से बात करने पर ज्ञात हुआ कि रानी बालमोराल रहते समय,रविवार को इस चर्च में अवश्य आती थीं और वहाँ लोगों से मिलना उन्हें बहुत अच्छा लगता था। हमने चर्च के सामने श्रद्धांजलि स्थल पर पुष्प अर्पित किए।
दूसरे दिन बीबीसी न्यूज़ में अपने फोटो देखकर हमें रोमांच हुआ! ध्यान आया कि वहाँ आसपास सड़क,चौराहे पर बहुत से न्यूज़ चैनल के कैमरे लिए संवाददाता खड़े हुए थे। बालमेटर स्कॉटलैंड का एक छोटा शहर है लेकिन रानी की मृत्यु के बाद श्रद्धांजलि देने के कवरेज में यह केन्द्र बिंदु बन गया था। 11 सितंबर को क्वीन का कॉफिऩ स्कॉटलैंड की राजधानी एडनविरा के लिए निकला। लगभग 12 बजे कॉफिऩ अबरडीन पहुँचा, यहाँ सड़क के दोनों ओर सुबह ही से अंतिम दर्शन के लिए लोग खड़े हो गए थे। बहुत से लोगों के हाथ में चिप्स और बिस्कुट के पैकेट देखकर लगा कि वह नाश्ता करके भी नहीं निकले थे। जिस शहर से रानी का कॉफिऩ निकला वहाँ-वहाँ  लोगों की ऐसी भाव-विह्वलता देख कर हमें आभास हुआ कि रानी एलिज़ाबेथ ने अपनी कार्यकुशलता और व्यवहार कुशलता से आम जनता के ह्रदय में विशेष स्थान बना रखा था। एडनविरा से 24 घंटे बाद रानी का कॉफिऩ इंग्लैंड के लिए चल दिया।

इंग्लैंड में उनका पार्थिव शरीर बकिंघम पैलेस में रखा गया। यहाँ भी अपार जनसमूह एकत्र था। लगभग 8 मील की लंबी लाइन लगी हुई थी। लोगों को इस भीड़ की पूरी आशा थी इसलिए वह अपने साथ खाने -पीने के पैकेट तथा ठंड और बारिश का पूरा इंतज़ाम करके खड़े हुए थे, कुछ थक कर बैठ भी गए थे। वहाँ पर स्थानीय लोगों के कथानुसार जब रानी की मृत्यु का समाचार मिला और झंडा झुका दिया गया तब ठीक उसी समय बारिश बंद हो गई और आकाश में इन्द्र धनुष दिखाई देना लगा। उनके अनुसार प्रकृति रानी का स्वागत कर रही थी! इंग्लैंड में एक दिलचस्प बात यह भी ज्ञात हुयी कि रानी के महल में पल रही मधुमक्खी पालक ने मधुमक्खियों को उनके छत्ते के पास जाकर रानी की मृत्यु की सूचना दी कि उनका स्वामी अब इस संसार में नहीं है, नया राजा पहले की तरह तुम्हारी देखभाल करेंगे। उनके छत्ते पर काला रिबन बांध दिया गया। कहा जाता है कि स्वामी न रहने पर मधुमक्खियाँ अपना जीवन त्याग देती हैं इसलिए समय रहते उन्हें नए स्वामी के विषय में जानकारी देना आवश्यक होता है। एक बदलाव भी यहाँ देखने को मिला, रानी की मृत्यु की सूचना के बाद राष्ट्रगान में – गॉड सेव दा किंग, गाया गया। इससे पूर्व यह गॉड सेव दा क्वीन गाया जाता रहा था।

 अदभुत है
रानी की मृत्यु की सूचना देने बाद यूके का राष्ट्रीय गान -गॉड सेव दा किंग  के रूप में बदल दिया गया है। इससे पूर्व पिछले 70 वर्ष से यह -गॉड सेव दा क्वीन गाया जाता रहा था। सिक्के और नोटों पर नए राजा बाएँ ओर के चेहरे की छवि होगी जबकि रानी के चेहरे की छवि दाएँ भाग की दर्शायी जाती थी। हर मैजेस्टीस पासपोर्ट ऑफिस अब हिज़ मैजेस्टीस पासपोर्ट ऑफिस कहलाएगा। शाही एवं राजकीय दस्तावेज पर राजा के क्राउन की छवि का अंकण होगा। इससे पूर्व रानी के क्राउन की छवि होती थी। यह सब बदलाव यहाँ के वैधानिक बदलाव नहीं है। यह केवल परम्परागत बदलाव हैं जो कि सदियों से यहाँ के राजघराने के प्रॉटोकॉल के अनुसार होते आए हैं।
(गाजियाबाद के वरिष्ठï पत्रकार सुशील शर्मा के सहयोग से)

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