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Bengaluru News : कर्नाटक की सत्ता के गलियारों में कुछ दिनों से चल रही सरगर्मियों पर अब कांग्रेस हाईकमान ने विराम लगा दिया है। डीके शिवकुमार भले ही 100 से अधिक विधायकों का समर्थन जुटाने का दावा कर रहे थे, लेकिन सिद्धारमैया की कुर्सी फिलहाल अडिग है। सवाल यह है कि जब शक्ति संतुलन डीके शिवकुमार के पक्ष में था, तब भी वह मुख्यमंत्री क्यों नहीं बन सके? यहां वो 7 अहम कारण हैं, जिनकी वजह से सिद्धारमैया न केवल सीएम पद पर बने हुए हैं, बल्कि पार्टी के भीतर भी उन्होंने अपनी पकड़ और भरोसा दोनों को मजबूत बनाए रखा है।

1. पीसीसी अध्यक्ष पद छोड़ने को तैयार नहीं शिवकुमार

कहा जा रहा है कि बंद कमरे में बातचीत के दौरान सिद्धारमैया ने शिवकुमार से कहा कि अगर वो सीएम बनना चाहते हैं, तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष (पीसीसी अध्यक्ष) का पद छोड़ें। लेकिन शिवकुमार ऐसा नहीं करना चाहते, क्योंकि उन्हें आशंका है कि इस पद पर सिद्धारमैया अपने किसी करीबी को बैठा सकते हैं, जिससे उनकी पकड़ कमजोर हो जाएगी।

2. बिहार चुनाव और जातीय समीकरण

कांग्रेस इस समय बिहार विधानसभा चुनाव (2025) की रणनीति में जुटी है, जहां पिछड़े और अति पिछड़े समुदायों की बड़ी आबादी है। ऐसे में सिद्धारमैया जैसे नेता को हटाना कांग्रेस के लिए राजनीतिक आत्मघात हो सकता है, क्योंकि वे सामाजिक न्याय की मजबूत छवि वाले नेता हैं। पार्टी किसी भी तरह के नकारात्मक राजनीतिक संकेत नहीं देना चाहती।

3. आरसीबी जश्न में हादसे का असर

आईपीएल में आरसीबी की जीत पर बेंगलुरु में आयोजित एक कार्यक्रम में भगदड़ मचने से 11 लोगों की मौत हुई। यह कार्यक्रम डीके शिवकुमार की देखरेख में हुआ था, और भीड़ नियंत्रण को लेकर कड़ी आलोचना का सामना उन्हें करना पड़ा। यह घटना उनके खिलाफ गया।

4. कानूनी संकट : ईडी और सीबीआई का शिकंजा

डीके शिवकुमार ईडी और सीबीआई की जांच के दायरे में हैं। 2019 में मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में वे जेल भी जा चुके हैं। कांग्रेस हाईकमान को डर है कि अगर उन्हें सीएम बना दिया गया और कोई गिरफ्तारी हुई, तो पार्टी की सरकार संकट में आ सकती है। ऐसे में उन्हें सत्ता के शीर्ष पर बैठाना जोखिम भरा दांव होता।

5. खड़गे फैक्टर और पार्टी की रणनीति

पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और उनके बेटे प्रियांक खड़गे कर्नाटक की राजनीति में मजबूत दखल रखते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, खड़गे गुट भविष्य में खुद सत्ता की ओर कदम बढ़ा सकता है। पार्टी जल्दबाजी नहीं करना चाहती और भीतरू प्रतिस्पधार्ओं को भड़काने से बच रही है।

6. ‘रिकॉर्ड बनाने’ की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा

सिद्धारमैया पर आरोप है कि वे कर्नाटक में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं, जो अभी देवराज उर्स (7 साल 238 दिन) के नाम है। सिद्धारमैया इस लक्ष्य के करीब हैं, और पार्टी को उन्होंने संकेत दिया है कि रिकॉर्ड पूरा होते ही वे खुद शिवकुमार के लिए रास्ता खोल देंगे और राजनीतिक संन्यास लेंगे।

7. राजस्थान और एमपी जैसी गलतियों से सीख

राजस्थान (गहलोत-पायलट विवाद) और मध्य प्रदेश (सिंधिया-नाथ विवाद) जैसी भीतरघात से हुई राजनीतिक अस्थिरता से सबक लेते हुए कांग्रेस अब कोई भी ‘बगावत’ खुलने से पहले समझौते और संवाद की रणनीति अपना रही है। सूत्रों के अनुसार, आलाकमान ने डीके शिवकुमार को आश्वासन दिया है कि सही समय पर उन्हें सीएम बनाया जाएगा, फिलहाल धैर्य बनाए रखें।

शिवकुमार बोले, “मेरे पास कोई विकल्प नहीं”

पूरे घटनाक्रम के बीच डीके शिवकुमार का एक बयान सुर्खियों में रहा। उन्होंने कहा, मेरे पास क्या विकल्प है? मुझे उनके (सिद्धारमैया) साथ खड़ा होना है, पार्टी हाईकमान जो कहेगा, वह करूंगा। लाखों कार्यकर्ता इस पार्टी के पीछे हैं।” इस बयान से साफ है कि वे फिलहाल कड़े विरोध की राह नहीं अपनाना चाहते।

प्रियांक खड़गे ने दिया बयान, कोई संकट नहीं

कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खड़गे ने साफ किया कि कोई असंतोष नहीं है, सबकी भूमिकाएं स्पष्ट हैं। अगर किसी को असहमति है, तो वो हाईकमान से बात करे, मीडिया से नहीं। डीके शिवकुमार भले ही संख्या के खेल में भारी दिखे हों, लेकिन सिद्धारमैया ने रणनीति, भरोसे और संतुलन से बाजी मार ली। कांग्रेस फिलहाल स्थिरता चाहती है, बगावत नहीं। यही वजह है कि सियासी बयानबाजिÞयों के बीच कुर्सी वही रही, नाम वही रहा सिद्धारमैया।

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