Bhagwan Goutambuddha : भगवान गौतमबुद्ध का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है। गौतमबुद्ध एक ऐसे संत, महात्मा अथवा भगवान थे जिन्होंने 29 वर्ष की उम्र में चक्रवर्ती सम्राट के पद को छोडक़र भिक्षुक बनने का मार्ग चुना था। भगवान बुद्ध ने जीवन के परम सत्य की खोज की थी। भगवान गौतमबुद्ध का नाम सदा-सदा के लिए अमर हो गया है। हम यहां आपको गौतमबुद्ध के बुद्धत्व से पहले की सबसे बड़ी जानकारी दे रहे हैं।
भगवान गौतमबुद्ध में बचपन से ही भरी हुई थी करूणा
आपको पता ही होगा कि भगवान गौतमबुद्ध का बचपनप का नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ का जन्म 2539 वर्ष पहले 563 ईसा पूर्व में हुआ था। भगवान गौतमबुद्ध के पिता का नाम सुद्धोधन था। भगवान गौतमबुद्ध के पिता सुद्धोधन शाक्य गणराज के मुखिया थे तथा उस वक्त के सबसे शक्तिशाली सम्राट थे। भगवान गौतमबुद्ध की माता का नाम महामाया था। भगवान गौतमबुद्ध के अंदर करूणा, दया तथा परोपकार की भावना बचपन से सही भरी हुई थी। भगवान गौतमबुद्ध ने अपनी युवा अवस्था में दुनिया भर की महिलाओं के लिए क्रांतिकारी काम किया था। इतना ही नहीं युवा अवस्था में ही भगवान गौतमबुद्ध ने वेश्याओं तक को सम्मान प्रदान कराया था। Bhagwan Goutambuddha
वेश्या अथवा गणिका को दिलाया बड़ा सम्मान
यह घटना भगवान गौतमबुद्ध की युवा अवस्था की घटना है। तब तक किसी को नहीं पता था कि शाक्य साम्राज्य का युवराज एक दिन भगवान गौतमबुद्ध बन जाएगा। हुआ यह था कि राजा सुद्धोधन इस बात से डरे हुए थे कि सिद्धार्थ बड़ा होकर संन्यासी ना बन जाए। भगवान बुद्ध के जन्म के समय एक ज्योतिषी ने यह भविष्यवाणी कर दी थी कि वें संन्यासी बनेंगे। यही कारण था कि राजा सुद्धोधन अपने पुत्र को हर प्रकार के कष्ट से दूर मौज-मस्ती के बीच में रखते थे। जब सिद्धार्थ जवान हुए तो राज परम्परा के अनुसार उन्हें रंग महल में भेजा गया। रंग महल उस समय की वेश्याओं का अडडा हुआ करता था। वेश्याओं को गणिका कहा जाता था। रंग महल में जाकर युवराज सिद्धार्थ ने उर्मिला नाम की एक गणिका का विवाह बालदेव नाम के उर्मिला के प्रेमी के साथ करा दिया था। उर्मिला तथा बलदेव के विवाह से पूर्व किसी गणिका को विवाह करने की अनुमति नहीं थी। उर्मिला के विवाह के बाद से वर्तमान तक कोई भी गणिका अथवा वेश्या अपनी मर्जी से विवाह कर सकती है। इतना ही नहीं भगवान गौतमबुद्ध ने उसी समय वेश्याओं के लिए एक बड़ा नियम बना दिया था।
महिलाओं यहां तक कि वेश्याओं को दिलवाया “नो” कहने का हक
रंग महल में जाने के दौरान एक दिन सिद्धार्थ के चचेरे भाई देवदत्त ने बड़ी ही घटिया हरकत कर दी थी। देवदत्त ने भयंकर बुखार से पीडि़त कंचनी नाम की एक गणिका के साथ जबरन शारीरिक सम्बंध बनाकर कंचनी को अधमरा कर दिया था। करूणा से भरे हुए युवराज सिद्धार्थ (भगवान गौतमबुद्ध) से वह घटना बर्दाश्त नहीं हुई सिद्धार्थ ने अपने राजा पिता से जिद करके एक बहुत बड़ा नियम बनवा दिया। वह नियम यह था कि इच्छा ना होने पर कोई भी महिला शारीरिक सम्बंध (Sex) बनाने से मना कर सकती है अर्थात No बोल सकती है। भले ही वह महिला वेश्या ही क्यों ना हो। राजा सुद्धोधन ने सिद्धार्थ के कहने पर यह नियम बना दिया कि इच्छा ना होने पर कोई भी महिला शारीरिक सम्बंध बनाने से मना कर सकती है। मना करने के बाद भी पुरूष यदि सम्बंध बनाता है तो इस कार्य को बड़ा दण्डनीय अपराध माना जाएगा। राजा सुद्धोधन द्वारा बनाया गया वह नियम 2500 वर्ष बाद भी नारी समाज तथा वेश्याओं के कल्याण का एक बड़ा हथियार बना हुआ है। भगवान गौतमबुद्ध की करूणा, दया, परोपरकार के हजारों किस्से बौद्ध साहित्य तथा इतिहास में वर्णित हैं। Bhagwan Goutambuddha
भगवान बुद्ध ने बंद करा दी थी पशु बली
वह भगवान गौतमबुद्ध ही थे जिन्होंने 2500 वर्ष पूर्व जानवरों की बली (पशु बली) की बहुत ही खराब परम्परा को बंद करा दिया था। एक बार भगवान गौतमबुद्ध के कुल गुरू युवराज सिद्धार्थ के जीवन में मौजूद गृहदोष को समाप्त करने के लिए बड़ा यज्ञ कर रहे थे। उस यज्ञ में सिद्धार्थ के कुल गुरू पशु बली देना चाहते थे। युवराज सिद्धार्थ ने पशु बली का जमकर विरोध किया। इस विरोध के कारण पूरे शाक्य गणराज्य में पशु बली की कुप्रथा समाप्त हो गई जो धीरे-धीरे पूरी दुनिया में भी समाप्त हो गई। भगवान गौतमबुद्ध बचपन से ही करूणा, प्रेम, दया तथा परोपकार से भरे हुए थे।