RSS : राष्टï्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन है। RSS के मुखिया (प्रमुख) का नाम मोहन भागवत है। RSS के प्रमुख मोहन भागवत लगातार चर्चा में रहते हैं। इस बार मोहन भागवत की चर्चा भारत में मौजूद जाति व्यवस्था को लेकर हो रही है। मोहन भागवत का कहना है कि जाति व्यवस्था को हमारे पूर्वजों ने गलती से अपना लिया था। इस गलती को सुधारने की जिम्मेदारी हमारी है।
अचानक चर्चा का विषय बन गया है RSS प्रमुख का अभियान
हाल ही में भारत सरकार ने देश में जाति जनगणना कराने की घोषणा की है। इस घोषणा के साथ ही RSS के प्रमुख मोहन भागवत का जाति व्यवस्था के विरूद्घ चलाया जा रहा अभियान बड़ी चर्चा का विषय बन गया है। RSS के अनेक अभियान पहले भी चर्र्चा का विषय बनते रहे हैं। RSS प्रमुख मोहन भागवत का एक पुराना बयान बहुत बड़ी चर्चा का केन्द्र बिन्दु बन गया है। दरअसल वर्ष-2022 के अक्टूबर में RSS प्रमुख मोहन भागवत ने जाति व्यवस्था को लेकर एक बड़ी बात कही थी। उस समय RSS चीफ मोहन भागवत ने कहा था कि जाति व्यवस्था पुरानी हो चुकी है और सामाजिक सद्भाव के लिए इसे भूल जाना चाहिए।
उस समय भागवत ने कहा था कि जाति व्यवस्था को हमारे पूर्वजों ने गलती से अपनाया था। अब जब हमें गलती का एहसास हो गया है, तो राष्ट्रीय एकता के हित में इसे छोड़ देना चाहिए। RSS प्रमुख मोहन भागवत यहीं पर नहीं रूके। उन्होंने कहा कि भगवान के सामने सब बराबर हैं। जाति व्यवस्था ‘पंडितों’ ने बनाई थी। उन्होंने कहा, “हमारे निर्माता के लिए हम सब बराबर हैं। कोई जाति या संप्रदाय नहीं है। ये अंतर हमारे पंडितों ने बनाए हैं।”
क्या RSS प्रमुख की बात मानेगा उन्हीं का अपना संगठन
बड़ा सवाल यह है कि RSS प्रमुख मोहन भागवत ने जाति व्यवस्था पर जो बोला है उसे अमल में कैसे जाएंगे? दरअसल RSS पर अक्सर ब्राह्मणों का वर्चस्व होने का आरोप लगता रहा है, उसके प्रमुख का जाति व्यवस्था को खत्म करने की बात करना और यह मानना कि यह पूरी व्यवस्था एक गलती थी और ‘पंडितों’ ने बनाई थी, महत्वपूर्ण है। लेकिन क्या RSS संगठन इस बात पर अमल करेगा ? भागवत की बातों पर संदेह इसलिए होता है क्योंकि उन्होंने मस्जिदों में मंदिरों को खोजने के लिए खुदाई करने के खिलाफ भी कहा था। लेकिन उनके समर्थकों ने उनकी इस बात को अनसुना कर दिया। RSS के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने भी एक इंटरव्यू में ऐसा ही कहा कि, “अगर हम इतिहास को बदलने के लिए सभी मस्जिदों की खुदाई शुरू कर देंगे, तो क्या इससे समाज में और दुश्मनी और नफरत नहीं पैदा होगी? आप इतिहास में कितना पीछे जाएंगे?” हालांकि, भागवत और होसबाले के बयानों के बावजूद मस्जिदों पर मुकदमे चल रहे हैं। अजमेर शरीफ और उत्तर प्रदेश के संभल की शाही जामा मस्जिद पर विवाद चल रहा है। संभल की मस्जिद पर विवाद के कारण सांप्रदायिक हिंसा भी हुई थी।
जाति व्यवस्था पर क्या कहते हैं विशेषज्ञ
डॉ. बीआर अंबेडकर की जीवनी लिखने वाले दलित स्कॉलर आनंद तेलतुंबडे कहते हैं कि RSS प्रमुख मोहन भागवत का ‘एक मंदिर, एक कुआं, एक श्मशान’ का आह्वान पहले से ही संविधान के अनुच्छेद 17 में शामिल है। यह अनुच्छेद किसी भी रूप में छुआछूत के अभ्यास को प्रतिबंधित करता है। इसके बावजूद, भारत में जाति आधारित भेदभाव व्यापक है। तेलतुंबडे ने यह भी कहा कि RSS प्रमुख मोहन भागवत जो कह रहे हैं, उसकी तुलना अंबेडकर के जाति व्यवस्था को खत्म करने के आह्वान से नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा, “अंबेडकर जाति को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहते थे। अंबेडकर ने बाद में इसे सामाजिक और आर्थिक समानता के रूप में परिभाषित किया।”
जाति व्यवस्था किसी एक वर्ग की देन नहीं है
तेलतुंबडे ने भागवत के इस दावे का जिक्र करते हुए कि जाति ‘पंडितों’ द्वारा बनाई गई एक कृत्रिम रचना है, कहा कि केवल पुजारियों को दोष देना काफी नहीं है। उन्होंने कहा, “पुजारियों ने शास्त्रों का पालन किया। जातियों को खत्म करने के लिए RSS को इन शास्त्रों को त्यागना होगा।” मोहन भागवत पहले RSS प्रमुख नहीं हैं जिन्होंने जाति को खत्म करने की वकालत की है। RSS के तीसरे सरसंघचालक, बालासाहेब देवरस ने 1983 में ‘सामाजिक समरसता’ शब्द दिया था। उन्होंने इस उद्देश्य के लिए सामाजिक समरसता मंच की स्थापना की। समरसता मंच सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करता है जिसमें विभिन्न जातियों के लोगों को आमंत्रित किया जाता है। एक इंटरव्यू में होसबाले ने कहा था कि संगठन अपने प्रशिक्षण में जाति की बात नहीं करता है। सभी स्वयंसेवकों को बताया जाता है कि वे केवल हिंदू हैं। उन्होंने कहा, “एक मांग यह है कि RSS कार्यकर्ता जाति संगठनों में सक्रिय नहीं होने चाहिए…जाति को खत्म करने के लिए लड़ना हमारे संगठन को ही मजबूत करता है।” रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) के राष्ट्रीय महासचिव अविनाश महातेकर ने कहा कि उन्हें RSS प्रमुख के बयान में कुछ भी विरोधाभासी नहीं लगा। उन्होंने कहा, “यह उनके अनुयायियों के लिए एक संदेश है। अब सवाल यह है कि क्या BJP और RSS विचारधारा के अन्य अनुयायी इसे स्वीकार करने को तैयार हैं।” महातेकर ने कहा कि भारतीय समाज बदलावों को अपनाने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा, “समाज बदल गया है। अगर हमें एक विकसित राष्ट्र बनना है तो जाति को अप्रासंगिक होना होगा।”
RSS की असली परीक्षा होगी जाति का त्याग करना
मराठी भाषा के दैनिक समाचार-पत्र सकल की एसोसिएट एडिटर मृणालिनी नानीवडेकर ने कहा कि RSS एक जाति-विहीन संगठन है। उन्होंने कहा, “लेकिन भागवत के बयानों का कोई असर होगा या नहीं, यह देखना होगा कि क्या लोग RSS की इन शिक्षाओं को अपनी शाखाओं के बाहर अभ्यास कर पाते हैं।” उन्होंने कहा कि “यही असली परीक्षा होगी।” पुणे के शिक्षाविद और राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र जोंधले ने सवाल किया कि क्या RSS की जाति-मुक्त समाज की प्रेरणा सामाजिक से ज्यादा राजनीतिक है। उन्होंने कहा, “वे सभी हाशिए वाले समुदायों को अपने साथ चाहते हैं क्योंकि इससे उनके हिंदू एकता के एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है। लेकिन इससे भारत में जाति विभाजन कैसे खत्म होगा?” उन्होंने कहा कि RSS ने जब भी संगठन को फायदा हुआ है, अंबेडकर की विचारधारा को अपनाने की कोशिश की है। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि अंबेडकर ने हिंदू धर्म के बारे में क्या लिखा और समानता के लिए अपनी लड़ाई में उन्होंने इसे क्यों छोड़ा।1935 में अपनी प्रसिद्ध घोषणा में, अंबेडकर ने कहा कि वह हिंदू के रूप में नहीं मरेंगे। उन्होंने अपने भाषण ‘जाति का विनाश’ में लिखा, “लोग जाति का पालन करने में गलत नहीं हैं। मेरी राय में, गलत वह धर्म है जिसने जाति की इस धारणा को पैदा किया है। यदि यह सही है, तो जाहिर है कि जिस दुश्मन से आपको जूझना चाहिए, वह जाति का पालन करने वाले लोग नहीं हैं, बल्कि ‘शास्त्र’ हैं जो उन्हें जाति का पालन करना सिखाते हैं।” बिहार के एक वरिष्ठ पत्रकार समीर मिश्रा ने कहा कि RSS द्वारा हिंदू एकता पर लगातार जोर देना केवल हिंदुओं को एकजुट करने का प्रयास है। उन्होंने कहा, “इसका जातिगत भेदभाव को खत्म करने से कोई लेना-देना नहीं है।
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