Sunday, 22 June 2025

धोती-कुर्ता में दौड़कर रचा इतिहास: पुरी मैराथन में देशभक्ति और संस्कृति का अनोखा संगम

Puri Marathon : भारत जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध देश में परंपरा और आधुनिकता का मेल जब किसी अनोखे अंदाज़ में…

धोती-कुर्ता में दौड़कर रचा इतिहास: पुरी मैराथन में देशभक्ति और संस्कृति का अनोखा संगम
Puri Marathon : भारत जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध देश में परंपरा और आधुनिकता का मेल जब किसी अनोखे अंदाज़ में सामने आता है, तो वो केवल प्रेरणादायक ही नहीं, ऐतिहासिक भी बन जाता है। ओडिशा के पुरी शहर में आयोजित हुई मैराथन (Marathon) में कुछ ऐसा ही देखने को मिला, जब दो भारतीय धावकों ने पारंपरिक पहनावे — धोती, कुर्ता और सिर पर पगड़ी — में भाग लेकर न सिर्फ भीड़ का ध्यान खींचा, बल्कि एक वर्ल्ड रिकॉर्ड (World Record) भी अपने नाम कर लिया।
इस प्रेरणादायक कारनामे को अंजाम दिया 60 वर्षीय रिटायर्ड आर्मी जवान मनीष त्रिपाठी और उनके साथी अरुण कुमार ने। दोनों ने पुरी मैराथन की कठिन 42 किलोमीटर लंबी दूरी को पारंपरिक भारतीय पोशाक में, नंगे पाँव, दौड़ते हुए पूरा किया। जहां आज के दौर में दौड़ने के लिए महंगे स्पोर्ट्स शूज़, ट्रैक सूट और फिटनेस गियर आम बात है, वहीं इन दोनों धावकों ने ये साबित कर दिया कि हिम्मत, लगन और देशप्रेम हो तो इंसान किसी भी लिबास में इतिहास रच सकता है।
इस पहल का मकसद केवल एक दौड़ पूरी करना नहीं था। यह एक संदेश था — भारत की संस्कृति केवल किताबों और त्योहारों तक सीमित नहीं, बल्कि वो हमारे शरीर, आत्मा और कर्म में भी बसी हुई है। मनीष  और अरुण ने दिखाया कि भारतीय पारंपरिक पोशाक, जिसे आज की युवा पीढ़ी अक्सर केवल पारिवारिक समारोहों या मंदिरों तक सीमित समझती है, वो भी साहस और सहनशक्ति का प्रतीक बन सकती है।
पुरी की सड़कों पर जब यह दोनों धावक धोती और पगड़ी में दौड़ते दिखे, तो राहगीर रुककर तालियां बजाने लगे। लोगों की आंखों में उत्सुकता थी, और दिलों में सम्मान। जैसे-जैसे वो फिनिश लाइन के करीब पहुंचे, उनके हाथों में लहराता तिरंगा और चेहरे पर आत्मविश्वास का तेज़ लोगों को भावुक कर रहा था।
इस साहसिक और अनोखी दौड़ के लिए उन्हें वर्ल्ड रिकॉर्ड से सम्मानित किया गया, जिससे यह उपलब्धि और भी गौरवपूर्ण बन गई। यह रिकॉर्ड ना केवल खेल की दुनिया में नई मिसाल है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है।
आज जब युवा पीढ़ी भारतीय परिधान को ‘पिछड़ा’ या ‘अव्यवहारिक’ समझने लगी है, तब मनीष और अरुण जैसे लोग याद दिलाते हैं कि देसी पहनावा भी आत्मबल और आत्मगौरव का प्रतीक बन सकता है।
उनका यह प्रयास न केवल खेल प्रेमियों को प्रेरणा देगा, बल्कि हर भारतीय को यह सोचने पर मजबूर करेगा कि हमारी असली ताकत हमारी जड़ों से जुड़ाव में ही छुपी है। Puri Marathon :
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