Criminalization Of Politics : राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण को देखते हुए देश की सबसे बड़ी कोर्ट ने इसपर संज्ञान लेते हुए इसपर अटॉर्नी जनरल से राय मांगी है। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के अपराधीकरण को एक बड़ा मुद्दा बताया और वह जानना चाहती है कि आपराधिक मामले में दोषी ठहराये जाने के बाद कोई व्यक्ति संसद में कैसे लौट सकता है। इस मुद््दे पर न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने भारत के अटॉर्नी जनरल से इस संबंध में राय मांगी है। पीठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें देश में सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे के अलावा दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया गया है। यह मामला इससे पहले भी कई बार उठ चुका है लेकिन फिर भी सांसद और विधायक बार-बार संसद पहुंच रहे हैं।
केंद्र और चुनाव आयोग से तीन हफ्ते में मांगा जवाब
न्यायालय इस बात से अचंभित है कि जब किसी को दोषी ठहरा दिया जाता है तो वह व्यक्ति दोबारा कैसे चुनकर संसद या विधानसभा में पहुंच सकता है। इस मुद््दे पर न्यायालय ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने पर केंद्र और भारत के निर्वाचन आयोग से तीन सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। न्यायालय ने कहा कि एक बार जब उन्हें दोषी ठहराया जाता है और दोषसिद्धि बरकरार रखी जाती है, तो ऐसे लोग संसद और विधानमंडल में कैसे वापस आ सकते हैं? इसका उन्हें जवाब देना होगा। इस संबध में न्यायालय कानूनों की पड़ताल करेगा।
धारा 8 और 9 की जानकारी होनी चाहिए
पीठ ने आगे कहा कि हमें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 के बारे में जानकारी होनी चाहिए। यदि कोई सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति निष्ठाहीनता का दोषी पाया जाता है तो उसे व्यक्ति के रूप में भी सेवा के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता, लेकिन मंत्री बन सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि चूंकि एक पूर्ण पीठ (तीन न्यायाधीशों) ने सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे पर फैसला सुनाया था, इसलिए खंडपीठ (दो न्यायाधीशों) द्वारा मामले को फिर से खोलना अनुचित होगा। लेकिन यह विचारणीय मुद्दा जरूर है।
प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखने का विशेष निर्देश
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे को एक बड़ी पीठ के विचार करने के लिए प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना के समक्ष रखने का निर्देश दिया। न्यायालय की न्याय मित्र के रूप में सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने कहा कि शीर्ष न्यायालय द्वारा समय-समय पर दिए गए आदेशों और उच्च न्यायालय की निगरानी के बावजूद, सांसदों-विधायकों के खिलाफ बड़ी संख्या में मामले लंबित हैं। जिसका फायदा उठाकर वे बार बार संसद या विस में आ जाते हैं।
कॉमेडी के नाम पर जनता को परोसा जा रहा फूहड़ कंटेंटे, रणवीर अल्लाहबादिया के खिलाफ शिकायत दर्ज
ग्रेटर नोएडा – नोएडा की खबरों से अपडेट रहने के लिए चेतना मंच से जुड़े रहें।
देश–दुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमें फेसबुक पर लाइक करें या ट्विटर पर फॉलो करें।