Doctor Purushottam Lal : डॉक्टर पुरूषोत्तम लाल का नाम आपने जरूर सुना होगा। डॉ. पुरूषोत्तम लाल सही मायने में डाक्टर होने का फर्ज बखूबी निभा रहे हैं। हजार दो हजार नहीं लाखों लोगों की जान बचाकर डॉ. पुरूषोत्तम लाल ने बड़ी कहावत को चरितार्थ कर दिया है। बहुत बड़ी कहावत यह है कि डाक्टर धरती पर भगवान का स्वरूप होता है। इस बड़ी कहावत को डॉ. पुरूषोत्तम लाल ने पूरी तरह से चरितार्थ करके दिखा दिया है। हम आपका पूरा परिचय करा रहे हैं डॉ. पुरूषोत्तम लाल के साथ।
गुदड़ी का लाल है डाक्टर पुरूषोत्तम लाल
एक प्रसिद्ध मुहावरा है-‘‘गुदड़ी का लाल’’। इस मुहावरे का अर्थ है कि गरीब परिवार में पैदा हुआ व्यक्ति बड़ा काम कर रहा है। यह मुहावरा डॉ. पुरूषोत्तम लाल के ऊपर सटीक बैठता है। डॉ. पुरूषोत्तम लाल बेहद गरीब परिवार में पैदा हुए थे। उनके पिता जी साइकिल में पेंचर लगाकर अपने परिवार का पालन करते थे। साइकिल में पेंचर लगाने वाले पिता के अब पुत्र डॉ. पुरूषोत्तम लाल मेट्रो अस्पताल समूह के मालिक हैं। इतना ही नहीं डॉ. पुरूषोत्तम लाल को भारत के सर्वश्रेष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ यानि हार्ट स्पेशलिस्ट के रूप में पहचाना जाता है। भारत सरकार के अति महत्वपूर्ण पदमश्री, पदम भूषण तथा पदम विभूषण जैसे महान पुरस्कारों से डॉ. पुरूषोत्तम लाल सम्मानित किए जा चुके हैं। भारत में डॉ. पुरूषोत्तम लाल के अलावा दूसरा उदाहरण नहीं मिलता जिसमें एक डाक्टर को तीनों पदम एवार्ड मिले हों। डॉ. पुरुषोत्तम लाल का जन्म पंजाब के फिरोजपुर जिले के एक छोटे से गांव पत्तो में हुआ। डॉ. पुरुषोत्तम लाल अपने गांव के प्रथम डॉक्टर कहलाए गए। प्राथमिक शिक्षा गांव में पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई उनके मामाजी के गांव के सेना गवर्नमेंट हाईस्कूल में हुई। स्कूली शिक्षा उच्चतम अंको से पूरी करने के बाद वे कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के लिए जालंधर गए। फिर अमृतसर से मेडिकल की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होने वर्ष 1976 में अमेरिका जाकर आधुनिक चिकित्सा पद्धति में अपने हुनर को निखारने का फैसला लिया।
अमेरिका में रहते हुए डॉ. पुरुषोत्तम लाल अपोलो हॉस्पिटल मद्रास में भी अपना योगदान दिया करते थे जहां उन्होने कई नई आधुनिक तकनीकों को पहली बार भारतवर्ष में शुरू किया और अनेक डॉक्टरों को भी प्रशिक्षित किया। डॉ. पुरुषोत्तम लाल द्वारा सिखाई जा रही कई तकनीकें विश्व में पहली बार शुरू की गईं थी। उनके मन में ग्रामीण स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का भी भूत सवार रहता था क्योंकि उस समय भारत के गांवां में डॉक्टर आसानी से नहीं पहुंच पाते थे और इसी कारणवश ऐसे काफी लोगों की युवावस्था में ही मृत्यु हो जाती थी जिनको बचाया जा सकता था। डॉ. पुरुषोत्तम लाल की इस सोच के पीछे एक दुखद कारण ये भी था की उनके पिताजी का भी गांव में डॉक्टर ना होने के कारण छोटी उम्र में ही देहांत हो गया था। यह घटना डॉ. पुरुषोत्तम लाल के जीवन के लिए दुख देती रही। इन सब चीजों को मद्देन?र रखकर उन्होंने 1996 में भारत वापसी का निर्णय लिया और अपोलो अस्पताल में कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट के इंचार्ज के रूप में कार्य करना शुरू किया।
डॉ. पुरुषोत्तम लाल को भारत सरकार ने बनाया बड़ा डॉक्टर
डॉ पुरुषोत्तम लाल अपने डॉक्टर बनने का पूरा श्रेय भारत सरकार को देते हैं। वे कहते हैं कि किसी भी देश में ऐसा नहीं होता कि सरकार अपने खर्चे से आपको डॉक्टर बनाए। होनहार विद्यार्थी होने के कारण उन्हें स्कूल के समय से ही छात्रवृत्ति मिलने लगी थी जो मेडिकल की पढ़ाई तक जारी रही। डॉ. पुरुषोत्तम लाल का कहना है कि छात्रवृत्ति की वजह से ही उन्हें प?ने में कोई रुकावट नहीं आई तथा वे मेडिकल तक की पढ़ाई बिना व्यवधान के पूरी कर पाए। उनके पिताजी स्वर्गीय श्री निरंजन लाल साइकिल पंचर ठीक करने की एक छोटी सी दुकान चलाते थे।
जाहिर है की उनकी इतनी आमदनी नहीं होती थी कि बच्चों को उच्च शिक्षा दे पाये। लेकिन उनके बच्चों ने भी ठान लिया था कि उन्होने बहुत पढऩा है और एक उज्जवल भविष्य बनाना है। डॉ. पुरुषोत्तम लाल कहते हैं कि उनका और उनके दोनों बड़े भाइयों का सपना था कि वे पढ़-लिख कर किसी तरह मास्टर बन जाएं। बाद में दोनों बड़े भाई इंजीनियरिंग में चले गए और भाइयों ने ही उन्हें मेडिकल में जाने का सुझाव दिया। वे बताते हैं कि सभी भाई पढऩे में काफी मेहनती थे एवम हर कक्षा में प्रथम आते थे। इतना ही नहीं यहाँ तक की हर माह छात्रवृत्ति से पैसे बचा कर वे अपने पिता की मदद भी करने लगे। जालंधर में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उन्हें सौ रूपये नेशनल स्कॉलर्शिप तथा साठ रूपये कॉलेज स्कॉलर्शिप मिलती थी जिसमें से काफी पैसे पिताजी को भेज देते थे। मेडिकल की पढ़ाई के दौरान भी यही सिलसिला जारी रहा।
डॉ. पुरुषोत्तम लाल की बचपन की यादें
अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए डॉ. पुरुषोत्तम लाल बताते हैं कि उन्हे लैम्प की रौशनी में पढ़ाई करनी पड़ती थी। जब लैम्प का शीशा टूट जाता था तो उस पर कागज की चिप्पियां लगाकर काम चलाना पड़ता था। अत्यधिक अभाव होने के बाद भी उन्होंने कभी किसी कमी होने की शिकायत नहीं की। उनका बस एक ही लक्ष्य था की आगे बढऩा है और कुछ कर दिखाना है। यही वजह है कि डॉ. पुरुषोत्तम लाल अब विश्व के जाने-माने हृदयरोग विशेषज्ञ हैं। सफलता प्राप्त करने में डॉ. पुरुषोत्तम लाल अपनी माता लाजवंती और पत्नी पूनम का बड़ा योगदान मानते हैं। उनके तीन बच्चे हैं। सबसे बड़ी बेटी सोनिया और दो छोटे बेटे सन्नी व साहिल हैं। एक हास्य पूर्वक बात ये है की डॉ. पुरुषोत्तम लाल को खाने में वह सब पसंद है जिसे वे अपने पेशेंट को न खाने की हिदायत देते हैं। खाने के बारे में पूछने पर वे हंसते हुए कहते हैं कि “मैं अपने मरीजों को जो मना करता हूं वह सब खाता हूं। पंराठा व मलाई वाले दूध के बगैर मेरा काम नहीं चलता। हां, खाना बनाने का कभी समय नहीं मिलता।” यह बात जरूर है कि खाने के बाद डॉ. पुरुषोत्तम लाल चिकित्सीय विधि से खाने को पचाने का हुनर जानते हैं।
चिकित्सा को जन मानस की सेवा बनाया
चिकित्सा के क्षेत्र में व्यवसायीकरण की बात पर डॉ. पुरुषोत्तम लाल कहते हैं कि इलाज के समय चिकित्सा किसी व्यवसाय के रूप मे उनके और मरीजों के बीच में ना आए इसी कारण वे किसी भी मरीज से अपने हाथ से पैसा नहीं लेते। उनका कहना है कि जब से वो डॉक्टर बने हैं उन्होंने किसी भी मरीज से अपने हाथ से पैसा नहीं लिया। अब सवाल यह है कि आजकल का इलाज और चिकित्सा के उपकरण इतने महंगे हो गए हैं कि बिना पैसे के इलाज मुमकिन नहीं है। इसके बावजूद भी उनकी कोशिश रहती है कि जरूरतमंद व्यक्ति की भी भरसक मदद हो जाए। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए डॉ. पुरुषोत्तम लाल ने बताया कि जब वे अपोलो हॉस्पिटल मद्रास में थे तब उनके पास एक ऐसा मरीज आया जिसके पास मात्र 5 हजार रूपये थे। इतने कम पैसो में उसका लाखो का इलाज संभव ही नहीं था और न अस्पताल के मैनेजमेंट से उसके लिए शिफारिश की जा सकती थी। डॉक्टर साहब उस मरीज तथा उसके साथ आए एक व्यक्ति को अपने घर ले आए। सुबह 4 बजे उस मरीज का हार्ट का वाल्व जो बहुत तंग था उसको बिना कैथ लैब के ईको में ही एक नई तकनीक के साथ खोला जो कि पहले कभी इस्तेमाल मे नहीं लाई गई थी और नतीजतन मरीज का कैथ लैब का खर्चा बच गया और मरीज स्वस्थ होकर अपने घर गया। तब से वो इस तकनीक को दूसरे मरीजों में भी प्रयोग करने लगे।
इस तरह से लाखों कमजोर वर्ग के मरीजों की डॉ. पुरुषोत्तम लाल ने मदद की है। डॉ. पुरुषोत्तम लाल 20 से भी अधिक नई तकनीकों को भारत में लेकर आए और उनमें से कई तो विश्व में पहली बार अभ्यास मे लाई गई थीं जैसे कि हार्ट के छेद को Monodisc से बंद करना और Core Valve से TAVI तकनीक का उपयोग। यहां तक की बहुत सारे देश जैसे कि जर्मनी, इटली, चाइना, अमेरिका इत्यादी ने डॉ. पुरुषोत्तम लाल को दुनिया की पहली तकनीक ‘ ‘TAVI‘ का प्रतिनिधित्व करने के लिए भी आमंत्रित किया। इसके अलावा अन्य और तकनीके जैसे कि हार्ट की बंद आरट्री को ड्रिल करना, स्टेंटिंग और हृदय के तंग वाल्व को खोलना इत्यादिए सारी तकनीकों को ना केवल अन्य चिकित्सको के बीच परिचित किया बल्कि इन तकनीकों के बारे में डॉ. पुरुषोत्तम लाल ने अपनी पहली पत्रिका भी प्रकाशित किया। मीडिया ने भी इन तकनीकों के बारे मे खूब लिखा। यहां तक की जर्मनी के Prof. Adnan Kastrati जो दुनिया में माने हुए कार्डियोलॉजिस्ट हैं उन्होंने डॉ. लाल को ‘Father of Interventional Cardiology in India’ की उपाधि दी। कुछ विश्वविद्यालयों ने इनको ‘‘Doctor of Science’ एवं ‘Professor of Cardiology’ की भी पदवी दी।
अपने विवाह के दिन भी पूरा दिन काम करते रहे डॉ. पुरुषोत्तम लाल
डॉ. पुरुषोत्तम लाल की व्यस्तता का आलम यह है कि अपनी शादी के दिन भी उन्हें 8 घंटे तक काम करना पड़ा था। शिकागो में उनकी शादी के दौरान अचानक मैसेज आने के कारण उनको इमरजेंसी में जाना पड़ा। वे अपनी पत्नी के इसलिए भी शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने डॉ. पुरुषोत्तम लाल की व्यस्तता की वजह से कभी परिवार में तनाव नहीं आने दिया। अभी भी 70 वर्ष की उम्र में भी वो 8 से 9 घंटे मरीजों की देखभाल में लगे रहते हैं। पत्नी पूनम अर्थशास्त्र में एम.ए. हैं तथा अमेरिका से एम.बी.ए. भी करके आईं है। उनके एम.बी.ए. होने का लाभ डॉ. पुरुषोत्तम लाल को मिला भी है। पूनम लाल काफी वक्त अस्पताल में व्यतीत कर अस्पताल के प्रबंधन में साथ देती हैं।
डॉ. पुरुषोत्तम लाल अपने पिता को ही अपना आदर्श मानते हैं तथा उनकी ईमानदारी और मेहनत की सीख को उन्होने अपनाया है। चिकित्सा के क्षेत्र में आनेवाले युवा लोगों के लिए उनकी सलाह है कि इलाज के दौरान परमात्मा को ध्यान में रख कर प्रार्थना करनी चाहिए कि उन्हे ऐसी शक्ति दें की वह सफलतापूर्वक इलाज कर सके। इसके अलावा किसी भी मरीज को अगर अपने ही परिवार का सदस्य मानकर इलाज किया जाए तो शत प्रतिशत सफलता तय है। जब कोविड बुरी तरह फैला हुआ था तो काफी डॉक्टर हार्ट अटैक वाले मरीजों का इलाज करने में घबराते थे लेकिन डॉ. पुरुषोत्तम लाल ने सभी ऐसे मरीजों का ऑपरेशन किया भले ही वे खुद कोविड से दो बार ग्रस्त हुए जिसकी उनको बिल्कुल भी चिंता नहीं थी।
चिकित्सा के क्षेत्र में बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा को वे गंभीरता से नहीं लेते। डॉ. पुरुषोत्तम लाल का कहना है कि प्रोपेगेण्डा करना और कमीशन लेना या देना उनके सिद्धांतो के खिलाफ है। वे कहते हैं कि हम सिर्फ अच्छा काम करते हैं और इसी दम पर आगे बढऩा चाहते हैं। उनके पास जो भी मरीज आते हैं उनके उत्तम काम के बारे में सुनकर ही आते हैं। डॉ. पुरुषोत्तम लाल कहते है कि “हार्ट का इलाज कराने वाले किसी मरीज को 25-50 हजार की बचत से कोई मतलब नहीं होता। वह जब भी आएंगे हमारा काम देख कर ही आएंगे और मैं अपने काम को पूजा की तरह पूरा मन लगाकर करता हूं।” जैसा की उन्होने बताया की डॉक्टर की अनुपलब्धता के कारण उनके पिता 40 साल की उम्र में गांव में ही गुजर गए जिससे उनके मन में बहुत ठेस पहुंची और उन्होंने गांव में डॉक्टर को लाने के लिए बहुत शोध किया और एक 3 प्वाइंट फार्मूला बनाया। उसको लागू करने के लिए उन्होंने बतौर बोर्ड ऑफ गवर्नर मेडिकल काउंसिल को जॉइन किया और मेडिकल एडुकेशन सिस्टम को ऐसा बनाने का प्रयास किया कि कोई भी स्पेशलिस्ट गांव जाने में संकोच न करें लेकिन दुर्भाग्यवश वो इसमें सफल नहीं हो पाए क्योंकि भारत में कोई नया सिस्टम शुरू करना इतना आसान नहीं होता।
मैट्रो अस्पताल समूह बन रहा है मरीजों की पहली पसंद
डॉ. पुरुषोत्तम लाल ने उत्तर प्रदेश के नोएडा शहरर के सेक्टर-12 में सभी आधुनिक उपकरणों से युक्त हृदय रोगो के लिए मैट्रो अस्पताल खोला हुआ है। साथ ही नोएडा के ही सेक्टर-11 में एक मल्टीस्पेशलिटी मैट्रो अस्पताल भी है। इस प्रकार उनके कई अस्पताल प्रीत विहार, पांडव नगर, दिल्ली, मेरठ, वडोदरा, रेवाड़ी, जयपुर, सिडकुल, हरिद्वार तथा फरीदाबाद में भी स्थापित हैं। अक्सर मैट्रो हॉस्पिटल में अंतिम दौर से गुजर रहे मरीज आते हैं और कई बार तो ऐसा भी होता है कि सभी जगह से निराश होकर आए मरीज यहां आकर नया जीवन पाते है। डॉ. लाल की मेहनत और अनुभव का ही नतीजा है कि उनके अस्पतालों मे दर्जनों ऐसे प्रयोग हुए हैं, जो सिर्फ भारत में पहली बार हुये है और विश्व मे प्रथम स्थान प्राप्त करते हैं। यही वजह है कि डॉ. लाल का नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्डस में शामिल है और शीघ्र ही गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्डस में भी शामिल होने वाला है। डॉ. पुरुषोत्तम लाल को अब तक तीन दर्जन से अधिक राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय सम्मान व पुरस्कारों से नवा?ा जा चुका हैं। भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिए जाने वाले सर्वाधिक तीन प्रतिष्ठित सम्मान उन्हें प्राप्त हुए हैं। वर्ष 2003 में पद्मभूषण , वर्ष 2004 मे डॉ.बी.सी. रॉय नेशनल अवार्ड अथवा वर्ष 2009 में पद्मविभूषण से डॉक्टर साहब को नवाजा जा चुका है। डॉ. पुरुषोत्तम लाल आज दुनिया भर मे पहचाने जाते है और किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। अब आप समझ गए होंगे कि यूं ही कोई गुदड़ी का लाल डॉ. पुरुषोत्तम लाल नहीं बन जाता है।