RSS : राष्टï्रीय स्वयं सेवक संघ को RSS के नाम से जाना जाता है। RSS को संघ कहकर भी संबोधित किया जाता है। RSS के कार्यकर्ताओं को स्वयं सेवक कहा जाता है। RSS के विरोधी स्वयं सेवक को संघी कहकर बुलाते हैं। RSS को दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन होने का दर्र्जा प्राप्त है। इसी RSS की एक खास परंपरा को हम यहां बता रहे हैं। RSS के करोड़ों स्वयं सेवक अपने संगठन के भगवा झण्डे को ही अपना गुरू मानते हैं। RSS के कार्यकर्ता (स्वयं सेवक) भगवा ध्वज की पूजा गुरू के समान करते हैं।
भगवा ध्वज को गुरू मानने की पुरानी पम्परा है RSS में
राष्टï्रीय स्वयं सेवक संघ के झण्डे का रंग भगवा है। इसी भगवा रंग के झण्डे को RSS के स्वयं सेवक अपना गुरू मानते हैं। RSS को जानने तथा समझने वालों का कहना है कि RSS के जन्म (स्थापना) के समय से ही भगवा ध्वज को गुरू मानने की पुरानी परम्परा है। इसी के साथ RSS में गुरू दक्षिणा की परंपरा भी पुरानी परंपरा है। RSS में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर देश भर में गुरु दक्षिणाओं के कार्यक्रम होते हैं। RSS की हर शाखा ‘व्यास पूर्णिमा’ या गुरु पूर्णिमा पर गुरुपूजा और गुरु दक्षिणा का कार्यक्रम आयोजित करती है। इसका मुख्य मकसद है-प्राचीन भारत की उस गुरु-शिष्य परंपरा को आगे बढ़ाना, जिसमें शिक्षा पूरी करने वाले सभी शिष्य आदर और कृतज्ञता के भाव से अपने गुरु को यथाशक्ति दक्षिणा अर्पित करते थे। इसमें धन की राशि नहीं, कृतज्ञता की भावना महत्त्व रखती है। गुरुपूजा का कार्यक्रम बड़ी सादगी के साथ संपन्न किया जाता है। स्वयंसेवक इस कार्यक्रम में गणवेश में नहीं, बल्कि पारंपरिक भारतीय परिधान (धोती-कुर्ता या पाजामा-कुर्ता) में उपस्थित होते हैं। 1925 में अपनी स्थापना के तीन साल बाद संघ ने 1928 में पहली बार गुरुपूजा का आयोजन किया था। तब से यह परंपरा जारी है।
RSS के जानकारों के अनुसार, गुरु दक्षिणा कार्यक्रम की अवधारणा संघ के प्रारंभिक दिनों में की गई थी। इसके दो उद्देश्य थे -पहला, संगठन के विस्तार के संगठन के भीतर से ही धन की व्यवस्था करना और दूसरा, यह स्थापित करना कि संघ में भगवा ध्वज ही सर्वोच्च गुरु है। बाद में गुरु दक्षिणा कार्यक्रम ऐसे स्वयंसेवकों को भी कम-से-कम वर्ष में एक बार जोडऩे का सशक्त माध्यम बन गया, जो नियमित शाखा नहीं आ पाते। कम-से-कम वर्ष में एक बार सभी परस्पर मिल सकें। वर्ष में एक बार ‘गुरु दक्षिणा’ दी जाती है। आमतौर पर किसी महीने में एक या दो बार गुरु दक्षिणा के लिए तिथियां तय की जाती हैं।
आध्यात्मिकता का प्रतीक है RSS का भगवा झण्डा
एडवांस कलर थेरेपी के अनुसार भगवा रंग समृद्धि और आनंद का प्रतीक माना जाता है, यह रंग आंखों को सुकून देने के साथ क्रोध पर नियंत्रण करते हुए खुशी को बढ़ाने वाला माना गया है। ज्योतिष शास्त्र में भगवा रंग बृहस्पति ग्रह का रंग है। यह ज्ञान और आध्यात्मिकता को बढ़ाने वाला माना जाता है। सूर्य की आग और वैदिक यज्ञ की समिधा से निकलने वाली आग भी भगवा रंग है। संघ के सरकार्यवाह रहे व प्रख्यात विचारक व चिंतक एचवी शेषाद्रि ने अपनी पुस्तक ‘आरएसएस: ए विजन इन एक्शन’ में लिखा है- भगवा ध्वज सदियों से भारतीय संस्कृति और परंपरा का श्रद्धेय प्रतीक रहा है। जब संघ के पहले सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ का शुभारंभ किया, तभी से उन्होंने इस ध्वज को स्वयंसेवकों के सामने समस्त राष्ट्रीय आदर्शों के सर्वोच्च प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया और बाद में व्यास पूर्णिमा के दिन गुरु के रूप में भगवा ध्वज के पूजन की परंपरा आरंभ की। भारत में महमूद गजनवी हों या मुहम्मद गोरी सभी विदेशी आक्रांताओं और आक्रमणकारियो के खिलाफ युद्ध भी भगवा ध्वज के तले ही लडे गए। भगवा रंग प्रकृति से भी जुड़ा हुआ है। सूर्यास्त और सूर्योदय के समय प्रकृति की लालिमा नकारात्मक तत्वों को हटाती है। लंका पर आक्रमण करते समय भगवान राम ने अपने कुल वंश रघुवंश की ध्वजा के नीचे रावण से युद्ध किया था। कुर्म और स्कंद पुराणों के अनुसार रघुवंश के ध्वज पर तीन त्रिज्याएं अंकित थीं, जो अग्नि की ज्वालाएं जैसी दिखती थी। इस पर उनके कुलदेवता सूर्य की छवि अंकित थी। युद्धभूमि के लिए प्रस्थान से जाने से पहले योद्धा अपने हाथों से अपने रथ पर ध्वजा लगाते थे। महाभारत काल में अर्जुन युद्धभूमि के लिए जाने से पहले अपने रथ ‘नंदीघोष’ की परिक्रमा करते। फिर कवच पहनने के बाद अपनी कपि-ध्वजा फहराते थे। अर्जुन की ध्वजा पर भगवान हनुमान की छवि अंकित थी।
महाराणा प्रताप का झण्डा भी था भगवा रंग का
महाराणा प्रताप ने हल्दी घाटी के युद्ध में भगवा ध्वज का इस्तेमाल किया था। 17वीं शताब्दी में बीकानेर रियासत की ध्वजा भगवा और लाल रंग की थी, जिस पर बाज की आकृति अंकित थी। यह पक्षी देवी दुर्गा का प्रतिनिधित्व करता था। जोधपुर रियासत की ध्वजा को पंचरंग कहा जाता था, जिसमें भगवा, गुलाबी, सफेद, लाल, पीला और हरा रंग थे। नागपुर के भोसलें शासक भगवा ध्वज का प्रयोग करते थे। छत्रपति शिवाजी महाराज भगवा ध्वज का इस्तेमाल करते थे। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने युद्ध में इसी भगवा ध्वज का इस्तेमाल किया था।
झंडे का इतिहास जानने वाले बताते हैं कि सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह ने जब हिंदू धर्म की रक्षा के लिए हजारों सिख योद्धाओं की फौज का नेतृत्व किया, तब उन्होंने केसरिया झंडे का इस्तेमाल किया। यह ध्वज हिंदुत्व के पुनर्जागरण का प्रतीक है। इस झंडे से प्रेरणा लेते हुए महाराजा रणजीत सिंह के शासन काल में सिख सैनिकों ने अफगानिस्तान के काबुल-कंधार तक को फतह कर लिया था। उस समय सेनापति हरि सिंह नलवा ने सैनिकों का नेतृत्व किया था। पालकर ने लिखा है कि जब राजस्थान पर मुगलों का हमला हुआ, तब राणा सांगा और महाराणा प्रताप के सेनापतित्व में राजपूत योद्धाओं ने भी भगवा ध्वज से वीरता की प्रेरणा लेकर आक्रमणकारियों को रोकने के लिए ऐतिहासिक युद्ध किए। छत्रपति शिवाजी और उनके साथियों ने मुगल शासन से मुक्ति और हिंदू राज्य की स्थापना के लिए भगवा ध्वज की छत्रछाया में ही निर्णायक लड़ाइयां लड़ीं।
देश की राजधानी दिल्ली में बन गया है RSS का नया हैड क्वाटर
राष्टï्रीय स्वंय सेवक संघ की स्थापना 27 सितंबर 1925 को महाराष्टï्र के नागपुर शहर में हुई थी। वर्ष-1925 से ही RSS का हैड क्वाटर नागपुर में रहा है। हाल ही में यें भारत की राजधानी दिल्ली में RSS का नया हैड क्वाटर बनाया गया है। दिल्ली में RSS का नया मुख्यालय ‘केशव कुंज’ के नाम से बना है। RSS के नए हैड क्वाटर में हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है। उसके अलावा बाहर की दीवारों पर स्वास्तिक चिन्ह देखे जा सकते हैं। RSS के नए मुख्यालय में 3 टॉवर हैं। इन इमारतों का नाम साधना, प्रेरणा और अर्चना रखा गया है। तीनों टावर 12 मंजिला हैं, जिनमें लगभग 300 कमरे और अलग-अलग दफ्तर बनाए गए हैं। RSS का नया हैड क्वाटर दिल्ली के झंडेवालान में बना है।
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