Voter List Amendment : बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण को लेकर भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से एक रिट याचिका दाखिल करते हुए इस आदेश को संविधान और मौलिक अधिकारों के खिलाफ बताया है।
क्या है मामला?
ईसीआई ने 25 जून 2025 को बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण शुरू करने का निर्देश दिया था। इसके तहत 2003 की मतदाता सूची में शामिल न रहे लोगों को अपनी भारतीय नागरिकता के प्रमाणस्वरूप दस्तावेज जमा कराने होंगे। एडीआर का तर्क है कि यह कदम संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के प्रावधानों का सीधा उल्लंघन है।
कमजोर तबकों पर पड़ सकता है सीधा असर
याचिका में कहा गया है कि दस्तावेजीकरण की यह जिम्मेदारी राज्य पर होनी चाहिए, लेकिन निर्वाचन आयोग ने नागरिकों पर यह बोझ डाल दिया है। आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे सामान्य दस्तावेजों को प्रमाण के रूप में स्वीकार न करने के निर्णय से अनुसूचित जाति, जनजाति, प्रवासी मजदूरों और ग्रामीण क्षेत्रों के लोग सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं। एडीआर का यह भी अनुमान है कि इस प्रक्रिया के चलते लगभग 3 करोड़ मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जा सकते हैं, जिससे वे अपने मताधिकार से वंचित रह जाएंगे।
संवैधानिक मूल्यों पर सवाल
याचिका में यह भी दावा किया गया है कि यह आदेश न केवल लोकतांत्रिक व्यवस्था की जड़ों को कमजोर करता है, बल्कि यह भारत के संवैधानिक ढांचे की आत्मा, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों, पर सीधा आघात है। अब निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं, जहां इस मामले की सुनवाई जल्द हो सकती है।
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